सनातनियों की खामोशी की ताकत अपना असर दिखाने लगी।
प्रदीप सिंह।
हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार आमिर खान की नई फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ 11 अगस्त को रिलीज होने जा रही है। मैं यहां लाल सिंह चड्ढा और फिल्म पर बात नहीं करने जा रहा हूं। मैं एक बहुत गंभीर बात कहने जा रहा हूं। मैं बार-बार कहता रहा हूं कि देश में और समाज में परिवर्तन आ रहा है, हिंदुओं में एक जागरण शुरू हो रहा है। आपको लगता होगा कि परिवर्तन कहां दिखाई दे रहा है- मैं क्यों कहता रहता हूं- मैं इसका प्रमाण आपको देने जा रहा हूं कि बदलाव आया है और आप उसे जीता जागता देख सकते हैं। आमिर खान ने लोगों से अपील की है कि ‘मैं हिंदुस्तान को प्यार करता हूं, आप मेरी फिल्म देखिए, फिल्म का बायकॉट मत कीजिए।’
गुजरात जाकर ‘फर्ज़ी’ आंदोलन में शामिल हुए थे आमिर
आमिर खान को ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि सोशल मीडिया पर उनकी फिल्म लाल सिंह चड्ढा का बहिष्कार करने का अभियान चल रहा है। आप याद कीजिए कि पहले जब इस तरह की बातें कही जाती थी तो कौन सुनता था। वर्ष 2006 में आमिर खान की फिल्म आई थी ‘फना’। उस समय फना का बहिष्कार करने की आवाज गुजरात से उठी थी। गुजरात की तत्कालीन सरकार जिसके मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे, उन्होंने नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था जिसका विरोध मेधा पाटकर और उनके साथी कर रहे थे। आज यह साबित हो चुका है कि उस आंदोलन को विदेशी फंडिंग मिल रही थी, अलग-अलग संस्थाओं से पैसा मिल रहा था। बांध के प्रोजेक्ट को रोकने,उस पर अड़ंगा लगाने, उसे लेट करने और ऊंचाई न बढ़ने देने के लिए कांग्रेस की सरकार और कांग्रेस पार्टी भी शामिल थी। ये जो मिलाजुला खेल था उसमें आमिर खान ने आंदोलन को समर्थन दिया और गुजरात जाकर आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि मेधा पाटेकर की और उनके एनजीओ की मांगें सही हैं। जबकि गुजरात के लोगों ने कहा कि ये विरोध हमारे हित के खिलाफ है। इसलिए उन्होंने आमिर की फिल्म का बहिष्कार करने की आवाज उठाई थी। उस आंदोलन में ये मुद्दा बनाया गया कि बांध की वजह से जो लोग विस्थापित हो रहे हैं उनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए… जो कि हो रही थी- और अच्छी तरह से हो रही थी। जिनका पुनर्वास हो रहा था वे संतुष्ट थे। इसके बावजूद इस बात पर कोई तवज्जो नहीं दी गई की ऊंचाई बढ़ने का असर क्या होगा। अब तो ऊंचाई बढ़ चुकी है और पानी आ रहा है तो बताया जा सकता है कि गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ में जहां पानी का भारी अकाल पड़ता था, महिलाएं मिलों तक पीने का पानी जुटाने के लिए जाती थीं, खेती बर्बाद हो रही थे, मवेशियों के लिए पानी की दिक्कत होती थी, सूखे के दौरान वे मर जाते थे। वहां आज पीने का, सिंचाई का पानी सब कुछ मिल रहा है। खेती-बाड़ी शुरू हो गई है और लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है। इसके अलावा मध्यप्रदेश और राजस्थान के जो इलाके गुजरात से सटे हुए हैं वहां पानी पहुंचा है।
