प्रदीप सिंह।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार अंतिम सांसें गिन रही है। ठाकरे के सामने अब चुनौती सरकार नहीं, पार्टी बचाने की है। इस राज्य का राजनीतिक घटनाक्रम सभी परिवारवादी पार्टियों के लिए सबक है। बेटे को आगे बढ़ाने के फेर में सरकार और पार्टी जाती हुई दिख रही है। शिवसेना में बगावत महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे रही है। यह बदलाव पीढ़ी परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। ठाकरे के साथ पवारों और चह्वाणों के दिन जा रहे हैं या कहिए कि गए ही समझिए।

कहावत है सौ सुनार की, एक लोहार की। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, शरद पवार, गांधी परिवार मिलकर पिछले ढाई साल से भाजपा पर हमलावर थे। उनके निशाने पर राज्य का भाजपा नेतृत्व कम और राष्ट्रीय नेतृत्व ज्यादा था। उन्हें गालियां दी जा रही थीं, उनके मरने की इच्छा जाहिर की जा रही थी। प्रधानमंत्री मोदी चुपचाप सुन रहे थे। ये सारे धतकरम ही महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार के गले का पत्थर बन गए। मोदी ने सीधे कुछ नहीं किया। घर में ही भारी झगड़ा हो गया।

बेईमानी और हठधर्मी

आजकल भारतीय राजनीति के बारे में बात करते हुए महाभारत के उस प्रसंग की याद आती है, जिसका निहितार्थ है कि सत्ता के बंटवारे में बेईमानी और हठधर्मी कभी काम नहीं आती। दूसरी बात यह कि जो पांच गांव नहीं देते, उन्हें पूरा राजपाट देना पड़ता है। महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद बड़ी पार्टी होने के नाते मुख्यमंत्री पद पर भाजपा का दावा स्वाभाविक था, लेकिन शिवसेना अचानक यह दावा करने लगी कि भाजपा ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। अब शिवसेना के विधायक ही कह रहे हैं कि यह झूठ था।

शरद पवार की छवि ध्वस्त

Sena's "Internal Matter": Sharad Pawar On Maharashtra Minister's Big Sulk

महाराष्ट्र में जो हो रहा है, वह भले ही शिवसेना का अंदरूनी मामला हो, लेकिन इस घटनाक्रम ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार की बहुत बड़े रणनीतिकार की छवि को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। इस सरकार के मुखिया भले ही उद्धव ठाकरे हों, पर इसके जनक तो पवार ही थे। शिवसेना की बगावत में वह कुछ नहीं कर सकते थे, पर जिस सरकार को उन्होंने बनाया और जिसे वह बाहर से चला भी रहे थे, उसमें इतने बड़े संकट की उन्हें आहट भी नहीं लगी। एक जमाने में छह विधायक लेकर अपना राज्यसभा उम्मीदवार जिता लेने वाले शरद पवार राज्य में राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में युवा नेता देवेंद्र फडऩवीस से मात खा गए।

बगावत बता रही है…

Eknath Shinde speaks to Uddhav Thackeray, his BIG CONDITION - 'Shiv Sena, BJP must form alliance' | India News | Zee News

शिवसेना में बगावत यह बता रही है कि पार्टी और सरकार, दोनों ही चलाना उद्धव के बस की बात नहीं है। यह घटनाक्रम देश की लेफ्ट लिबरल बिरादरी के मुंह पर भी करारा तमाचा है। यह बिरादरी पिछले ढाई साल से उद्धव ठाकरे को देश का सबसे योग्य मुख्यमंत्री बता रही थी। कुछ लोगों की नजर में इस सरकार की सबसे बड़ी योग्यता यह थी कि इसने भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया। विडंबना देखिए कि इसी मुद्दे पर यह सरकार जा रही है। बगावत का नेतृत्व करने वाले एकनाथ शिंदे कह रहे हैं कि सत्ता के लिए हिंदुत्व नहीं छोड़ेंगे और भाजपा की सरकार बननी चाहिए।

शिंदे बनेंगे महाराष्ट्र के चंद्रबाबू?

