दयानंद पांडेय ।
यह अच्छा ही हुआ कि मुनव्वर राना के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस ने सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के आरोप में लखनऊ में एफ आई आर दर्ज कर ली है। एफ आई आर हुई है तो कार्रवाई भी होगी ही।
फ़्रांस में इस्लामिक जेहादियों द्वारा हिंसा की पैरोकारी में वह पूरी ताकत से खड़े हो गए हैं। इस्लाम की रौशनी में वह लोगों का गला काटने को जस्टीफाई करने लगे हैं। उन के भीतर का भेड़िया जाग गया है। जाहिर है कि मुनव्वर राना की इस हिंसात्मक इस्लाम की चौतरफा निंदा हो रही है। सोचिए कि एक मुशायरे वाला शायर ही सही इस तरह किसी की हत्या के लिए हत्यारों को जस्टीफाई कैसे कर सकता हैं। यह तो बड़ी हैरत की बात है। किसी भी समुदाय, किसी भी विचारधारा या किसी भी देश का कोई भी लेखक किसी हिंसा या हत्या की पैरवी करता है तो तय मानिए कि वह लेखक या कवि नहीं है। आह से उपजा होगा गान, वैसे ही तो नहीं कहा गया है। यह ठीक है कि मुनव्वर राना की बेटी अभी-अभी कांग्रेस में दाखिल हुई है पर मुनव्वर राना की संवेदना इतनी सूख गई है कि वह हत्यारों के साथ खड़े हो गए हैं। मुनव्वर राना सिर्फ मुसलमान हैं, इंसान नहीं। धिक्कार है ऐसे करोड़ो मुनव्वर राना पर। लानत है इन पर। मुनव्वर राना का ही एक शेर है :
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दिये से मेरी मां मेरे लिए काजल बनाती है।
अफ़सोस कि फ़्रांस के जेहादी हत्यारों के साथ कंधे से कंधा मिला कर मुनव्वर राना ने मां के बनाए काजल को अपनी आंख में लगाने के बजाय अपने चेहरे पर पोत कर अपना चेहरा काला कर लिया है। इंसानियत को शर्मशार कर दिया है। धिक्कार है इस मुनव्वर राना पर। वह लोग जो इंसानियत से नहीं , अपने देश से नहीं सिर्फ इस्लाम को सब कुछ मानते हैं , धर्म की बिना पर इंसानियत और देश को घायल करते हैं , गद्दारी करते हैं , उन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं , दुनिया भर में सही सबक सिखाना बहुत ज़रूरी है। बहुत हो गया सेक्यूलरिज्म के नाम पर आग मूतना। बहुत हो गई अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अराजकता फैलाना। संविधान की दुहाई दे कर समाज में जहर फैलाने वालों को काबू करना इंसानियत के लिए बहुत ज़रूरी है। देर से ही सही , मजबूरी में ही सही मुसलमानों की फ्रांस की हिंसा को ले कर चौतरफा हमले को देखते हुए जावेद अख्तर , नसीरुद्दीन शाह जैसे तमाम लीगियों ने फ़्रांस की हिंसा की घटना की निंदा कर दी है। लेकिन मुनव्वर राना फ़्रांस मसले पर तमाम मुस्लिम देशों समेत पाकिस्तान के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हो गए हैं। जितना हो सके इस लीगी और जेहादी शायर की मजम्मत कीजिए। ताकि फिर ऐसा दुस्साहस मुनव्वर राना तो क्या कोई एक दूसरा भी करने की सोच भी न पाए।
(लेखक के ‘सरोकारनामा’ ब्लॉग से)