देवी-देवताओं का अपमान
जिस योजना से लाखों लोगों को लाभ होना था उसको रोका जा रहा था क्योंकि वह योजना नरेंद्र मोदी की थी। उस समय आमिर खान से पूछा गया कि गुजरात के लोगों ने आपकी फिल्म का बायकॉट करने की अपील की है तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि पांच-सात करोड़ रुपये का नुकसान होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके बाद आमिर खान की 2014 में एक फिल्म आई थी ‘पीके’। उसमें देवी-देवताओं का जिस तरह से अपमान किया गया था उसके बावजूद वह फिल्म सुपरहिट हुई थी। हालांकि, बॉलीवुड हिंदू देवी-देवताओं को, हिंदू धर्म को, सनातन धर्म को गाली देने का या उनके अपमान का कोई मौका छोड़ता नहीं है बल्कि मौका तलाश करता है। फिल्म में ऐसे सीन जानबूझकर ठूंसे जाते हैं जिससे यह संदेश जाए कि हिंदू धर्म बहुत ही घटिया है। उसका बहिष्कार करना चाहिए, उसके खिलाफ बोलना चाहिए। दकियानूसीपन, पिछड़ापन- जो कुछ खराबी है सब सनातन धर्म में है। और किसी मजहब के बारे में कभी नहीं बोला जाता है। हर फिल्म में एक ऐसा कैरेक्टर जरूर होता था जो गैर हिंदू हो, जो अच्छा है, जो भला है, सबकी मदद करने वाला है और हिंदू को विलेन के रूप में दिखाया जाता था। यह सिलसिला दशकों से चला आ रहा है। जिस देश में 70-80 फीसदी हिंदू रहते हैं वहां हिंदू देवी-देवताओं के अपमान पर बनने वाली फिल्म पीके सुपरहिट होती है तो याद कीजिए की उस समय देश का माहौल क्या था, परस्थिति क्या थी। आगे इस मुद्दे पर लौट कर आऊंगा।2014 के बाद देखिए 2015 को इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम में आमिर ने कहा कि उनकी पत्नी किरण राव ने उनसे कहा है कि अपने बच्चों को लेकर हिंदुस्तान में रहने में डर लगता है। उनकी पत्नी ने कहा या नहीं कहा यह तो पता नहीं लेकिन आमिर खान ने सार्वजनिक रूप से यह बात कही। यह वह समय था जब अखलाक की हत्या हुई थी। उस समय ऐसे माहौल बनाया गया था जैसे सारे हिंदू तलवार लेकर सड़क पर निकल चुके हैं और सारे मुसलमानों का कत्लेआम कर देंगे। अवार्ड वापसी का कार्यक्रम चलाया गया, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत सरकार के विरोध का कार्यक्रम चलाया गया और सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई। ऐसा दिखाया गया जैसे प्रधानमंत्री या किसी मंत्री ने या भाजपा के किसी राष्ट्रीय नेता ने जाकर अखलाक की हत्या कर दी हो। यह घटना उत्तर प्रदेश में घटी थी और उस समय वहां अखिलेश यादव की सरकार थी। उनसे एक सवाल नहीं पूछा गया, सारे सवाल केंद्र सरकार से पूछे जा रहे थे। जबकि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है।
असहिष्णुता का झूठा विमर्श
