जीव अंगों के प्रदर्शन के साथ दी जा रही विज्ञान की शिक्षा।
राज्य बाल आयोग के सामने आईं मिशनरी स्कूल की कई कमियां।
शेक्सपीयर द्वारा लिखे गये प्रसिद्ध नाटकों में से एक है रोमियो एंड जूलियट। एक लड़का-लड़की की प्रेम कहानी और उनकी दुखांत मौत पर आधारित इस नाट्य कृति में वैसे तो अनेक पात्र हैं, लेकिन खास उसमें एक पादरी फ्रायर लारेंस का उल्लेख विशेषतौर पर आता है। फिलहाल मध्यप्रदेश के चर्च से संचालित या उससे जुड़े विद्यालयों में बच्चों को वयस्क होने के पूर्व ही विशेषकर इस प्रेम कहानी को पढ़ाकर उन्हें साहित्य के माध्यम से समय से पूर्व ही वयस्क बना दिया जा रहा है, लेकिन स्वामी विवेकानन्द, रविन्द्र नाथ टैगोर, निराला, महादेवी वर्मा, सुभ्रद्रा कुमारी चौहान, जय शंकर प्रसाद जैसे देश भक्त साहित्यकारों की पुस्तकें आप को ढूंढने पर भी नहीं मिल रहीं।यह जानकारी सामने आई है राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के शिवपुरी के सेंट चार्ल्स स्कूल के निरीक्षण से। इस विद्यालय के औचक निरीक्षण के लिए पहुंची मप्र बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने यहां कई खामियां पाई हैं। अनेक प्रश्नों के उत्तर स्कूल प्रशासन संतोषजनक नहीं दे पाया।
मध्य प्रदेश की प्रथम भाषा हिन्दी का यहां नहीं कोई सम्मान
आयोग ने निरीक्षण में पाया कि अनेक अंग्रेजी की किताबें तो बच्चों के लिए यहां हैं, लेकिन मप्र की प्रथम भाषा हिन्दी का यहां कोई सम्मान नहीं। उससे जुड़े श्रेष्ठ साहित्यकारों का साहित्य तो छोड़ियों नई शिक्षा नीति और देश भर में चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत भी यहां देश पर अपनी जान न्यौछावर करने वाली हुतात्माओं-क्रांतिवीरों का कोई साहित्य बच्चों के बीच उपलब्ध नहीं कराया गया है।
बच्चों को बढ़ाई जा रहीं वयस्क रोमांस और हकीकत से दूर भूतिया और डरावनी कहानियां
यहां जो पुस्तकें हैं उनमें रोमियो एंड जूलियट जैसे नाटक तो हैं ही साथ ही द क्रॉनिकल्स ऑफ व्लादिमीर टॉड ज़ैक ब्रेवर की पांच किताबों की युवा वयस्क श्रृंखला जैसी बहुतायत में पुस्तके हैं । इनमें वयस्क रोमांस है, हकीकत से दूर भूतिया और डरावनी कहानियां हैं। सोचनेवाली बात है कि इन्हें पढ़कर बच्चे यहां से क्या हासिल कर रहे होंगे।
स्पेशीमेन में ह्दय और किडनी मौजूद
आयोग सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने यहां पाया कि स्पेशीमेन में ह्दय और किडनी मौजूद हैं। यह किस पशू की हैं, इसके बारे में स्कूल प्रशासन आयोग को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। स्कूल का कहना था कि इसे बच्चे लेकर आए हैं, जबकि उसकी कटाई देखकर पता लग रहा था कि कोई विशेषज्ञ ही इस तरह से किडनी और ह्दय को शरीर से अलग कर सकता है। वहीं, स्कूली शिक्षा के नियमानुसार सिलेबस में कहीं भी स्पेशीमेन के ऑरिजनल प्रदर्शन की बात नहीं कही गई है। उसमें साफ बताया गया है कि लेब में अध्ययन मॉडल और चार्ट के द्वारा ही कराया जाएगा। ऐसे में यहां किसी के अंगों का मिलना कई प्रश्न खड़े कर रहा है। फिर ऐसे मामलों में दंड का भी प्रावधान है। क्योंकि भारत के संविधान ने जानवरों को भी जीवन जीने की आजादी दी है। अगर इनके जीवन को बाधित करने का कोई प्रयास करता है तो इसके लिए संविधान में कई तरह के दंड़ का विधान किया गया है ।
पशु क्रूरता से जुड़े ये हैं कानून
