दूसरे जिलों और राज्यों के भी आते हैं सैलानी
ऊंचे पहाडो़ं और घने जंगलों के बीच स्थित पेरवाघाघ जलप्रपात के आकर्षक दृश्य का लुत्फ उठाने सैलानी खींचे चले आते हैं। खूंटी, तोरपा, तपकारा, मुरहू ,रनिया, कमडारा के अलावा रांची और दूसरे जिलों और राज्यों के सैलानी भी यहां पहुंचते हैं। जिला प्रशासन के सौजन्य से सैलानियों की सुविधा के लिए पेरवां घाघ में आधारभूत संरचना का विकास किया जा रहा है। इसका सौंदर्यीकरण कराया जा रहा है। पर्यटकों के जलप्रपात परिसर में सुगमतापूर्वक उतरने के लिए रेलिंग युक्त सीढ़ी, वाच टावर, यात्री शेड का निर्माण कराया गया है। पेरवांघाघ के झील का आनंद लेने के लिए नौका विहार की भी व्यवस्था है।
पर्यटन मित्र और गोताखोर तैनात
जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराये गये लाइफ जैकेट का प्रयोग कर सैलानी नौका विहार का लुत्फ उठाते हैं। पेरवा घाघ में पर्यटकों की सुविधा के लिए सुबह से लेकर शाम तक पर्यटन मित्र और गोताखोर तैनात रहते हैं। पेरवा का नागपुरी भाषा में अर्थ है कबूतर और घाघ का अर्थ ऊंचाई से झील में गिरता पानी। यहां कोयल और कारो नदी के संगम का पानी 80 फीट की ऊंचाई से झील में गिरता है।
गुफा में अति प्राचीन शिवलिंग स्थापित
आसपास के लोग बताते हैं कि पहाडों की गुफाओं में कबूतरों का निवास आज भी है। इसलिए इसका नाम पेरवा घाघ पड़ा। यहां स्थित एक गुफा में अति प्राचीन शिवलिंग स्थापित हैं। इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना गांव के पाहन वर्षों से करते आ रहे हैं। पेरवा घाघ में कई छोटे-बड़े जल प्रपात हैं।
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खराब सड़क बनती है परेशानी का सबब
वैसे तो पेरवाघाघ जन प्रपात की सुंदरता लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है, लेकिन तपकारा से पेरवाघाघ जक की खराब और संकीर्ण सड़क सैलानियों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि पेरवाघाघा और उससे आगे पाड़ी पुड़िंग जल प्रपात तक अच्छी सडक बन जाए, तो सैलानियों की संख्या में वृद्धि होगी और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।(एएमएपी)