अमीश त्रिपाठी ।

ब्राह्मण- क्षत्रिय- वैश्य- शूद्र केवल वर्ण के नाम नहीं है। युग भी ब्राह्मण- क्षत्रिय- वैश्य- शूद्र होते हैं …और उनकी सत्ताएं भी? पूरी दुनिया में काल के अनंत चक्र में ये युग बार-बार आते रहते हैं। किसी युग में ब्राह्मण, किसी में क्षत्रिय तो किसी में वैश्य और किसी युग में शूद्र की प्रतिनिधि सत्ता चलती है। क्षत्रिय युग में युद्धकला में पारंगत लोग शक्तिशाली थे- तो वैश्य युग में कारोबार-व्यापार के जरिए धन-संपत्ति जमा करने वाले।


 

कल्पना करें कि आप इतिहास की सबसे खतरनाक सेनाओं में से किसी के गर्वोन्मत्त सैनिक, मध्ययुग के खूंखार मंगोल/तुर्क योद्धा हैं। आपकी विजयी सेना ने चीन, अरब, यूरोप और भारत में मौत और तबाही मचा दी है। आप खुद को बेहतरीन योद्धा के तौर पर देखते हैं। अब हम कल्पना करते हैं कि, विज्ञान के चमत्कार के जरिए, आप समय-चक्र को पार करके इक्कीसवीं सदी में आ जाते हैं। अब सामाजिक संरचना के संदर्भ में आपने जो देखा, उससे क्या हैरान रह जाएंगे? निश्चय ही!

आज की बेहतरीन जीवनशैली राज्य-प्रमुखों (सैनिक के युग के राजा के समकक्ष) या सेना-प्रमुखों तक के लिए उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय यह कामयाब बिजनेसमैन का विशेषाधिकार है।

सेना के जनरल की आय किसी मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन में मध्य स्तर के कर्मचारी से भी कम है। समय-चक्र पार करके आए सैनिक के युग के विपरीत, जब अपने निम्नतर स्तर की ओर से बाखबर व्यापारी अधीनस्थों की तरह राजाओं के पास जाते थे… आज बिजनेसमैन वास्तव में अपने नेताओं के सामने मांगें रखता है। आज के युवा कंपनियों में जाने या कारोबार शुरू करने का प्रशिक्षण लेते हैं- मध्ययुग के विपरीत जब प्रतिभाशाली नौजवान सेना में जाने की हसरत रखते थे। समय के पार आए सैनिक को यह हैरान कर सकता है, मगर हमें नहीं। क्यों? क्योंकि हम पैसे के युग, या जैसा कि हमारे शास्त्र कहते हैं वैश्य युग में रहते हैं। इसका संबंध किसी जाति से नहीं, बल्कि जातिगत व्यवसाय से है। इस तरह से ब्राह्मण युग ज्ञान का युग है; क्षत्रिय युग योद्धा प्रतिभाओं और सैन्यवाद का युग है और शूद्र युग व्यक्तिवाद का युग है। काल के अनंत चक्र में ये युग बार-बार आते रहते हैं। क्षत्रिय युग में जो लोग युद्धकला और हिंसा में पारंगत थे, वही शक्तिशाली और सम्मानित थे… जो लोग कारोबार और व्यापार के जरिए धन-संपत्ति जमा करते हैं, वे वैश्य युग में शक्तिशाली और समृद्ध होंगे। महत्वपूर्ण रूप से, सामाजिक बदलाव लागू करने का सबसे सक्षम साधन उस युग का प्रमुख जातिगत व्यवसाय है जिसमें आप रहते हैं। सैन्य युग (जिससे हम हाल ही में निकले हैं) और पैसे के युग (जिसमें हम वर्तमान में हैं) की मदद से मैं इसे समझाने की कोशिश करता हूं।

सैन्य युग में बदलाव की सबसे अहम मुद्रा हिंसा थी। धर्मों को हिंसा से बढ़ाया और फैलाया जाता था- उन अधिकांश धर्मों की रक्षा- जो आज की तारीख तक बचे रहे हैं- योग्य और प्रतिष्ठित योद्धाओं ने ही की थी, जैसे सलाउद्दीन और रिचर्ड द लॉयनहार्ट। लोगों के लिए अपना स्तर बढ़ाने का सबसे प्रभावशाली तरीका सैन्य ताकत के जरिए था… तो कोई हैरानी नहीं कि ज्यादातर संस्कृतियों में सेना एक सम्मानित संगठन हुआ करती थी। आज हम देखते हैं कि जो राष्ट्र जरूरत से ज्यादा हिंसक हैं, वे प्रगति नहीं कर रहे हैं- उदाहरण के लिए सोमालिया। मगर सैन्य युग में जो लोग हिंसा करने में माहिर थे वे दुनिया भर में विशिष्ट हो गए, उदाहरण के लिए- मंगोल/तुर्क कबीले। सैन्य युग में धन या ज्ञान सत्ता पाने के सबसे ज्यादा प्रभावशाली रास्ते नहीं थे। पैसा कमाने की कला या ज्ञानार्जन का वजूद था, मगर वे परिवर्तन की प्रबल मुद्रा नहीं थे। सफल लीडर वह नहीं था जो समृद्ध या शिक्षित लोगों के समूह से घिरा रहता था, हालांकि उनके अपने लाभ थे… बल्कि सफल लीडर वह होता था जिसके साथ सबसे ज्यादा निर्भीक योद्धा रहते थे। आज, हम पैसे के युग में, या वैश्यों के तौर तरीकों में रहते हैं। परिवर्तन की सबसे ज्यादा सक्षम मुद्रा पैसा है… हिंसा नहीं। कुछ लोग युग के नियमों को स्वीकार करते हैं और समृद्ध होते हैं। दूसरे नहीं मानते और दुख पाते हैं। (जारी)

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