#pradepsinghप्रदीप सिंह।

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं में से एक गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। वे 35 साल तक पार्टी में महामंत्री रहे, लगभग 40 साल तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रहे, केंद्र में मंत्री, राज्यसभा में पार्टी के नेता और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे। अपने जीवन के 50 साल खपाने के बाद उन्होंने पार्टी के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। वे कांग्रेस से इस्तीफा दे देंगे या कांग्रेस से दूर जा रहे हैं यह पिछले दो साल से बड़ा स्पष्ट रूप से दिख रहा था। जी-23 (कांग्रेस के असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं का समूह जिनमें आजाद भी शामिल थे) के नेताओं ने जबसे चिट्ठी लिखी थी तभी से लग रहा था कि गांधी परिवार और जी-23 के बीच में दरार आ गई है। उसका कारण मोटे तौर पर तो सबको दिखाई दे रहा था कि क्या हो रहा है लेकिन सिर्फ गांधी परिवार को नहीं दिखाई दे रहा था।

बड़ी खबर इस्तीफा नहीं… सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है यह बड़ी खबर नहीं है। बड़ी खबर यह है कि उन्होंने सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिखी है जिसे उन्होंने मीडिया में जारी कर दिया। उस चिट्ठी में जिस तरह की बातें राहुल गांधी के बारे में लिखी गई हैं, अगर राहुल गांधी में थोड़ा भी आत्म-सम्मान होगा तो उन्हें सक्रिय राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए। आजाद ने कहा कि राहुल गांधी बचकाना बातें करते हैं। जनवरी 2013 में जयपुर अधिवेशन में जबसे आपने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है तब से कांग्रेस की चाल-ढाल बदल गई है। उपाध्यक्ष बनते ही उन्होंने पहला काम यह किया कि पार्टी में जो कंसल्टेशन का मैकेनिज्म था उसे खत्म कर दिया। आप केवल नाम की अध्यक्ष हैं, पार्टी के बारे में सारे फैसले राहुल गांधी लेते हैं। आजाद यहीं तक रुक जाते तो शायद गनीमत थी, उन्होंने कहा कि उनका पीए (निजी सचिव) और उनके सुरक्षा गार्ड भी पार्टी के फैसले लेते हैं। राहुल गांधी ने जिस दिन सार्वजनिक रूप से मनमोहन सरकार का अध्यादेश फाड़ा था उससे ज्यादा पार्टी की- किसी सरकार की- बेइज्जती नहीं हो सकती। उन्होंने इस अपमान के जरिये न सिर्फ पार्टी की- बल्कि प्रधानमंत्री पद की और कैबिनेट की गरिमा गिराई क्योंकि वह प्रस्ताव कांग्रेस वर्किंग कमिटी, कैबिनेट और फिर संसद से पास हुआ था जिसे राष्ट्रपति ने मंजूरी दी थी। उनके इस तरह के व्यवहार ने पार्टी की प्रतिष्ठा को बहुत ठेस पहुंचाई।

वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं का अपमान

आजाद ने चिट्ठी में कहा कि पार्टी को आजकल अनुभवहीन और साइकोफैन्स की कोटरी चला रही है। उनके कहने से पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं का अपमान किया जाता है, उनको किनारे लगाया जाता है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है। उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 2013 में एक कमेटी बनी थी। मैंने एक प्रस्ताव दिया था कि पार्टी को मजबूत करने के लिए ये-ये कदम उठाए जाने चाहिए लेकिन उस पर आज तक कोई काम नहीं हुआ। साथ ही उन्होंने याद दिलाया कि 1998 में हुए पंचमढ़ी सम्मेलन, 2003 के शिमला सम्मेलन और उसके बाद के सम्मेलनों में जो सुझाव दिए गए उनमें से एक भी सुझाव को नहीं माना गया। पार्टी को मजबूत करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा कि हमारे साथियों (जी-23 के सदस्य) ने आपको एक पत्र लिखा कि कैसे पार्टी में सुधार होना चाहिए- क्या कदम उठाए जाने चाहिए। उसके बाद हम लोगों पर हमला हुआ। कांग्रेस एक्सटेंडेड वर्किंग कमिटी बुलाई गई जिसमें हम लोगों को अपमानित किया गया। राहुल गांधी ने उसमें जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया वह अशोभनीय था। इसके अलावा कपिल सिब्बल के घर पर हमला कराया गया। इतने पर ही नहीं रुके गुलाम नबी आजाद, उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में जम्मू-कश्मीर में मेरी शव यात्रा निकाली गई। जिन लोगों ने यह काम किया उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय राहुल गांधी और एक राष्ट्रीय महामंत्री ने उनका स्वागत किया। ऐसे में पार्टी में काम करना अब संभव नहीं है।

