ध्रुव गुप्त ।
आज कहीं अफगान स्नो का एक बहुत ही पुराना विज्ञापन देखा तो बचपन की बहुत सारी स्मृतियां उभर आईं। अफगान स्नो स्त्रियों के लिए किसी कारखाने में बना देश का पहला सौन्दर्य प्रसाधन था। सफ़ेद-सफ़ेद रुई के फाहों जैसा खुशबूदार फेस क्रीम। 1909 में बम्बई में इसका उत्पादन शुरू किया था सुगन्धित तेल और इत्र के एक व्यापारी इब्राहिम पटनवाला ने। दशकों तक सौन्दर्य प्रसाधन के बाज़ार में इस उत्पाद का एकछत्र राज रहा था। तब अखबार कम थे और विज्ञापन भी बहुत कम छपते थे। उस दौर की मशहूर फिल्मी नायिकाओं के साथ अफगान स्नो का विज्ञापन हमारे दिलों में एक तिलिस्मी कौतूहल जगाता था।
पिछली सदी के छठे दशक में यह स्नो हमारे गांव में भी पहुंच गया था। तब मां और बड़ी बहन के बक्से में यह एकमात्र सौन्दर्य प्रसाधन हुआ करता था। महंगा होने की वज़ह से कुछ ख़ास अवसरों पर ही वे इसका इस्तेमाल करती थीं। इसकी ख़ुशबू मुझे बहुत पसंद थी। चोरी-चोरी कभी-कभार चेहरे पर मल भी लिया करता था। चेहरा थोड़ा सफ़ेद तो होता ही था, घंटों इसकी ख़ुशबू का आनंद अलग से। पकड़े जाने पर अक्सर उपहास का पात्र भी बनना पड़ता था। अब अफगान स्नो किसी घर में नज़र नहीं आता। बाज़ार में शायद यह उपलब्ध है, लेकिन आधुनिक सौन्दर्य प्रसाधनों की भीड़ में अपना वजूद और आकर्षण खो बैठा है। आज की पीढ़ी को शायद ही इसके बारे में कुछ पता हो, लेकिन हमारी पीढ़ी के दिल और दिमाग में इसकी यादें अब भी सलामत है।
आख़िर पहला प्यार तो पहला प्यार ही होता है न !
कहते हैं मुझको हवा मिठाई!
गांवों और छोटे कस्बों से जुड़े मित्रों को हवा मिठाई की याद तो ज़रुर होगी। इसे गुड़िया या बुढ़िया के बाल भी बोलते हैं! रुई के मुलायम गुलाबी, हरे, सफ़ेद फाहों जैसी गोल-गोल या लंबी-लंबी मिठाई। हवा से भी हल्की। चीनी से भी ज्यादा मीठी। मुंह में रखते ही हवा की तरह उड़ जाने वाली यह मिठाई जुबान पर एक तीखी, किरकिरी-सी मिठास छोड़ जाती है। सिर्फ कुछ पलों के लिए और फिर किस्सा ख़त्म ! मुंह में घुलने के साथ ही ठगे जाने का एक अहसास। स्वाद कुछ ऐसा कि बार-बार ठगे जाने के बाद भी बार-बार जुबान पर रखने को जी चाहे। तब एक पैसे के भाव से बिकने वाली छलना-सी इस मिठाई के प्रति दीवानगी का आलम ऐसा था कि बात मां के गुल्लक या पिता की ज़ेब से पैसे चुराने तक पहुंच जाया करती थी। बहुत ज़माने बाद आज एक ग्रामीण बाज़ार में इसे बिकते देखा तो डायबिटिक होने के बावज़ूद खाने का लोभ नहीं रोक पाया। एक साथ चार-पांच उड़ा लिया।
एक बार फिर वही मिठास। एक बार फिर वही धोखा। एक बार फिर ससुरी जुबान पर रखते ही उड़ गई!
(सोशल मीडिया से- लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी और जाने माने साहित्यकार हैं)