भारत में कार्तिक कृष्ण पक्ष में पांच पर्वों का जो विराट महोत्सव मनाया जाता है, महापर्व की उस श्रृंखला में सबसे पहले पर्व धनतेरस के बाद दूसरा पर्व आता है ‘नरक चतुर्दशी’। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाए जाने वाले पर्व ‘नरक चतुर्दशी’ नाम में ‘नरक’ शब्द से ही आभास होता है कि इस पर्व का संबंध भी किसी न किसी रूप में मृत्यु अथवा यमराज से है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन यमराज का पूजन करने तथा व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती। दीवाली से ठीक एक दिन पहले मनाए जाने वाले इस पर्व की तिथि को लेकर लोगों के मन में भ्रम की स्थिति है कि यह पर्व 11 नवम्बर को मनाया जाएगा या 12 नवम्बर को। दरअसल कई स्थानों पर यह पर्व इस बार दीवाली के साथ 12 नवम्बर को ही मनाए जाने का उल्लेख है लेकिन हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि इस बार 11 नवम्बर 2023 को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 12 नवम्बर 2023 को दोपहर 2 बजकर 44 मिनट पर इसका समापन होगा। ऐसे में यह पर्व 11 नवम्बर को ही मनाया जाएगा।
आज मृत्यु के देवता यमराज और धर्मराज चित्रगुप्त का पूजन होगा
इस दिन सायं 5 बजकर 29 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक दीपदान का शुभ मुहूर्त है। इस पर्व को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘काल चतुर्दशी’ तथा ‘छोटी दीवाली’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और धर्मराज चित्रगुप्त का पूजन किया जाता है और यमराज से प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। इसी दिन रामभक्त हनुमान का भी जन्म हुआ था और इसी दिन वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हुए तीनों लोकों सहित बलि के शरीर को भी अपने तीन पगों में नाप लिया था। हनुमान जयंती वैसे तो चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, लेकिन उत्तर भारत के कई भागों में यह दीवाली से एक दिन पहले भी मनाई जाती है।
संयम-नियम से रहने वालों को मृत्यु से नहीं होना चाहिए जरा भी भयभीत
यम को मृत्यु का देवता और संयम के अधिष्ठाता देव माना गया है। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना शुभ माना गया है और सायंकाल के समय यम के लिए दीपदान किया जाता है। आशय यही है कि संयम-नियम से रहने वालों को मृत्यु से जरा भी भयभीत नहीं होना चाहिए। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का आशय ही आलस्य का त्याग करने से है और इसका सीधा संदेश यही है कि संयम और नियम से रहने से उनका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा और उनकी अपनी साधना ही उनकी रक्षा करेगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने किया था आज ही के दिन नरकासुर राक्षस का वध
नरक चतुर्दशी मनाए जाने के संबंध में एक मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने प्रागज्योतिषपुर के राजा ‘नरकासुर’ नामक अधर्मी राक्षस का वध किया था और ऐसा करके उन्होंने न केवल पृथ्वीवासियों को बल्कि देवताओं को भी उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उसके आतंक से पृथ्वी के समस्त शूरवीर और सम्राट भी थर-थर कांपते थे। अपनी शक्ति के घमंड में चूर नरकासुर शक्ति का दुरूपयोग करते हुए स्त्रियों पर भी अत्याचार करता था। उसने 16000 मानव, देव एवं गंधर्व कन्याओं को बंदी बना रखा था। देवों और ऋषि-मुनियों के अनुरोध पर भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से नरकासुर का संहार किया था और उसके बंदीगृह से 16000 कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए और उन्होंने यह पर्व मनाया गया। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परम्परा शुरू हुई।
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जब भगवान वामन ने नाप दिया था तीन पगों में सारा ब्रह्माण्ड
धनतेरस, नरक चतुर्दशी तथा दीवाली के दिन दीपक जलाए जाने के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि इन दिनों में वामन भगवान ने अपने तीन पगों में सम्पूर्ण पृथ्वी, पाताल लोक, ब्रह्माण्ड व महादानवीर दैत्यराज बलि के शरीर को नाप लिया था और इन तीन पगों की महत्ता के कारण ही लोग यम यातना से मुक्ति पाने के उद्देश्य से तीन दिनों तक दीपक जलाते हैं तथा सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं।
यह भी कहा जाता है कि बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने बाद में पाताल लोक का शासन बलि को ही सौंपते हुए उसे आशीर्वाद दिया था कि उसकी याद में पृथ्वीवासी लगातार तीन दिन तक हर वर्ष उनके लिए दीपदान करेंगे। नरक चतुर्दशी का संबंध स्वच्छता से भी है। इस दिन लोग अपने घरों का कूड़ा-कचरा बाहर निकालते हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करने से पुण्य मिलता है। -योगेश कुमार गोयल