उसके बाद वर्ष 2020 में आमिर खान तुर्की गए और वहां वे तुर्की के प्रधानमंत्री अरदोआन की पत्नी से मिले। उस पर बड़ा विवाद हुआ। भारत का कोई फिल्म अभिनेता या कोई प्रमुख नागरिक किसी देश की फर्स्ट लेडी या प्रधानमंत्री या किसी नेता से मिले तो इसमें कोई ऐतराज की बात नहीं है। इससे देश के लिए एक अच्छा संदेश जाता है लेकिन आमिर का विरोध इसलिए हुआ कि तुर्की और अरदोआन भारत के विरोध में हर मंच पर सबसे आगे रहते हैं,- भारत के दुश्मन देश की तरह व्यवहार करते हैं- आतंकवाद को पनाह देते हैं- उसका पोषण करते हैं और उसकी फंडिंग करते हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने का जिन दो-तीन देशों ने विरोध किया था उनमें तुर्की भी था। ऐसे देश की फर्स्ट लेडी से मिलकर आमिर खान क्या संदेश देना चाहते थे? क्या बताना चाहते थे दुनिया को और देश को? इससे उनकी मानसिकता का अंदाजा लगता है कि भारत विरोधी जो भी गतिविधि है उसमें वे शामिल होंगे। 2015 में ऐसा माहौल बना था भारत के विरोध में कि भारत में अल्पसंख्यक असुरक्षित हो गए हैं। इस विमर्श को बनाने और इसको ताकत देने में आमिर खान के उस बयान ने बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने वह बयान इसी मकसद से दिया था कि देश और दुनिया में यह संदेश जाए कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। भारत में अल्पसंख्यक का मतलब सिर्फ मुसलमान होता है। बाकी जो वास्तविक अल्पसंख्यक हैं उनके बारे में कभी बात नहीं होती है। उनका क्या हो रहा है उस पर कभी कुछ नहीं बोला जाता है।
अहंकारी मानसिकता का विरोध
तुर्की की फर्स्ट लेडी से मिलने का विरोध इसलिए भी हुआ कि जिन आमिर खान ने -हिंदुस्तान में डर लगता है वाले विमर्श को बढ़ावा दिया- वे उस देश की फर्स्ट लेडी से मिल रहे थे जो सबसे ज्यादा असहिष्णु है। अरदोआन ने अपने विरोधियों को जेलों में ठूंस रखा है। उनका कोई विरोध करे तो वह बाहर नहीं रह सकता है। ऐसे असहिष्णु देश के प्रमुख की पत्नी से वे मिल रहे थे और भारत में असहिष्णुता के खिलाफ अभियान चला रहे थे। ये जो एजेंडा चलाने वाली प्रवृत्ति है बॉलीवुड की जिसमें ज्यादातर लोग शामिल हैं, चाहे राष्ट्रीय स्तर पर हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत के खिलाफ जब भी इस तरह की बातें होती है उसमें ये बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। 2014 में आई पीके फिल्म अगर आपने देखी है- या सिर्फ पोस्टर देखा हो- तब भी पता होगा कि उसमें क्या था। इसके बावजूद वह सुपरहिट होती है। लाल सिंह चड्ढा में हिंदू देवी-देवताओं का अपमान है कि नहीं या कोई ऐसा दृश्य है कि नहीं यह भी नहीं मालूम है, तो फिर ऐसी क्या बात है कि उसका विरोध हो रहा है। यह लाल सिंह चड्ढा का विरोध नहीं हो रहा है, यह उस प्रवृत्ति का विरोध हो रहा है- और यही प्रमाण है उस बदलाव का। आज आमिर खान की फिल्म का बायकॉट करने की अपील हो रही है। अगर यही अपील 2014 में हुई होती तो उसका कोई असर नहीं होता, आमिर खान का जवाब उसी तरह का होता जैसा 2006 में उन्होंने फना के बायकॉट पर दिया था। बॉलीवुड का कोई भी बड़ा स्टार इन बातों की परवाह ही नहीं करता और अभी तक मानसिकता बदली नहीं है। इस फिल्म की अभिनेत्री करीना कपूर खान से जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि नहीं देखना है तो मत देखिए, कौन कह रहा है, हम बुलाने आए हैं आपको। हम तो नहीं कह रहे हैं कि जाइए देखिए। ये जो अहंकार है और ये जो श्रेष्ठता का भाव है- यह बॉलीवुड में पूरी तरह से हावी हो चुका है। उन्हें लगता है कि हम सुपरस्टार हैं तो हमें कौन बोलेगा, हमारे खिलाफ कौन बोलेगा, हमारे खिलाफ कौन क्या कर सकता है।
