प्रदीप सिंह । 
पश्चिम बंगाल की बात करते हैं। यह बाकी राज्यों से एक अलग प्रकार का राज्य है। बंगाल के लोग मानते हैं कि वहां एक विशिष्टता है। वहां बाकी राज्यों की तरह जाति की राजनीति नहीं चलती, धर्म की राजनीति नहीं चलती, वहां अयोध्या आंदोलन का कोई खास असर नहीं हुआ और भाजपा को कोई समर्थन नहीं मिला- ऐसी तमाम बातें हैं। लेकिन बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दस साल पुरानी सरकार के प्रति लोगों में आक्रोश, ममता बनर्जी का चुनाव प्रचार, 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे- इन सबको देखते हुए मेरा मानना है कि पश्चिम बंगाल में पहली बार बीजेपी की सरकार बनने जा रही है और बहुत बड़े बहुमत से बनने जा रही है। ममता बनर्जी हार रही हैं। 

दीदी जीती क्यों थीं

Insulted' Mamata skips address at meeting with PM Modi - The Hindu BusinessLine

ममता बनर्जी हार क्यों रही हैं- इससे पहले संक्षेप में यह चर्चा कर लेते हैं कि वह जीती क्यों थीं?
2009 से पहली बार पश्चिम बंगाल में जाति की राजनीति शुरू हो गई। उससे पहले कांग्रेस और उसके बाद लेफ्ट ने जातियों को महत्व नहीं दिया। महत्त्व का आशय प्रतिनिधित्व नहीं दिया, सत्ता में भागीदारी नहीं दी। इससे लोगों के मन में थोड़ा-थोड़ा असंतोष पैदा होता रहा। लेकिन जो दावेदार थे उनकी भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं थी, इसलिए लोग चुप थे। 2009 में उनको लगा कि ममता बनर्जी उनको महत्व दे सकती हैं। फिर एक बदलाव आया। जातियों का उभार शुरू हुआ जिसका फायदा मिला ममता बनर्जी को। उन्होंने मतुआ संघ के लोगों को साधा, नामशोध दलितों को साधा, उनके मंदिर और मुख्यालय गईं। वहां के लिए घोषणाएं कीं। इस तरह मतुआ संघ उनके साथ हो गया।

दलित, मुस्लिम और भद्रलोक

Bengal to get Muslim-Dalit-Adivasi party | Kolkata News - Times of India

माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में तीन जनाधार या फैक्टर किसी को सत्ता में लाते हैं। एक- दलित मतदाता, दूसरा- मुस्लिम मतदाता और तीसरा- भद्रलोक। पश्चिम बंगाल में दलित और मुस्लिम मिलाकर कुल आबादी का लगभग 60 फ़ीसदी हैं जो किसी भी अन्य राज्य में नहीं हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल के भद्रलोक की वहां के सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर जो पकड़ और प्रभाव है, वैसा किसी भी अन्य राज्य में नहीं है। भद्रलोक का मतलब सवर्ण जातियां (जिनकी संख्या बहुत कम है), बुद्धिजीवी और इसके अलावा कला- संस्कृति- फिल्मों से जुड़े लोग। इस भद्रलोक को ओपिनियन मेकर माना जाता है। जब दलित उभार और जातीय उभार की बातें होने लगीं, तो यह कहा गया कि भद्रलोक ऐसा होने ही नहीं देगा।
यह तीनों फैक्टर जिसके साथ होते हैं वह सत्ता में आता है। यह 2016 तक दिखाई दे रहा था। क्या इस बार यह मिथक टूट जाएगा? हम यहां बात कर रहे हैं कि ममता बनर्जी जीती क्यों? उनकी जीत का कारण बना इन तीनों समुदायों मुसलमान, दलित और भद्रलोक का लेफ्ट से कटकर उनके साथ आ जाना।

निश्चिंत और निरंकुश

What TMC's Heckling of a Muslim Cleric Tells Us About Bengal Politics and 'Minority Appeasement'

2011 में ममता की जीत हुई। उनको लगा कि अगर मुस्लिम समुदाय को और अच्छी तरह जोड़ लिया जाए और उसमें अपना जनाधार और बढ़ा लिया जाए तो लेफ्ट और कांग्रेस को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है। फिर बंगाल में कोई विपक्ष, कोई विरोध नहीं रह जाएगा और मेरा एकछत्र राज होगा। उस रास्ते पर वह चल पड़ीं। इस बीच उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस में भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार आदि बढ़ने लगा। 2016 की जीत ने उन्हें निश्चिंत और निरंकुश दोनों बना दिया। उनको लगा अब विपक्ष बिल्कुल खत्म हो चुका है। विधानसभा की 294 में से 211 सीटें मिल गई हैं। स्थापित विपक्ष पूरी तरह खत्म हो गया और कोई नया विपक्ष सामने आया नहीं। इस तरह ममता बनर्जी का रास्ता बिल्कुल साफ था।
नतीजा यह हुआ कि वह गाफिल हो गईं। 2018 के पंचायत चुनाव में उन्होंने जमकर धांधली कराई, एक तिहाई लोगों को नामांकन पत्र नहीं भरने दिया, जगह-जगह हिंसा हुई, गांव-गांव में जो भी उनके खिलाफ था उनको मारापीटा। विरोधियों पर ममता बनर्जी का दमन चक्र इस प्रकार चला की वाममोर्चा की सरकार के दिनों के मुकाबले लोगों के मन में भय और ज्यादा बढ़ गया। उधर ममता बनर्जी को लगा कि इससे उनके राजनीतिक भविष्य और चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यही उन्होंने गलती की।

