प्रमोद जोशी ।
फ्रांस के घटनाक्रम पर इस्लामी देशों की प्रतिक्रिया पर गौर करें, तो आप पाएंगे कि वैश्विक विरोध की कमान तुर्की अपने हाथ में ले रहा है। पाकिस्तान उसके साथ सुर मिला रहा है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों के बयान की प्रत्यक्षतः मुस्लिम देशों ने भर्त्सना की है, पर तुर्की, ईरान और पाकिस्तान को छोड़ दें, तो काफी मुल्कों की प्रतिक्रियाएं औपचारिक हैं। जनता का गुस्सा सड़कों पर उतरा जरूर है, पर सरकारी प्रतिक्रियाओं में अंतर है।
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की प्रतिक्रियाओं ने आम मुसलमान को मन में आग भड़काने का काम किया है, पर एक नया विमर्श भी शुरू हुआ है, जिसमें फ्रांस के मुसलमान भी शामिल हैं। फ्रांस में करीब 85 लाख मुसलमान रहते हैं, जो यूरोप में इस समुदाय की सबसे बड़ी आबादी है।
‘मुसलमानों को लाखों फ्रांसीसियों की हत्या करने का अधिकार’
हैरतंगेज प्रतिक्रिया 95 वर्षीय महातिर मोहम्मद की है। उन्होंने एक लम्बे ट्वीट में कहा कि अतीत में फ्रांसीसियों ने लाखों लोगों की हत्याएं की हैं। अब मुसलमानों को लाखों फ्रांसीसियों की हत्या करने का अधिकार है। महातिर अपने देश की राजनीति में विफल होने के बाद अपनी वैश्विक भूमिका देख रहे हैं, जिसमें उन्हें कुछ भी नहीं मिलने वाला।
फ्रांस में पाकिस्तान का राजदूत है ही नहीं…
पाकिस्तान और ईरान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर मैक्रों की आलोचना की है। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने फ़्रांस से अपना राजदूत वापस बुलाने की माँग की। बाद में पता लगा कि फ्रांस में पाकिस्तान का राजदूत है ही नहीं, वापस किसे बुलाएंगे। संसद ने अपने प्रस्ताव में सरकार से अपील की है कि वह दूसरे मुस्लिम देशों से फ़्रांसीसी सामान के बहिष्कार के लिए कहे।
पाकिस्तान का रास्ता
पाकिस्तानी संसद ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) से 15 मार्च को इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करने की अपील भी की है। ओआईसी के सदस्य देशों से फ्रांस की बनी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए भी कहा गया है। सवाल यह है कि ये अपीलें सऊदी अरब के सहयोग के बिना क्या लागू हो सकेंगी? तुर्की का पिछलग्गू बनकर क्या पाकिस्तान सऊदी समर्थन हासिल कर पाएगा? पाकिस्तान अब जिस रास्ते पर चला आया है, उससे न तो वापस लौट सकता है और न आगे कुछ हासिल कर पाएगा।
आने वाले समय का संकेत
सऊदी अरब की प्रतिक्रिया का संतुलन आने वाले समय का संकेत कर रहा है। सऊदी अरब सरकार ने शार्ली एब्दो के कार्टूनों की भर्त्सना की और इस्लाम को आतंकवाद के साथ जोड़ने की भी निन्दा की, पर वहाँ के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि हम हर तरह के आतंकवाद की निन्दा करते हैं। जाहिर है उनका आशय फ्रांसीसी हत्याओं से भी था।
यूएई के विदेश मंत्री अनवर गार्गाश ने एक इंटरव्यू में कहा कि मुसलमानों को मैक्रों की पश्चिमी समाज के अनुकूल ढलने की बात मान लेनी चाहिए। जर्मन दैनिक ‘डाई वेल्ट’ को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, मैक्रों ने अपने भाषण में जो कुछ भी कहा है, मुसलमानों को उसे ध्यान से सुनना चाहिए। मुसलमानों को पश्चिमी देशों के अनुरूप ढालने की जरूरत है। यह फ्रांस का अधिकार है।
इससे पहले, रविवार 1 नवंबर को अबूधाबी के क्राउन प्रिंस और यूएई सेना के उप सुप्रीम कमांडर मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान ने फ्रांस के नीस शहर में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की थी। क्राउन प्रिंस ने फ्रांस के मैक्रों से टेलीफोन पर बातचीत की और आतंकी हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना जाहिर की।
