माना जा रहा है कि इससे छोटे निवेशक शेयर बाजार की ओर और ज्यादा आकर्षित होंगे। हालांकि, बाजार विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि टी प्लस वन व्यवस्था से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा शीर्ष शेयरों में ट्रेडिंग वॉल्यूम प्रभावित होने की संभावना है।
एक नुकसान भी
मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि एफपीआई लेनदेन की संख्या घटा सकते हैं। उनका कहना है कि जब भी किसी क्षेत्र के बाजार की गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव होता है जिसमें वह निवेश करते हैं, तो एफपीआई या तो रोक लेते हैं या लेनदेन की संख्या को अस्थायी रूप से सीमित कर देते हैं। इससे वॉल्यूम में गिरावट आ सकती है।
क्या है टी प्लस वन
यहां टी का मतलब ट्रेडिंग यानी सौदे के दिन से है। मौजूदा समय में शेयरों को खरीदने या बेचने पर निवेशक के खाते में शेयर या पैसा आने में सौदे के दिन के अलावा दो दिन लगते हैं जिसे टी प्लस 2 कहते हैं। इस तरह व्यावहारिक रूप के एक सौदा तीन दिन में पूरा होता है। अब इसे टी प्लस वन करने से सौदे के अगले दिन ही सभी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
क्या होगा फायदा
20 साल बाद बदलाव
इसके पहले एक अप्रैल 2003 को टी प्लस 3 से टी प्लस 2 व्यवस्था में शेयर बाजार ने प्रवेश किया था। अब टी प्लस वन व्यवस्था के साथ भारत दुनिया के चुनिंदा बाजारों में शामिल हो जाएगा। मौजूदा समय में दुनिया में ज्यादातर देशों के शेयर बाजार में टी प्लस 2 व्यवस्था लागू होती है। (एएमएपी)