बिना जिम्मेदारी लिए सारे अधिकार चाहते हैं राहुल

उन्होंने कहा कि पार्टी की गिरावट ‘प्वॉइंट ऑफ लो रिटर्न’ पर पहुंच गई है यानी पार्टी के बचने की कोई संभावना नहीं है। यह बात 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कही जा रही है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है लेकिन लग रहा है कि वह उसमें भी फेल हो गई है। उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव के बाद जिस तरह से राहुल गांधी ने घबराहट में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, उसके वाबजूद वे सारे फैसले ले रहे हैं जबकि अध्यक्ष आप (सोनिया) हैं। राहुल गांधी के इस रवैये पर उन्होंने सवाल उठाया कि बिना किसी जवाबदेही के वे सारे अधिकार चाहते हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के बारे में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पार्टी को परिवार की कोटरी चला रही है। प्रियंका वाड्रा को तो उन्होंने टिप्पणी के लायक भी नहीं समझा। गुलाम नबी आजाद गांधी परिवार के बहुत करीबी माने जाते थे। किसी करीबी द्वारा गांधी परिवार पर इतना बड़ा हमला हाल के वर्षों में कभी नहीं हुआ। उन्होंने चार-चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है इसलिए उनकी बात का पार्टी के कैडर पर निश्चित रूप से असर पड़ने वाला है। वे अब कांग्रेस से आजाद हो गए हैं, आगे का रास्ता तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। उनके इस्तीफे से एक दिन पहले ही पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और युवा नेता जयवीर शेरगिल ने प्रवक्ता पद से इस्तीफा दिया। उन्होंने भी कहा कि राहुल गांधी और गांधी परिवार चाटुकारों से घिरे हुए हैं। उन्हीं के कहने पर फैसले लिए जाते हैं, पार्टी की बेहतरी के लिए कुछ नहीं होता है। कांग्रेस छोड़कर जाने वाले लगभग सभी नेताओं की इसी तरह की शिकायतें रही हैं। जो भी कांग्रेस से निकला है सबने राहुल गांधी की कार्यशैली को लेकर सवाल उठाया है। सोनिया गांधी को लिखे पत्र में आजाद ने कहा है कि ये जो संगठन के चुनाव हो रहे हैं, अध्यक्ष का चुनाव हो रहा है, यह बहुत बड़ा धोखा है। किसी राज्य में किसी स्तर पर कोई चुनाव नहीं हुआ। इसके होने या नहीं होने का कोई मतलब नहीं है।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर असर

गुलाम नबी के इस कदम का जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर बहुत बड़ा असर होने जा रहा है। वे अपनी अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में 80 प्रतिशत कांग्रेस गुलाम नबी आजाद ही हैं। उनके इस्तीफा देते ही राज्य कांग्रेस से इस्तीफा देने का सिलसिला शुरू हो गया है। कुछ नेता इस्तीफा दे चुके हैं। इसके अलावा कई नेता इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। इससे राज्य कांग्रेस को होने वाले नुकसान को तो भूल ही जाइए, इसका मतलब है कि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का कोई नामलेवा नहीं बचेगा। गुलाम नबी इस्तीफा देकर घर बैठ जाते तो शायद उससे उतना नुकसान नहीं होता लेकिन उनके सक्रिय होने से और जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर फोकस करने से कांग्रेस का वहां से सफाया होना तय है। इसका बड़ा नुकसान गुपकार गुट पर भी होने जा रहा है, उसमें भी नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी पर। उनके लिए कश्मीर घाटी में एक चैलेंजर आ गया है। घाटी में उनके लिए बीजेपी चुनौती नहीं थी। बीजेपी की सारी चुनौती जम्मू तक सीमित थी। आप मान कर चलिए उनकी पार्टी को घाटी में सफलता मिलेगी और पीडीपी से ज्यादा मिलेगी। नंबर-1 होगी, नंबर-2 होगी, नंबर-3 होगी- मैं ये नहीं कह सकता हूं लेकिन इतना कह सकता हूं कि इन सबका ज्यादा नुकसान होगा। घाटी के मुस्लिम वोटों में बंटवारा करने वाला अभी तक कोई नहीं था, आजाद के आने से यह बंटवारा तय मान लीजिए। अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार की परिवारवादी राजनीति के खात्मे की घाटी से शुरुआत होने जा रही है। जम्मू-कश्मीर में जब भी विधानसभा का चुनाव होगा उनकी राजनीति का खात्मा होने वाला है। हालांकि राजनीति में कोई पार्टी या कोई नेता पूरी तरह से खत्म नहीं होता है लेकिन अगर वह प्रासंगिक न रह जाए, अगर वह मुख्यधारा में न रह जाए और हाशिये पर चला जाए- तो उसके होने या न होने से प्रदेश या देश की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ता है। इसलिए कह रहा हूं कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में आमूल परिवर्तन होने जा रहा है।

