जहां बौद्ध धर्म होगा, वहां हिन्दू धर्म बचेगा।
आपका अख़बार ब्यूरो।
बुद्ध पूर्णिमा के उपलक्ष्य में संस्कृति मंत्रालय के स्वायत्त संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में “इकोज ऑफ एनलाइटनमेंट: आईजीएनसीए जर्नी इनटू बुद्धिज्म” पुस्तक का लोकार्पण किया गया। आईजीएनसीए द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण केन्द्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के महानिदेशक श्री अभिजीत हलदर, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. सुधामही रघुनाथन, दिल्ली विश्विद्यालय के प्रो. अमरजीव लोचन और आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) एवं कलानिधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौड़ जैसे विद्वत्जन ने किया। इस पुस्तक का संपादन आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और डॉ. मयंक शेखर ने किया है।
यह पुस्तक बौद्ध धर्म के क्षेत्र में आईजीएनसीए के महत्वपूर्ण प्रयासों के बारे में विस्तृत जानकारी देने के साथ-साथ बौद्ध धर्म के संक्षिप्त ऐतिहासिक विकास, इसके दार्शनिक आधार और पूरे एशिया में इसके सांस्कृतिक प्रभाव का विवरण प्रस्तुत करती है।
इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में श्री रामबहादुर राय ने कहा कि आज के माहौल में गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध से हमें और पूरी दुनिया को दो चीजें सीखनी हैं- करुणा और सम्वाद। आज इसकी बहुत आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज भारत में, भारत के समाज में बुद्ध को जिस तरह से व्याख्यायित किया जा रहा है, वह हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। बुद्ध ब्राह्मण विरोधी हैं, ये एक विमर्श भारत में चलाने की कोशिश की जा रही है और उसके लिए बड़े-बड़े विद्वान लगे हुए हैं। अब जिस में करुणा है, वह किसी के खिलाफ कैसे हो सकता है!
श्री अभिजीत हलदर ने कहा कि यह बहुत सुंदर पुस्तक है। उन्होंने कहा कि बुद्ध की शिक्षाएं अतीत के मुकाबले वर्तमान में ज्यादा प्रासंगिक हैं। श्री हलदर ने बताया कि ऐतिहासिक आक्रमणों के कारण बौद्ध ज्ञान को काफी नुकसान हुआ है, जिसे अब पुनर्स्थापित किए जाने की जरूरत है। यह पुनर्स्थापना धर्म की समझ और मानव जाति की भलाई में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। सोवियत मंगोलिया के बाद के अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे बौद्ध धर्म ने देश को सकारात्मक रूप से बदल दिया। उन्होंने इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) और आईजीएनसीए के बीच भविष्य में सहयोग की संभावना का भी उल्लेख किया। उन्होंने अपने सम्बोधन के अंत में व्यक्तियों को ‘शील’ (नैतिकता), ‘समाधि’ (एकाग्रता और ध्यान) और ‘प्रज्ञा’ (बुद्धि और समझ) का अभ्यास करके समाज की भलाई के लिए बौद्ध शिक्षाओं के प्रसार में योगदान करने का आह्वान किया।
प्रो. सुधामही रघुनाथन ने कहा कि बौद्ध धर्म जिस तरह से भारत के बाहर फैला, वह शानदार और बहुत सुंदर है। बौद्ध धर्म पश्चिम की ओर पहुंचने वाला पहला सुव्यवस्थित धर्म है। उन्होंने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि यह न सिर्फ आईजीएनसीए, बल्कि पूरी मानवता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
