डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
आम तौर से यह समझा जाता है कि गीता प्रेस के प्रकाशन केवल हिन्दू लेखकों की रचनाएँ ही छापते हैं। परन्तु यह धारणा सही नहीं है।
गीता प्रेस की एक पुस्तक है ‘भजन संग्रह’। इसमें गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, रैदास, कबीरदास, स्वामी हरिदास, मलूकदास, नानक, मीराबाई, आदि 66 लोगों द्वारा लिखे गए भजन हैं। परन्तु थोड़ा आश्चर्य की बात यह है कि इन 66 लोगों में से 33 मुस्लिम हैं। इसमें मुस्लिम कवि खालस का वह भजन भी है जोकि भीमसेन जोशी, अनूप जलोटा, आदि जाने-माने गायक गा चुके हैं:
तुम नाम भजन क्यों छोड़ दिया?
क्रोध न छोड़ा, झूठ न छोड़ा, सत्य वचन क्यों छोड़ दिया?
झूठे जग में दिल ललचाकर, असल वतन क्यों छोड़ दिया?
कौड़ी को तो खूब संभाला, लाल रतन क्यों छोड़ दिया?
जिन सुमिरन से अति सुख पावै, तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया?
‘खालस’ एक भगवान भरोसे, तन-मन-धन क्यों छोड़ दिया?
काज़ी अशरफ महमूद का भी पृसिद्ध भजन है:
ठुमुक ठुमुक पग, कुमुक-कुंज मग
चपल चरण हरि आए, हो हो, चपल चरण हरि आये,
मेरे प्राण-भुलावन आए, मेरे नयन लुभावन आये।
निमिक-झिमिक-झिम, निमिक झिमिक-झिम
नर्तन-पद-ब्रज आये, हो हो, नर्तन-पद-ब्रज आये।
मेरे प्राण-भुलावन आये, मेरे नयन लुभावन आये।
(कवि काज़ी अशरफ महमूद (1908-1983) ढाका विश्वविद्यालय में वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर थे। वह और उनकी दो बहनें, ज़ोहरा और शीरीन, कुछ समय महात्मा गांधी के सेवाग्राम आश्रम में भी रहीं थीं।)
‘भजन संग्रह’ में रहीमदास के भी भजन हैं, जोकि तुलसीदास के समकालीन थे और गोस्वामीजी पर उनकी बहुत श्रद्धा थी।
(दिल्ली में निज़ामुद्दीन के निकट रहीमदास का मकबरा वर्षों से बदहाली में पड़ा रहा। हाल के वर्षों में उस मकबरे की मरम्मत आदि पर ध्यान दिया गया है।)
साढ़े तीन सौ से अधिक पृष्ठों वाले गीता प्रेस के इस ‘भजन संग्रह’ की अब तक साढ़े तीन लाख से अधिक प्रतियाँ छप चुकी हैं। जिन 33 मुस्लिम भक्तों के भजन इसमें हैं, शायद ऐसे ही कवियों के लिए भारतेन्दुजी ने कहा था:
‘इन मुसलमान हरिजनन पै कोटिन हिंदुन वारिये।‘
गीता प्रेस की पुस्तकों और कल्याण में किसी भी धर्म की निंदा और आलोचना नहीं की जाती है।
कल्याण के विशेषांकों में अक्सर विभिन्न धर्मों के लेखकों के छपते रहे हैं। इन गैर हिन्दू लेखकों की एक लम्बी सूची है।
( लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)