प्रदीप सिंह । 
पांच राज्यों या कहिए चार राज्यों- पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और एक केंद्र शासित प्रदेश- पुदुचेरी के विधानसभा चुनाव के परिणाम 2 मई को आ जाएंगे। 29 मई को बंगाल में मतदान का आठवां और अंतिम दौर संपन्न होने के बाद एग्जिट पोल आए। एग्जिट पोल ने कोई नई बात नहीं बताई। चुनाव के पूर्व जो बात ओपिनियन पोल बता रहे थे और चुनाव के दौरान जो चर्चाएं चल रही थीं, लगभग वही बात एग्जिट पोल में भी बताई गई। एग्जिट पोल में कोई साफ तस्वीर सामने नहीं आई। कहा गया कि अमुक पार्टी जीत सकती है और …अमुक पार्टी भी सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है। विभिन्न एग्जिट पोल में न तो कोई मतैक्य दिखा, न ही कोई दिशा। 

आकलन का आधार

एग्जिट पोल को छोड़िए आप मेरा आकलन सुनिए। मैंने अपना आकलन किस आधार पर बनाया है पहले उसे बताता हूं। जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए मैं इस बार उनमें से किसी भी राज्य में नहीं गया। मेरे आकलन का आधार बना है इन राज्यों में गए लोगों से बातचीत- इन राज्यों में रह रहे उन लोगों से बातचीत जो राजनीतिक रूप से चुनाव के बारे में जानकारी रखते हैं, मतदाताओं के मन में जिस प्रकार का परिवर्तन हो रहा है उसकी खबर रखते हैं …और खासकर टेलीविजन और अखबारों में मतदाताओं से बातचीत। जब रिपोर्टर मतदाताओं के पास पहुंचे और उनसे विभिन्न सवाल किए तो उसके जवाब में मतदाता क्या बोले, वे पहले किस पार्टी को वोट दे चुके हैं और अब उस पार्टी को वोट देना चाहते हैं या नहीं… इसके बारे में मतदाताओं की बातें सुनीं। इसके अलावा लगभग चार दशक से मैं चुनावों और राजनीति को करीब से देखता-समझता रहा हूं। तो उस जानकारी और अनुभव के आधार पर मैंने यह आकलन बनाया है।

28% मुस्लिम मतदाता

Pulping the Modi script on Muslims

 

शुरुआत करते हैं असम से। यह पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य है। पिछले चुनाव में यहां बीजेपी सत्ता में आई। तब भी चुनाव के दौरान शंका जाहिर की जा रही थी कि बीजेपी सत्ता में नहीं आ सकती। क्यों नहीं आ सकती? दरअसल जहां भी बीजेपी एक बड़ी राजनीतिक शक्ति के रूप में हो- चाहे सत्ता में या मुख्य विपक्षी दल के रूप में- वहां एक सबसे बड़ा फैक्टर बन जाता है मुसलमान। बीजेपी को मुस्लिम वोटों का प्रतिशत घटा कर बाकी वोटों में से जीत के लिए वोट लाने पड़ते हैं। असम में लगभग 28% मुस्लिम मतदाता या कहें मुस्लिम आबादी है। ऐसे में बीजेपी कैसे जीत पाएगी?

सबसे बड़ी चिंता सांस्कृतिक पहचान

BJP always gave recognition to Assam: JP Nadda - The Economic Times

यहां लोग एक बात भूल रहे हैं। वह यह है कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी मुस्लिम वोट के वीटो को लगातार गलत साबित कर रहे हैं। जिस पार्टी को मुस्लिम वोट मिलेगा उसी की सरकार बनेगी- आजादी के बाद से जो यह धारणा देश में बनी हुई थी उसको नरेंद्र मोदी ने खत्म कर दिया या कहें की इस मिथक को तोड़ दिया। हम पूर्वोत्तर राज्यों के रहने वालों की बात करें या सभी प्रदेशों में जहां आदिवासी या इस प्रकार की आबादी ज्यादा है- उनकी सबसे बड़ी चिंता अपनी पहचान को लेकर है। असम में इस बार यह मुद्दा बहुत बड़ा बना हुआ है उनकी सांस्कृतिक पहचान, भाषा, परंपरा और रीति-रिवाज।

बांग्लादेश से घुसपैठ का मुद्दा

असम के लोगों को लगता है कि ये सब खतरे में पड़ गए हैं। खतरा उनको इसलिए लग रहा है क्योंकि डेमोग्राफी बदल गई है। बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ का मुद्दा लगातार बड़ा होता जा रहा है। इसे लेकर कई आंदोलन हो चुके हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। आंदोलन चलाने वाले पार्टी सत्ता में आई, फिर सत्ता से बाहर गई। ऐसी तमाम बातें हुई और वह मुद्दा अपनी जगह बना हुआ है।

बदले हुए समीकरण

अब लोगों का डर और ज्यादा बढ़ता जा रहा है खासकर इस चुनाव में बदरुद्दीन अजमल के कांग्रेस से गठबंधन के कारण समीकरण बदल गए हैं। बदरुद्दीन अजमल की पार्टी का मुख्य आधार असम में बांग्लादेश से आए हुए मुसलमान हैं। ऊपर से कोढ़ में खाज यह कि बदरुद्दीन अजमल के बेटे ने बयान दे दिया कि ‘आने वाले समय में असम में दाढ़ी, लुंगी और टोपी वालों की सरकार बनने वाली है।’ कांग्रेस का बदरुद्दीन अजमल से एलाइंस, उनके बेटे का यह बयान और भाजपा का चुनाव प्रचार- इस सब का नतीजा यह हुआ कि वहां धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हो गया। उसमें अंतर्धारा सांस्कृतिक पहचान, भाषा, स्थानीय लोगों के अपने मुद्दों की भी रही। सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई के मुद्दे पर बीजेपी असम के लोगों की इच्छा के साथ खड़ी है। वहीं कांग्रेसी और अजमल की पार्टी दूसरी तरफ खड़ी हैं।

बड़ी जीत की ओर बीजेपी

Will communal polarisation in Bengal, Assam elections aid BJP's win in the east? | Hindustan Times

ऐसे में जो टकराव की स्थिति बनी है उसमें मेरा मानना है कि असम में बीजेपी की बड़ी जीत होने जा रही है। यानी एनडीए को दो तिहाई बहुमत मिल सकता है। रही संख्याओं की बात तो उसे छोड़ दीजिए क्योंकि जब आप एक बार बहुमत का आंकड़ा पार कर जाते हैं तो यह तय हो जाता है कि सरकार आप की बनेगी। फिर उन संख्याओं का बहुत ज्यादा महत्व नहीं रह जाता। वह अकादमिक विमर्श का विषय बन जाता है।
असम में अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि पांच साल तक सर्वानंद सोनोवाल की सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी नहीं है। अगर एंटी इनकंबेंसी नहीं है तो यह मान कर चलिए कि वह सरकार लौटने वाली है। एक बड़ा सवाल यह कि अगर लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी नहीं है तो वह उसे हटाएंगे क्यों? दूसरा कांग्रेस की जो स्थिति पूरे देश में है, उससे कुछ अलग असम में भी नहीं है। इन कारणों के आधार पर मुझे लगता है कि असम में बीजेपी-एनडीए की सरकार बनना तय है। नतीजे न आएं तब तक बिल्कुल तय नहीं कहना चाहिए, लेकिन मेरे आकलन में तय है।