प्रो. अमरजीव लोचन ने कहा, जहां-जहां बौद्ध धर्म होगा, वहां हिन्दू धर्म बचेगा और जहां-जहां हिन्दू धर्म बचेगा, वहां बौद्ध धर्म बचेगा। एक-दूसरे की सम्पूरकता समझने का नजरिया भी हमें बाहर से समझना पड़े, ऐसे न हो, तो अच्छा होगा। हिन्दू परम्परा और बौद्ध परम्परा में अन्योन्याश्रय सम्बंध है, उन्होंने इसे एक उदाहरण से बताया। श्रीलंका में दो साल पहले एक प्रमुख बौद्ध मंदिर में बुद्ध पूर्णिमा पर्व पर पूजा शुरू होने में दो घंटे की देरी हो गई। इसका कारण था कि पूजा के लिए एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण चीज उपलब्ध नहीं थी। और वह थी, गाय का दूध।
इससे पूर्व, पुस्तक के सह-संपादक डॉ मयंक शेखर ने पुस्तक के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में तीन खंड हैं। पहला खंड आईजीएनसीए के बारे में है, दूसरा खंड बुद्ध और बौद्ध धर्म के बारे में है तथा तीसरा खंड बुद्ध व बौद्ध धर्म के क्षेत्र में आईजीएनसीए द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने इस कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी और फिर अंत में अतिथियों और आगंतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन कलानिधि के श्री गोपाल ने किया।
पुस्तक के बारे में
अपनी स्थापना के बाद से, आईजीएनसीए ने बौद्ध धर्म के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय प्रकाशन, सेमिनार, कार्यशालाएं, सम्मेलन और प्रदर्शनियां आयोजित की हैं। मंगोलियाई कंजूर के 108 खंडों के सेट का प्रकाशन, सिद्धम कैलिग्राफी ऑफ संस्कृत हेरोनिम्स, संस्कृत मैन्यूस्क्रिप्ट्स फ्रॉन जापान, अजंता- हैंडबुक ऑफ पेंटिंग्स, एलिमेंट्स ऑफ बुद्धिस्ट आईकॉनोग्राफी, द स्टाइलिस्टिक्स ऑफ बुद्धिस्ट आर्ट, ग्रंथों की पुरातात्विक आलोचना पर आधारित बाराबुदुर स्केच ऑफ ए हिस्ट्री ऑफ बुद्धिज्म, हज़ार भुजाओं वाले ‘अवलोकितेश्वर’ इसके कुछ प्रसिद्ध प्रकाशन हैं। आईजीएनसीए लोगों को बौद्ध धर्म के समृद्ध इतिहास और बौद्ध धर्म भारत के बाहर कैसे फैला, इसके बारे में जागरूक करने के लिए बौद्ध अध्ययन पर पाठ्यक्रम भी संचालित कर रहा है। पिछले वर्ष आयोजित प्रदर्शनी ‘ग्रेटर इंडिया मैप मॉडलः बुद्ध एक्जीबिशन ऑन द बुद्ध फुटस्टेप्’ के बारे में भी इस पुस्तक में जानकारी दी गई है, जिसमें बौद्ध धर्म पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए भारत और पूर्वी एशियाई देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्बंधों को दर्शाया गया है।
इस प्रकार, यह पुस्तक बौद्ध धर्म के क्षेत्र में सांस्कृतिक संरक्षण और प्रसार के लिए आईजीएनसीए के संस्थागत समर्पण को दर्शाती है और साथ ही, यह प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की इस दृष्टि के अनुरूप है कि ‘बुद्ध व्यक्ति से परे, एक धारणा हैं। बुद्ध एक ऐसा विचार हैं, जो वैयक्तिकता से ऊपर है। बुद्ध एक विचार हैं, जो रूपातीत हैं। वह एक चेतना हैं, जो अभिव्यक्ति से परे है। यह बुद्ध चेतना शाश्वत है, नित्य है। यह विचार शाश्वत है। यह अनुभूति विशिष्ट है।
यह पुस्तक जीवंत और विचारोत्तेजक तस्वीरों से परिपूर्ण है, जो बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक और ऐतिहासिक आयामों में एक वातायन की तरह कार्य करती है। यह पाठकों को अपने साथ अन्वेषण और खोज की यात्रा पर चलने को आमंत्रित करती है। इस प्रकार, यह पुस्तक बौद्ध धर्म की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व बौद्धिक विरासत तथा समकालीन विश्व में इसकी प्रासंगिकता में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक मूल्यवान संसाधन सिद्ध होगी, ऐसी आशा है।