देश विरोधी गतिविधियों का बहिष्कार
दरअसल, वे दोहरे चरित्र में जीते हैं। ये जो चेहरा दिखाते हैं- और अंदर जो उनकी हैसियत है- दोनों में बहुत फर्क है। फिल्म में तो वे अलग दुनिया में रहते ही हैं,फिल्म से बाहर भी वे एक अलग और नकली दुनिया में रहते हैं। आमिर खान को अहसास हो गया है कि जो अभियान चल रहा है उसका असर होने वाला है। अभी शमशेरा का हश्र क्या हुआ सब देख चुके हैं। सबसे ताजा असर है। उसका भी बायकॉट करने की अपील की गई थी। इसकी वजह से फिल्म फ्लॉप हो गई। अब संजय दत्त दर्शकों को ही गाली दे रहे हैं, उनको जाहिल और मूर्ख बता रहे हैं, कह रहे हैं कि उनको समझ में नहीं आता, अच्छी फिल्में देखते नहीं, जो कचरा है उन्हें वही अच्छी लगती है। आमिर खान का ये जो डर है कि उनकी फिल्म फ्लॉप हो सकती है, दरअसल यही बदलाव का सबसे बड़ा संकेत है। किसी भी हिंदू संगठन, किसी राजनीतिक दल, किसी व्यक्ति ने यह अपील नहीं की, यह नारा नहीं लगाया कि सर तन से जुदा हो, यह फर्क है सनातन धर्म में और दूसरे मजहब में। इस फर्क को हमें पहचानना चाहिए कि हम इस तरह की हिंसा में, इस तरह के विरोध में यकीन नहीं करते हैं। हम सिर्फ इतना कह रहे हैं कि हम यह फिल्म नहीं देखेंगे- यह हमारी मर्जी है। अपनी मेहनत के पैसे को हम उस काम में खर्च नहीं करेंगे जिसको हम देश और समाज के विरोध में मानते हैं। उसे हम दूसरे किसी अच्छे काम में लगाएंगे। दूसरी कोई फिल्म जो हमको पसंद होगी वह देखने जाएंगे। यह किसी ने नहीं कहा कि आप आमिर खान के खिलाफ ये कहिए या वो कहिए। आप देखिए कि इसका क्या असर होता है यह बदलता हुआ हिंदुस्तान है, ये बदलते हुए सनातनी हैं। इनकी ताकत को पहचान मिलने लगी है।
‘ये’ उनको भी पता है…
आमिर खान का यह कहना ही अपने आप में बड़ी बात है कि मैं हिंदुस्तान को प्यार करता -हूं यानी आपको मालूम है कि आपकी छवि क्या है लोगों में- आपके बारे में लोग क्या सोचते हैं। आपको लोग देश विरोधी मानते हैं। और इस बात को आपने स्वीकार कर लिया, तभी आप यह सफाई दे रहे हैं कि मैं हिंदुस्तान को प्यार करता हूं। इससे आप समझिए की खामोशी की और सकारात्मक कदम की कितनी बड़ी ताकत होती है। इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि हिंसा की बात मत कीजिए। हिंसा से आप अपने आप को ही कमजोर करेंगे। इस बात को हमको, आपको, सबको ध्यान में रखना चाहिए। वो कहावत है न, ‘जहां काम आवे सुई तहां का करे तलवार’, यानी जब सुई से काम चल सकता है तो फिर तलवार की जरूरत क्या है।ये जो हल्की सी सुई है न- कि यदि आप हमारे, हमारे समाज, सनातन संस्कृति, हमारे देश के खिलाफ खड़े हो गए- तो हम आपके साथ खड़े नहीं होंगे- सिर्फ इतनी सी बात कही जा रही है। इसका असर क्या हो रहा है आप देखिए। इस ताकत को पहचानिए और इसको बचा कर रखिए।