मेनका गांधी को भाजपा ने सुल्तानपुर से दिया टिकट

उत्‍तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जितिन प्रसाद को टिकट दिया है, जबकि मौजूदा सांसद वरुण गांधी का टिकट कटा है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें नई जिम्मेदारी दी जाएगी। कांग्रेस ने भी वरुण गांधी को ऑफर दिया है। अब उनका भविष्य क्या होगा? फिलहाल यह तय नहीं हो पाया है पर पीलीभीत सीट का इतिहास बदलना तय है, जहां साल 1996 से गांधी परिवार का कब्जा रहा है। वहां से वरुण गांधी की मां मेनका गांधी छह बार सांसद बन चुकी हैं, जबकि खुद वरुण गांधी दो बार वहां से एमपी चुने गए हैं। अब मेनका गांधी को भाजपा ने सुल्तानपुर से फिर टिकट दिया है।

आम आदमी की आवाज उठाता रहूँगा: वरूण गांधी

वरूण गांधी ने टिकट कटने के बाद पीलीभीत वासियों के नाम से एक मार्मिक पत्र लिखा है। पत्र में वरूण ने पीलीभीत से अपनी यादों को जिक्र करते हुए लिखा कि पीलीभीत से मेरा रिश्ता अंतिम सांस तक खत्म नहीं हो सकता। सांसद के रूप में नहीं तो बेटे के तौर पर ही सही मैं आजीवन आपकी सेवा के लिए प्रतिबद्ध हूँ। मेरे दरवाजे हमेशा आपके लिए खुले रहेंगे। वरूण गांधी आगे पत्र में लिखते हैं कि मैं राजनीति में आम आदमी की आवाज उठाने आया था और आज आपसे यही आशीर्वाद मांगता हूँ कि सदैव वह कार्य करता रहूँगा भले ही उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े। भाजपा सांसद ने लिखा कि मेरा और पीलीभीत का रिश्ता प्रेम व विश्वास का है, जो किसी राजनीतिक गुणा-भाग से बहुत ऊपर है।

वरुण और मेनका का इस सीट से 35 साल का नाता

गौरतलब है कि राजनीतिक अखाड़े में पीलीभीत लोकसभा सीट और मेनका गांधी परिवार एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे। साल 1989 से इस सीट पर कभी मेनका गांधी तो कभी उनके पुत्र वरुण गांधी सांसद बने। इन दोनों का इस सीट से करीब 35 साल का नाता रहा। 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए बुधवार को नामांकन का समय बीतने के साथ अब इस रिश्ते पर ब्रेक लग गया। बुधवार को समर्थकों और जनता के बीच दिनभर यह चर्चा होती रही कि वरुण का अगला कदम क्या होगा लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। हालांकि तीन बजे नामांकन का वक्त बीतने के बाद सभी को सवालों के जवाब मिल गए।

करीब 35 साल बाद पीलीभीत के लोकसभा चुनाव में यह पहला मौका है जब गांधी परिवार से (मेनका गांधी/वरुण गांधी) किसी ने नामांकन नहीं किया। संजय गांधी की मृत्यु के बाद 1983 में राष्ट्रीय संजय मंच के बैनर तले पीलीभीत में एंट्री करने वाली मेनका गांधी ने न केवल अपने लिए मिनी पंजाब के नाम से मशहूर इस जिले में जगह बनाई बल्कि पुत्र वरुण गांधी को भी यहीं से राजनीति का ककहरा सिखाया। राजनीतिक रूप से परिपक्व हुए वरुण गांधी 2009 में पहली बार पीलीभीत से ही सांसद बने। यहां सांसद रहते युवा उम्र में उन्हें 2013 में भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया और बंगाल के प्रभारी की भी जिम्मेदारी दी गई थी। इसके बाद वह 2019 में भी पीलीभीत सीट से चुनाव लड़े और सांसद बने।

मेनका गांधी ने  पहले खुद फिर वरुण के लिए बनाई जगह

मेनका गांधी ने अपनी सियासी पारी का आगाज संजय गांधी के निधन के बाद 1984 में अमेठी से किया था। हालांकि राजीव गांधी के खिलाफ वह पहला चुनाव हार गईं। इसके बाद उन्होंने पीलीभीत सीट को चुना। साल 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत सीट से चुनावी मैदान में उतरीं तो तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया, वह जीतकर संसद पहुंचीं। हालांकि इसके बाद 1991 में उन्हें यहां से हार का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद 1996, 98 और 99 में पीलीभीत वालों ने उन्हें फिर से संसद तक पहुंचाया। इसके बाद 2004 और 2014 के लोकसभा चुनाव में वह पीलीभीत सीट से फिर विजयी रहीं।

वरुण गांधी का घटा कद!

2013 में वरुण गांधी को बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। उन्हें पश्चिम बंगाल में पार्टी का प्रभारी भी बनाय गया। फिलहाल उनका नाम यूपी बीजेपी के बड़े नेताओं में था और वह मुख्यमंत्री बनने की रेस में भी थे। हालांकि, अपनी ही सरकार के खिलाफ उन्होंने कई मौकों पर बयान दिए और सरकार विरोधी किसान आंदोलन में शामिल हुए। ऐसा माना जाता है कि इसी वजह से पार्टी अंदरखाने में उनका कद लगातार कम होता चला गया और इसी कड़ी में अब लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया।

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पीलीभीत सीट: 1989 के बाद कब कौन जीता

वर्ष – विजयी प्रत्याशी-दल
1989- मेनका गांधी- जनता दल
1991- परशुराम गंगवार- भाजपा
1996- मेनका गांधी- जनता दल
1998- मेनका गांधी- निर्दलीय
1999- मेनका गांधी- निर्दलीय
2004- मेनका गांधी- भाजपा
2009- वरुण गांधी- भाजपा
2014- मेनका गांधी- भाजपा
2019- वरुण गांधी- भाजपा  (एएमएपी)