राजनीतिकरण अस्वीकार्य
क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद ने कहा कि इस तरह की गतिविधियां शांति, सहिष्णुता और प्यार का पाठ पढ़ाने वाले सभी धर्मों के सिद्धांतों और मूल्यों के खिलाफ हैं। शेख मोहम्मद ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद के लिए मुसलमानों के मन में अपार आस्था है, लेकिन इस मुद्दे को हिंसा से जोड़ना और इसका राजनीतिकरण करना बिल्कुल अस्वीकार्य है।
तुर्की, कट्टरपंथी इस्लाम, अर्थव्यवस्था की हालत
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन एर्दोआन ने पिछले दस साल में कट्टरपंथी इस्लाम का रास्ता अपनाकर इस्लामी देशों के बीच लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश की है, पर इससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है। अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ रही है, विदेशी मुद्रा कोष घट रहा है और डॉलर के मुकाबले तुर्की के लीरा की कीमत गिर रही है। तमाम दूसरे मोर्चों पर उनके हाथ सिर्फ नाकामी है और उसका जवाब वे धार्मिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों में उग्र तेवरों से देना चाहते हैं। हाल के वर्षों में एर्दोआन ने अपने देश में सैनिक बगावत का दमन किया है।
अमेरिकी डॉलर की तुलना में तुर्की के लीरा की कीमत लगातार गिरती जा रही है। बुधवार 4 नवंबर को एक डॉलर में 8.44 लीरा मिल रहे थे। अगस्त में यह विनिमय दर 7.6 थी। बोलीविया की मुद्रा बोलीविया बोलिवियानो के बाद शायद लीरा ही इस वक्त दुनिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है।
दस साल पहले तुर्की के तत्कालीन विदेशमंत्री अहमत दावुतोग्लू ने पड़ोसी देशों के साथ ‘जीरो प्रॉब्लम्स’ नीति पर चलने की बात कही थी। पर आज यह देश पड़ोसियों के साथ जीरो फ्रेंडली रह गया है। अहमत दावुतोग्लू आज एर्दोआन के विरोधी हैं। तुर्की की नई विदेश नीति पश्चिम विरोधी है। एर्दोगान को यक़ीन है कि पश्चिमी देशों का प्रभाव अब घट रहा है और तुर्की को चीन और रूस जैसे देशों के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाने चाहिए। जर्मनी, ग्रीस और दूसरे यूरोपीय देशों के साथ उसकी तनातनी चल ही रही थी, अब फ्रांस से भी दुश्मनी मोल ले ली है।
मुसलमानों को भड़काने की मुहिम पर सवाल
फ्रांस के खिलाफ मुस्लिम देशों में तेज हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच अल जजीरा को दिए इंटरव्यू में मैक्रों ने कहा, मैं कार्टून को लेकर मुसलमानों की भावनाओं को समझता हूँ और उनका सम्मान भी करता हूँ। पर उन्हें भी अपनी भूमिका को समझना चाहिए। मुझे अपने देश में शांति भी कायम रखनी है और लोगों के अधिकारों की सुरक्षा भी करनी है। मैं हमेशा अपने देश में लिखने, पढ़ने, बोलने और सोचने की आजादी का बचाव करता रहूंगा। मैं मुसलमानों का दुश्मन नहीं हूँ। वे मेरे देश के नागरिक हैं। मैं केवल इतना चाहता हूँ कि वे हमारे मिजाज को समझें।
मैक्रों ने इस्लाम के ‘पुनर्गठन’ और ‘फ्रांसीसी इस्लाम’ जैसी बातें कहकर एकबारगी चौंकाया, पर गहराई से देखें, तो उन्होंने उम्मत के नाम पर मुसलमानों को भड़काने की मुहिम पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, मैं आतंकवाद और कट्टरपंथ के विरुद्ध हूँ। मैक्रों की यह कोशिश देश में दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश भी है। जिसे ‘इस्लामोफोबिया’ कहा जा रहा है, उसे रोकने का एक रास्ता यह भी है कि मुसलमान आत्ममंथन करें और अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी हवाओं से प्रभावित होना बंद करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेख उनके ब्लॉग जिज्ञासा से लिया गया है)