भाजपा की एंट्री की खबर तक न लगी

TMC killing democracy in Bengal: Kailash Vijayvargiya

इसी मौके का फायदा उठाकर भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में घर बना लिया। ममता बनर्जी को इसका अंदाजा नहीं था। भारतीय जनता पार्टी ने पहले मतुआ समुदाय और नामशोध समुदाय को अपने साथ जोड़ा। उनको आश्वासन दिया कि वह उनकी नागरिकता संबंधी व अन्य समस्याएं हल करेगी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी देगी। इसके अलावा महेशिया समाज को अपने साथ जोड़ा। यह पिछड़ा समाज माना जाता है जिसकी आबादी 9 फ़ीसदी है। ये लोग 12 लोकसभा और 84 विधानसभा सीटों पर चुनाव पलटने की ताकत रखते हैं।

बदली रणनीति

Carving Footprints: Leaders Who Have Helped BJP Expand Its Dalit Vote Base in Bengal

जैसी की देशभर में बीजेपी के बारे में धारणा है और उसमें काफी सच्चाई भी है कि वह अगड़ी जातियों की पार्टी है। कई राज्यों में अगड़ी जातियां उसके साथ हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में उल्टा हो रहा है। अगड़ी जातियां उसके साथ नहीं आईं। वहां बीजेपी ने दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग को साधा है।
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका लाभ मिला और वहां 42 में से 18 सीटी जीत गई। तब ममता बनर्जी को बहुत बड़ा झटका लगा। उनको समझ में नहीं आया कि यह हो कैसे गया और बीजेपी इतनी अच्छी संख्या में कहां से आ गई। हमने लेफ्ट और कांग्रेस को खत्म कर दिया था और बीजेपी का तो यहां कोई जनाधार भी नहीं था। 2016 में जिस बीजेपी ने विधानसभा की तीन सीटें जीती थीं वह इतना ऊपर कैसे आ गई?

गलतियां जो पड़ीं महंगी

ममता बनर्जी को लगा कि इस झटके से उबरने के लिए उन्हें स्थिति सुधारनी चाहिए। वह इसकी कोशिश करतीं, इसी बीच उन्होंने और गलतियां कर दीं। एक- भतीजे को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया। उसे आगे बढ़ाने लगीं जिससे पार्टी में नाराजगी हुई और लोग धीरे-धीरे पार्टी छोड़कर जाने लगे। ममता बनर्जी से दूसरी बड़ी गलती हुई- कोरोना और अम्फन तूफान से राहत और बचाव के कार्यों में तृणमूल के लोगों ने ऐसा भ्रष्टाचार किया और ऐसी लूट मचाई के लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। ममता बनर्जी सरकार की सारी अच्छी नीतियां पीछे चली गईं और यह भ्रष्टाचार जनता के सामने उजागर हो गया। जनता को लगा कि पहले इस भ्रष्टाचार से निपटना जरूरी है।

मतुआ समुदाय का भरोसा

Matua community in West Bengal | कौन हैं मतुआ समुदाय के लोग? बंगाल की सियासत में क्‍या है इनकी अहमियत? West Bengal assembly polls 2021: matua community importance in Begal politics, PM

उधर 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत के बाद बीजेपी ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून पास करा दिया और मतुआ समुदाय से कहा कि आप निश्चिंत रहिए। हम सीएए लागू करेंगे और आप वैधानिक रूप से इस देश के नागरिक बन जाएंगे। 2019 में बीजेपी ने मतुआ समुदाय को नागरिकता का आश्वासन देकर अपने साथ जोड़ा था …और 2021 में वह इस आधार पर बीजेपी से जुड़ा है कि कानून बन चुका है, अब अगर भाजपा बंगाल में सत्ता में आई तो हमें नागरिकता मिल जाएगी। ये बातें ममता बनर्जी की हार के कारण बन रही हैं।

बीजेपी की जीत के बड़े कारण

Bhadralok and the myth of casteless West Bengal politics

बीजेपी की जीत के दो और बड़े कारण हैं। एक- ममता बनर्जी के प्रति लोगों में नाराजगी, उनके भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश। दूसरा- 2018 के पंचायत चुनावों में हुई हिंसा ने लोगों को बुरी तरह हिला दिया। उनको लगता है अगर ममता बनर्जी फिर से सत्ता में आईं तो और बड़े पैमाने पर हिंसा होगी जो कि वे नहीं चाहते। इस कारण भी ममता बनर्जी को जाना पड़ेगा।

लेफ्ट और कांग्रेस

Bengal Assembly elections: Cong to contest on 92 seats, Left Front get 101 | Hindustan Times

इसके अलावा एक और कारण है कि लेफ्ट और कांग्रेस जो 2016 में सिकुड़ गए थे वे अब सिमट गए हैं। उनका बिल्कुल सफाया हो रहा है। उनका वोट 2019 में भी बीजेपी को ट्रांसफर हुआ और इस बार और ज्यादा हो रहा है। यह भी बीजेपी की जीत का कारण बनेगा।