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और धारा 429 के तहत किसी जानवर को मारना, जहर देना, अपंग करना या प्रताड़ित करना एक संज्ञेय अपराध है। इस तरह के कृत्य के लिए कठोर कारावास की सजा है जिसके लिए 2 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत पशुओं के साथ क्रूरता किए जाने पर सजा का प्रावधान है। इसी प्रकार से वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 16 (सी) के तहत जंगली पक्षियों या सरीसृपों को नुकसान पहुंचाना, उनके अंड़ों को नुकसान पहुंचाना, घोंसलों को नष्ट करना अपराध है। ऐसा करने का दोषी पाए गए व्यक्ति को 3 से 7 साल का कारावास और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
इसके अलावा जानवरों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद वन्य जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। इसमें वर्ष 2003 में संशोधन किया गया जिसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा दिया गया। इसमें दंड और और जुर्माना को और भी कठोर कर दिया गया है। इसकी अनुसूची एक में 43 वन्य जीवों को शामिल किया गया है। इसमें धारा 2, धारा 8, धारा 9, धारा 11, धारा 40, धारा 41, धारा 43, धारा 48, धारा 51, धारा 61 और धारा 62 के तहत दंड का प्रावधान किया गया है। इस सूची में सुअर से लेकर कई तरह के हिरण, बंदर, भालू, चिकारा, तेंदुआ, लंगूर, भेड़िया, लोमड़ी, डॉलफिन, कई तरह की जंगली बिल्लियों, बारहसिंगा, बड़ी गिलहरी, पेंगोलिन, गैंडा, ऊदबिलाव, रीछ और हिमालय पर पाए जाने वाले कई जानवरों के नाम शामिल हैं।
इसकी अनुसूची एक के भाग दो में कई जलीय जन्तु और सरीसृप को शामिल किया गया है। इस अनुसूची में शामिल वन्य जंतुओं के शिकार पर धारा 2, धारा 8, धारा 9, धारा 11, धारा 40, धारा 41 धारा 43, धारा 48, धारा 51, धारा 61 और धारा 62 के तहत दंड़ का प्रावधान है। इस सूची के भाग एक में कई तरह के बंदर, लंगूर, सेही, जंगली कुत्ता, गिरगिट आदि शामिल हैं। सूची के भाग दो में अगोनोट्रेचस एण्ड्रयूएसी, अमर फूसी, अमर एलिगनफुला, ब्रचिनस एक्ट्रिपोनिस और कई तरह के जानवर शामिल हैं। चूंकि अभी यह तय नहीं कि आयोग ने जिन अंगों को स्कूल में देखा है वह किस जानवर के हैं, इसलिए सजा के तौर पर फिलहाल कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
ट्रांसपोर्ट शुल्क रसीद नहीं दी जाती अभिभावकों को
आयोग ने पाया कि स्कूल के कहे अनुसार उसके पास 25 ट्रांसपोर्ट बसें हैं जिनसे बच्चे आना-जाना करते हैं। एक अभिभावक से बात करने पर पता चला कि तीन किलोमीटर के विद्यालय 1200 रुपए वसूल रहा है, लेकिन रसीद कभी नहीं देता। यहां दूसरी एवं तीसरी कक्षा की परीक्षा फीस चौथी और पांचवीं कक्षा से अधिक पाई गई। उल्लेखनीय है कि विद्यालय इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन (आईसीएसई) बोर्ड से संचालित होना पाया गया है। यह एक प्राइवेट और नॉन सरकारी एजुकेशन बोर्ड है जो भारत में रहने वाले एंग्लो इंडियन बच्चों और यहाँ के निवासी बच्चों के लिए है। बोर्ड अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देता है। जब इस पूरे मामले को लेकर स्कूल प्रशासन से बात करना चाही तो उनकी वेबसाइट पर दिए किसी भी नम्बर पर कई बार के प्रयास के बाद भी कोई बात नहीं हो सकी।
इनका कहना है
मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि सेंट चार्ल्स विद्यालय में औचक निरीक्षण के दौरान कई खामियां मिली हैं, हम सभी की जांच कराएंगे। आवश्यकता पड़ने पर कानूनी कार्रवाई भी करेंगे। फिलहाल स्कूल प्रबंधन को जरूरी समझाइश एवं सुझाव दिए गए हैं। वे उसे मानते हैं तो अच्छा है अन्यथा कानून अपना कार्य करेगा। (एएमएपी)