शुरू होगी नई राजनीति

जम्मू-कश्मीर में जो नए खिलाड़ी उभर कर आने वाले हैं उनमें जम्मू से बीजेपी सबसे मजबूत पार्टी के रूप में, गुलाम नबी आजाद की पार्टी, अपनी पार्टी और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस- ये चार पार्टियां मुख्य रूप से होंगी। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को तो मुझे लगता है कि अभी से भूल जाना चाहिए। पीडीपी का जनाधार लगातार खिसक रहा है। जब बीजेपी ने गठबंधन तोड़ा था उसके बाद से जिस तरह से अलगाववादियों, आतंकवादियों और पाकिस्तान समर्थित लोगों और संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई हुई है उन सबको देखते हुए लगता है कि पीडीपी का अब वह जनाधार नहीं बचा है। उसका जनाधार मुख्य रूप से पाकिस्तान और अलगाववादी समर्थकों के बीच में था। वह पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है, उसके फिर से खड़े होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। ऐसे में गुलाम नबी आजाद का क्षेत्रीय पार्टी बनाकर चुनाव में उतरने का फैसला जम्मू-कश्मीर की राजनीति में बड़ा बदलाव लाएगा। पिछले दिनों जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुलाम नबी आजाद के बीच नजदीकी बढ़ी है उससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं। राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में गुलाम नबी आजाद ने जिस तरह से अटल जी और प्रधानमंत्री की तारीफ की और उसके बाद प्रधानमंत्री ने उनकी जो तारीफ की वह सब सिर्फ एक भावनात्मक क्षण नहीं थे, उसके दूरगामी राजनीतिक मायने थे। यह उस समय पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था, लोगों को लग रहा था कि वे बीजेपी में जाएंगे या बीजेपी उनको कहीं गवर्नर बना देगी या राज्यसभा के लिए मनोनीत कर देगी। इन सबसे ज्यादा कुछ सोचा नहीं जा रहा था लेकिन अब जो परिस्थिति सामने आ रही है उससे पूरा परिदृश्य स्पष्ट हो गया है।

कर रहे थे इंतजार

गुलाम नबी आजाद भी इंतजार कर रहे थे कि देखें कितना सब्र करना पड़ सकता है। जब सब्र की इंतहा हो गई तो उन्होंने घोषणा कर दी। बीजेपी ने अपने पूर्व मंत्रियों और पूर्व सांसदों से बड़ी मुरव्वत से बंगले खाली कराए। यहां तक कि चिराग पासवान से भी जो उनके पिता को बंगला मिला हुआ था वह खाली करा लिया। पूर्व मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक सहित ऐसे तमाम लोगों से बंगला खाली करा लिया लेकिन गुलाम नबी आजाद का बंगला अभी तक खाली नहीं कराया गया है। यह एक संकेत था आने वाले दिनों का। ये जो छोटी-छोटी चीजें होती हैं उनमें बड़े संकेत छुपे होते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि जम्मू-कश्मीर में आने वाले समय में बीजेपी, आजाद की पार्टी, अपनी पार्टी और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस सत्ता में दिखाई दे सकती हैं। अगला चुनाव कब होगा पता नहीं लेकिन 25 नवंबर के बाद कभी भी हो सकता है। जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 के बाद से जो बदलाव का सिलसिला शुरू हुआ था- अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद- उसकी राजनीतिक परिणति अब आने वाली है। उसका राजनीतिक नतीजा अब दिखाई देने वाला है। अनुच्छेद 370 और 35ए हटाना मकसद नहीं था बल्कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति को बदलना मकसद था… और वह लक्ष्य पूरा होता हुआ दिखाई दे रहा है। हालांकि, जब चुनाव के नतीजे आएंगे तभी इसका पता चलेगा, तब तक इंतजार तो करना ही पड़ेगा।