अमेरिका में तथा विश्व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप दि लास्ट  टेस्टामेंट’ शीर्षक से उपलब्ध हैं। यहां प्रस्तुत है जर्मन पत्रिका ‘डेर श्पीगल’ को दिए ओशो के साक्षात्कार के प्रमुख अंश 


डेर- क्‍या मदर टेरेसा अंतरात्‍मा से भरी महिला हैं? मैं मात्र नाम का उदाहरण दे रहा हूं क्‍योंकि मेरे पास उद्धरण हैं…

ओशो- तुम किसी बेहतर व्‍यक्‍ति को नहीं ढूंढ सकते?

डेर- प्रारंभ के लिए यह उद्धरण बहुत बढ़िया है। इस उद्धरण में आप तो उन्‍हें अपराधी और मूर्ख कहते हैं…।

ओशो- हां।

डेर- क्‍या आप सोचते हैं कि एक ऐसे व्‍यक्‍ति के लिए जो दुःखी लोगों की मदद करता है, उसे पुकारने का यह ठीक ढंग है?

ओशो- जो लोग दुखी लोगों की मदद करते है, वे उनके दुखों को जिंदा रखते हैं।

डेर- कम से कम वे लड़ने की कोशिश कर रहे है।

ओशो- नहीं वे अपनी प्रसिद्धि के लिये दुखों का मात्र शोषण कर रहे हैं। दुःख पूरी तरह से समाप्‍त किये जा सकते हैं। परंतु ये मदर टेरेसा द्वारा समाप्‍त नहीं किये जा सकते। मदर टेरेसा और अनाथ चाहती हैं। मदर टेरेसा और अधिक गरीब लोग चाहती हैं। ताकि वह उनका धर्मांतरण कैथोलिक धर्म में कर सकें। यह शुद्ध राजनीति है। सभी धर्म शोषण कर रहे हैं। और एक ही खेल-खेल रहे हैं। मैं इन धर्मों में किसी तरह का भेद नहीं करता।

डेर- क्‍या आप दयालु होने को एक गुण की तरह…

ओशो- नहीं, कतई नहीं। मैं सिर्फ एक बात मानता हूं। यदि तुम्‍हारे पास बहुत अधिक है- अनंत जीवन, आनंद, कुछ भी- और तुम इसे बांटना चाहते हो, और यह बांटना तुम्‍हारे लिये आनंद है, तो बांटो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस के साथ बांटते हो। दूसरा व्‍यक्‍ति अमीर है या गरीब, हिंदू है या मुसलमान, पूर्वी है या पश्‍चिमी। यदि तुम खुशबू से भरे हो, तुम इसे बांटोगे। कोई और रहा नहीं है। जब बादल पानी से भरे होते है, तो बरसतें है। मैं गरीबों की सेवा नहीं सिखाता हूं, मैं गरीबी को समाप्‍त करना सिखाता हूं। और हमारे पास सभी संसाधन हैं कि हम गरीबी को समाप्‍त कर दें। परंतु राजनेता ऐसा नहीं होने देंगे। पंडित नहीं होने देंगे। क्‍योंकि ये दोनों ही गरीबी के साथ समाप्‍त हो जाएंगे। याद रखो।

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