Must Quit Unnatural Alliance": Eknath Shinde After Uddhav Thackeray Speech

उद्धव ठाकरे के लिए सरकार बचाना तो संभव नहीं रह गया है। अब सवाल है कि क्या वह पार्टी को बचा पाएंगे, क्योंकि शिंदे के बयान इस ओर संकेत कर रहे हैं कि वे सरकार गिराने तक ही नहीं रुकेंगे, बल्कि पार्टी पर कब्जे की कोशिश भी करेंगे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की भी यही रणनीति दिखती है। सवाल है कि क्या एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के चंद्रबाबू नायडू बनेंगे? चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटी रामाराव की पार्टी पर कब्जा कर लिया था। वह ऐसा इसलिए कर पाए, क्योंकि संगठन पर उनकी पकड़ थी। एकनाथ शिंदे के साथ भी यही है।

परिवारवादी पार्टियों के लिए सबक

महाराष्ट्र का घटनाचक्र उन सभी परिवारवादी पार्टियों के लिए यह सबक है कि जहां संगठन और सरकार के फैसले खाने की मेज या बेडरूम में होते हैं, वहां पतन और बिखराव ही होता है। आम कार्यकर्ता संगठन और विचारधारा से जुड़ा होता है। वह किसी नेता का बंधुआ मजदूर नहीं होता। जिस नेता को यह गलतफहमी हो जाए, उसका पराभव तय मानिए। महाराष्ट्र के संकट में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं है, जबकि वह अघाड़ी सरकार में शामिल है। कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी दल है, लेकिन राष्ट्रपति के उम्मीदवार के चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं। पूरी विपक्षी राजनीति में कहीं बिखराव, कहीं ठहराव, कहीं टकराव और कहीं पराजित भाव नजर आ रहा है। ऐसा लग रहा है कि विपक्ष देश की राजनीति में फिनिशिंग लाइन तक पहुंचने की इच्छाशक्ति ही खो चुका है। आज सवाल सिर्फ इतना है कि वह फिनिशिंग लाइन से कितना पहले गिरेगा।

घटनाक्रम एक, निहितार्थ कई

महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, वह केवल उद्धव ठाकरे के राजनीतिक पतन की कहानी नहीं बता रहा। यह राज्य के सबसे कद्दावर मराठा नेता शरद पवार के राजनीतिक नेपथ्य में जाने की मुनादी भी कर रहा है। यह देवेंद्र फडऩवीस के राज्य के सबसे लोकप्रिय और कद्दावर नेता के रूप में उभरने की भी कहानी है। वह अब महाराष्ट्र में भाजपा के निर्विवाद रूप से सबसे बड़े नेता बन गए हैं। यह मानकर चला जाना चाहिए कि एकनाथ शिंदे के रूप में भाजपा को एक नए लोकप्रिय मराठा नेता का साथ मिलने वाला है। वह भाजपा में आएं या शिवसेना पर कब्जा करके साथ रहें, कम से कम हिंदुत्व की विचारधारा के मुद्दे पर शिंदे के मन में कोई दुविधा नहीं है।

भाजपा और विपक्ष में होड़

इन सब बातों और घटनाक्रम का निष्कर्ष क्या है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तात्कालिक राजनीतिक फायदे के नजरिये से कोई कदम नहीं उठाते। उनकी रणनीति हमेशा दीर्घकालिक होती है। उनकी राजनीति का मकसद यह नहीं है कि जब तक मैं रहूं, सब ठीक रहे, उसके बाद जो हो, वह आगे आने वाला जाने। वह भविष्य की भाजपा बना रहे हैं और इसका प्रबंध कर रहे हैं कि उनके बाद जो लोग आएं, उन्हें उनके जैसा परिश्रम न करना पड़े। नेतृत्व परिवर्तन में केवल पीढ़ी परिवर्तन पर ही ध्यान नहीं रहता। नेतृत्व की गुणवत्ता की जांच-परख भी की जाती है। महाराष्ट्र का मामला हो, राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार का प्रकरण हो, मंत्रिमंडल में चयन का मामला हो, सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट होता है विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता। जो नए लोग लाए जाते हैं, उनमें भी इसका ध्यान रखने की कोशिश होती है। कुल मिलाकर भाजपा और विपक्ष में होड़ लगी है क्रमश: बेहतर होने और पतन की ओर जाने की।

(दैनिक जागरण से साभार। लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)