डिप्लोमैटिक-वक्तव्यों में अक्सर उसके अर्थ छिपे होते हैं।
प्रमोद जोशी।
भारत-पाकिस्तान व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं को लेकर दो तरह की बातें सुनाई पड़ी हैं। पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री मुहम्मद इशाक डार ने लंदन में कहा कि हम भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं पर ‘गंभीरता से’ विचार कर रहे हैं। इसके फौरन बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने सफाई दी कि ऐसा कोई औपचारिक-प्रस्ताव नहीं है। सवाल है कि क्या ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं? या यह एक और यू-टर्न है? या इन दोनों बातों का कोई तीसरा मतलब भी संभव है?
किसे ज्यादा जरुरत
पहले तो हमें यह समझना होगा कि रिश्ते सुधारने की ज़रूरत भारत को ज्यादा है या पाकिस्तान को? पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था से भारत की अर्थव्यवस्था दस गुना बड़ी है। सत्तर के दशक में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति औसत आय की दुगनी थी, आज भारतीय औसत आय पाकिस्तानी आय से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है। उधर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से मँझधार में है। जीडीपी की करीब 10 फीसदी राशि ही सरकार टैक्स के रूप में वसूल पाती है। देश में पाँच लाख से भी कम लोग आयकर रिटर्न फाइल करते हैं। पिछले कुछ समय से मुद्राकोष के दबाव में बिजली की कीमत इतनी ज्यादा बढ़ी है कि त्राहि-त्राहि मचने लगी है।
भारत को पाकिस्तान से सद्भाव चाहिए. पर। भारत का साफ कहना है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चलेंगे। ऐसा नहीं होने के कारण हम पाकिस्तान के प्रति उदासीन हैं। इस उदासीनता को दूर करने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है।
पाकिस्तानी शासक जब चाहें, जो चाहें फैसले कर लेते हैं। फिर चाहते हैं कि उसकी कीमत भारत अदा करे। व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना ऐसा ही एक फैसला है। इसके पहले भारत को ‘तरज़ीही देश’ मानने में उनकी हिचकिचाहट इस बात की निशानी है।
एक और यू-टर्न
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज ज़हरा बलूच ने कहा कि लंदन में विदेशमंत्री डार अनौपचारिक रूप से बात कर रहे थे। व्यापारिक संबंधों की बहाली के लिए कोई औपचारिक राजनयिक प्रस्ताव नहीं है। हम कश्मीर पर भारत के रुख के कारण उसके साथ डील नहीं कर रहे हैं। वस्तुतः यह एक प्रकार का ‘यू-टर्न’ है।
सब्जबाग: कश्मीर बनेगा पाकिस्तान
अगस्त, 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाया है, पाकिस्तान ने नई दिल्ली से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और व्यापारिक रिश्तों को तोड़ने की घोषणा भी की थी. जवाब में भारत ने भी अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था। पाकिस्तानी राजनीति में कश्मीर बहुत बड़ा भावनात्मक मसला है। पाकिस्तानियों को कश्मीर को आज़ाद कराने के लिए हर साल एक दिन की छुट्टी मिलती है। 5 फरवरी को वे अपने कश्मीर-मिशन से एकजुटता व्यक्त करते हैं। सत्ताधारियों ने जनता को ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ का सब्ज़बाग़ दिखा कर फायदा उठाया। वे कहते हैं, कश्मीर हमारी शाहरग (गले की महाधमनी) है, जिसके कट जाने पर इंसान मर जाता है। पर, वे कश्मीर के सपने को पूरा करके दिखा नहीं पाए।
पाकिस्तान के भारत से बेहतर रिश्ते तभी संभव हैं, जब वे अपने कश्मीर-उन्माद को त्यागें और माहौल को बेहतर बनाएं। यह काम आसान नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘हिंदुस्तान’ दिल्ली के पूर्व वरिष्ठ स्थानीय संपादक हैं। pramathesh.blogspot.com पर उनके आलेख के कुछ अंश)