ओम निश्चल । 
राजनीति में बहुत कम लोग  हैं जिन्‍हें हर कोई सम्‍मान की नजर से देखे। दलीय प्रतिबद्धताएं आड़े आती हैं ऐसे लोगों को समझने में। पर मृदुला सिन्हा जी (जन्म 27 नवम्बर 1942, निधन 18 नवम्बर 2020) के जाने पर देख रहा हूँ कि हर कोई जो उन्‍हें जानता था, उन्‍हें कभी बोलते सुना हे, मिला है, परिचित है, वह दुखी हैैै। 

सर्वमान्य शख्सियत

जैसे सुषमा स्‍वराज जी के जाने पर यह महसूस किया गया कि राजनीति मेंअब वैसी प्रभावी वक्‍ता सर्वमान्‍य नेता कोई नहीं हैै जिसका हर कोई सम्‍मान करे । मृदुला सिन्‍हा जी भी वैसी ही सर्वमान्‍य नेता थीं। पर  सच कहा जाए तो वे नेता नहीं मूलत: लेेेेखिका ही रहीं। राज्‍यपाल  का दायित्‍व मिला तो उसे भी बखूबी निभाया।
मुझे याद आता है गोवा में आयोजित एक दिनकर – गांधी विषयक गोष्‍ठी जहां उनसे मुलाकात हुई। दिल्‍ली से कुछ देर पहले ही गोवा पहुंची मृदुला जी बिहार के आयोजकों के बुलावेे पर समारोह में आईं। देर तक बोलीं और लोक संस्‍कृति, कवि के महत्‍व  व गांधी और दिनकर की तुलना करते हुए  अपनी सांस्‍कृतिक समझ का लोहा मनवाया। धीरज से बोलने में उनका कोई सानी नहीं था। अपनी बतकही से वे धीरे धीरे पूरा वतावरण मंत्रमुग्‍ध कर देती थीं।
याद आता है वे मंच पर मुख्‍य अतिथि थीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. सी पी ठाकुर व दिनकर की नातिन उषा ठाकुर विशिष्‍ट अतिथि । मैं भी बतौर वक्‍ता मंच पर ही था।

लोक संस्कृति में पगे पांव

मृदुला जी ने बताया कि उन्‍होंने जब गोवा के राज्यपाल का पद सम्हाला तो लोगों ने कहा कि अब आप गोवा में क्या करेंगी। वहां तो आपको ऐसी संस्कृति देखने को नहीं मिलेगी। मैंने यही कहा कि मैं मांडवी व जुआरी नदियों में गंडक व वागमती का जल मिला दूँगी और इन नदियों को अपना बना लूँगी। उन्होंने कहा कि मैंने यहां छठ पूजा भी की- करायी। घाट पर गए तो बिना गाए नहीं रहा गया। क्योंकि हमारे पांव लोक संस्कृति में पगे हैं। जहां तक संस्कृति की बात है काफी कुछ सांस्कृतिक समानता अनेक संस्कृतियों में देखने को मिलती है। सीमाएं तो हमने खींची हैं।

संस्‍कृति- अनुरागिनी

उन्होंने संस्कृति के चार अध्याय की याद दिलाते हुए कहा कि जिस भारतीय संस्कृति की गौरव गाथा दिनकर ने गाई है, उसे हम पुरखों की थाती समझ कर याद करते हैं । कहने लगीं, कहा भी गया है –
पड़ोसी पुरखों की छाया।
शीतल कर दे जल की काया।
ऐसी संस्‍कृति- अनुरागिनी मृदला जी के अवसान को मैं देश की एक सांस्‍कृतिक क्षति मानता हूँ। उन्‍हें हार्दिक श्रद्धांजलि।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)