प्रदीप सिंह।
दक्षिण का राज्य केरल ‘गॉड्स ओन कंट्री’ कहलाता है। यहां 42 साल से एक परंपरा चली आ रही है कि एक बार एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट) सत्ता में आता है तो अगली बार यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) सरकार बनाता है। यूडीएफ का नेतृत्व कांग्रेस करती है और एलडीएफ का नेतृत्व सीपीएम यानी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी करती है। इस बार सीपीएम सत्ता में है तो यह माना जा रहा था कि अगली बार कांग्रेस की बारी है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि वहां यह परंपरा टूटने वाली है और एलडीएफ यानी लेफ्ट फ्रंट फिर से सत्ता में आने वाला है।
कांग्रेस का सफाया
इसका कारण यह है कि कांग्रेस की स्थिति जैसी देश में है वैसी ही असम और केरल में है। निराशा, संगठन में फूट, आपसी लड़ाई, लोगों से संपर्क का कम होना -ऐसा सब जगह है… और यही केरल में भी है। केरल में जमीनी स्थिति की जानकारी रखने वालों का कहना है कि राहुल गांधी के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र वायनाड में केवल तीन विधानसभा सीटें हैं और वे तीनों कांग्रेस हार रही है। 42 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि केरल में वही दल पुनः सत्ता में आएगा जो पहले से सत्ता में था।
2021 का केरल, 2016 का बंगाल
अगर हम ध्यान से देखें तो 2021 का केरल उस स्थिति में है जिस स्थिति में 2016 में बंगाल था। तब बंगाल में क्या स्थिति थी? स्थापित विपक्ष समाप्त हो गया था और कोई नया विपक्ष उभरा नहीं था। आज केरल में भी वही स्थिति है। केरल में जो नया विपक्ष हो सकता है बीजेपी, वह वहां उसी हालत में है जिस हालत में 2016 में बंगाल में थी। केरल में उसकी अगर तीन विधानसभा सीटें भी आ जाएं तो एक बड़ा इत्तेफाक होगा। 2016 में बंगाल में भाजपा की 3 विधानसभा सीटें थी। केरल में कांग्रेस का सफाया होने जा रहा है।
तमिलनाडु में नास्तिक पार्टी बनी आस्तिक
तमिलनाडु दक्षिण का एक ऐसा राज्य है जहां द्रविड़ आंदोलन की राजनीति लंबे समय से चल रही है। द्रविड़ आंदोलन एमजीआर के जाने के बाद कमजोर पड़ा तो अब करुणानिधि और जयललिता के न रहने पर लगभग समाप्ति की ओर है। वह अंतिम सांसे ले रहा है। तमिलनाडु के इस पूरे चुनाव में कोई द्रविड़ आंदोलन की, उसकी आत्मा की, सिद्धांतों और नीतियों की- बात नहीं कर रहा है।
दिशाहीन अन्नाद्रमुक
जयललिता की मृत्यु के बाद अन्नाद्रमुक के कई टुकड़े हो गए और वह पूरी पार्टी दिशाहीन लग रही है। उनको आपस में जोड़ने वाला कोई नेता नहीं है। वे सत्ता में हैं इसलिए दिखाई दे रहे हैं। अन्नाद्रमुक इस बार सत्ता से बाहर होने जा रही है इसमें किसी को कोई शक नहीं है। एमके स्टालिन सत्ता में आ रहे हैं। द्रमुक- जिसके नेता हैं स्टालिन- वह नास्तिकों की पार्टी थी। यानी उनकी जो लोग धर्म में विश्वास नहीं करते थे। और इस पार्टी का नेता यह सफाई दे रहा है कि मेरी पत्नी कर्मकांडी हिंदू है, वह तमिलनाडु के हर मंदिर में दर्शन करने गई है, हमारे सभी कार्यकर्ता धार्मिक हैं और त्रिपुंड लगाते हैं। इसके अलावा स्टालिन ने अपनी पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में वादा किया है कि अगर हम सत्ता में आए तो हर साल इतने लाख लोगों को तीर्थ यात्रा पर भेजेंगे। अब यह नास्तिक पार्टी आस्तिक हो रही है। यानी देश बदल रहा है। यह दौर नास्तिकों के आस्तिक होने का है। धर्म के प्रति- या कहें कि हिंदू धर्म के प्रति- लोगों का रुझान बढ़ रहा है। राजनीतिक दलों को समझ में आ रहा है कि एकतरफा विमर्श अब नहीं चलने वाला।
पांच में से तीन राज्य बीजेपी के
मेरा आकलन या अनुमान, आप जो भी नाम दें, उसके अनुसार पांच में से तीन राज्यों में बीजेपी-एनडीए की जीत होने जा रही है। पश्चिम बंगाल में पहली बार सरकार बनने जा रही है। असम में सत्ता में वापसी हो रही है। पुदुचेरी में भाजपा की सरकार बन रही है- ऐसा लगभग सभी लोग मान रहे हैं। वहां भाजपा का एआईएनआरसी से गठबंधन है। वह सत्ता में आने वाला है।
केरल में सीपीएम एक व्यक्ति की पार्टी
चौथा राज्य है केरल जहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) जीत रही है। लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सीपीएम राष्ट्रीय पार्टी से क्षेत्रीय पार्टी होते हुए अब एक व्यक्ति की पार्टी होने जा रही है। केरल में सीपीएम पिनराई विजयन की पार्टी होने जा रही है। अब पार्टी में उन्हीं की चलेगी। सेंट्रल कमेटी या पोलित ब्यूरो की अब पार्टी में नहीं चलने वाली है। तमिलनाडु में साफ दिखाई दे रहा है कि स्टालिन की ताजपोशी होने वाली है।