इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के कलानिधि प्रभाग द्वारा 21 और 22 फरवरी 2025 को दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस समारोह का आयोजन किया जा रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का रजत जयंती वर्ष है और इस वर्ष की थीम है- ‘मेक लैंग्वेजेज काउंट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (सतत विकास के लिए भाषाओं को महत्व दें)। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय (दक्षिण एशिया) के निदेशक और प्रतिनिधि श्री टिम कर्टिस, जबकि विशिष्ट अतिथि थीं केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव सुश्री लिलि पांडेय। सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने की। स्वागत भाषण आईजीएनसीए के कलानिधि विभाग के अध्यक्ष व डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ ने दिया। इस अवसर पर एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘इंडियन कैलिग्राफी: अनवीलिंग एंशियंट विज्डम थ्रू राजीव कुमार्स आर्ट’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर एक अनूठी प्रदर्शनी ‘भाषाकृति’ का भी आयोजन किया गया है, जिसे सुश्री आशना और सुश्री ऋतु माथुर ने क्यूरेट किया है।

मुख्य अतिथि टिम कर्टिस ने इस बात पर जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन भाषाओं का सम्मान करता है, जो हमारे विचारों और शब्दों को आकार देती हैं। संचार के साधनों से कहीं ज़्यादा, भाषाएं पहचान को परिभाषित करती हैं और व्यक्तियों को उनके इतिहास तथा समुदायों से जोड़ती हैं। दक्षिण एशिया के समृद्ध भाषाई परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि शोध से पता चलता है कि 7,000 से ज़्यादा भाषाएं खतरे में हैं, जिनमें देसी भाषाएं सबसे ज़्यादा खतरे में हैं। उन्होंने मातृभाषा दिवस के आयोजन के लिए आईजीएनसीए की सराहना करता हुए, इस क्षेत्र में केन्द्र के योगदान पर भी बात की।

अध्यक्षीय भाषण में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, मुझे यह बताते हुए हमेशा खुशी होती है कि भारत एक ऐसा देश है, जहां सबसे ज़्यादा भाषाएं और बोलियां हैं। हमारे देश में 1,700 से ज़्यादा भाषाएं थीं। लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि हमारे देश में भाषाएं खत्म हो रही हैं और खत्म होने की रफ़्तार भी बहुत तेज़ है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। हम सभी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं, जैसाकि हमने देखा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जहां तक संभव हो, शिक्षा में मातृभाषा के उपयोग पर जोर दिया गया है। उन्होंने आगे कहा, जब हम भाषा की बात करते हैं, तो मूल रूप से इसके तीन भाग होते हैं। एक है भाषा, दूसरा है लिपि और तीसरा है ध्वनि विज्ञान (फोनेटिक्स)। और, जब हम मातृभाषा की बात करते हैं, तो इसमें सबसे ज़्यादा जो उपेक्षित चीज़ है, वह है फोनेटिक्स। जब तक आप फोनेटिक्स पर ध्यान नहीं देते, भाषा पूर्ण नहीं होती।

प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने इस बात पर जोर दिया कि किसी की भाषा को लेकर कोई असहमति नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के मद्देनजर अंग्रेजी में बातचीत करने वाले लोगों का प्रतिशत काफी बढ़ा है, लेकिन यह चिंता का विषय नहीं है। चिंता का विषय यह है कि लोग अपनी मातृभाषा में बात करने से परहेज कर रहे हैं।

पहले दिन तीन चर्चा सत्रों का आयोजन भी किया गया। पहले सत्र का विषय था- ‘मेक लैंग्वेजेज काउंट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’, जिसका संचालन प्रो. रमेश चन्द्र गौर ने किया। इस सत्र में अमेरिका के इंडियाना यूनिवर्सिटी की प्रो. शोभना चेल्लिया, अमेरिका के नॉर्थ टेक्सास यूनिवर्सिटी की प्रो. सदफ मुंशी, यूनेस्को के नई दिल्ली कार्यालय में सीनियर जेंडर स्पेशलिस्ट डॉ. हुमा मसूद ने हिस्सा लिया।

दूसरे सत्र में ‘इंडियन कैलिग्राफी: अनवीलिंग एंशियंट विज्डम थ्रू राजीव कुमार आर्ट’ पुस्तक पर चर्चा की गई। इसमें दस्तकारी हाट समिति, नई दिल्ली की संस्थापक सुश्री जया जेटली, प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ और सांस्कृतिक उद्यमी एवं प्रदर्शनी क्यूरेटर सुश्री ऋतु माथुर ने हिस्सा लिया।

वहीं तीसरे सत्र में ‘नई शिक्षा नीति एवं भारतीय भाषाएं’ विषय पर परिचर्चा हुई। इस सत्र का संचालन हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक ने किया। इस सत्र में जेएनयू के भारतीय भाषा विभाग की प्रो. बंदना झा, गुरुगोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के डॉ. पवन विजय, दिल्ली विश्वविद्यालय के रामानुजन कॉलेज के डॉ. आलोक रंजन पांडेय और हंसराज कॉलेज के डॉ. विजय कुमार मिश्रा ने अपने विचार व्यक्त किए।

इस महत्वपूर्ण आयोजन में भाषा प्रेमी, शिक्षाविद् और शोधकर्ता अच्छी संख्या में उपस्थित रहे।