पांच राज्य जो एनडीए को 400 तक पहुंचा सकते हैं।
प्रदीप सिंह।
चुनाव सर्वेक्षणों का दौर 16 अप्रैल को थम गया। चुनाव आयोग की आचार संहिता के मुताबिक अब 16 अप्रैल के बाद कोई चुनाव सर्वेक्षण ना तो किया जा सकता है ना प्रसारित किया जा सकता है। चुनाव सर्वेक्षण कर तो कोई भी सकता है, उसको कहीं प्रचारित या प्रसारित नहीं कर सकता। कोई टीवी चैनल, अखबार या पत्रिका, कोई सोशल मीडिया ऐसे किसी सर्वे को नहीं दिखाएगा। अब 1 जून को आखिरी वोटिंग के दिन शाम 6:00 बजे के बाद एग्जिट पोल आएंगे।
इस बीच लोकसभा चुनाव प्रचार धीरे-धीरे अपने पीक की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि इस चुनाव का मुख्य मुद्दा क्या है? प्रिंसिपल नैरेटिव क्या है? विपक्ष के ना चाहते हुए भी मुद्दा वही बना है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा था- एनडीए 400 पार और बीजेपी 370 पार। एनडीए 400 पार करेगा कि नहीं- सारी बहस इसके इर्दगिर्द सिमटी हुई है। एनडीए के विरोधी कह रहे हैं बिल्कुल नहीं पार कर पाएंगे। एनडीए और बीजेपी समर्थकों का कहना है कि 400 पार मुमकिन है।
अब अब इसको थोड़ा परखने से पहले देखिए कि जो विपक्ष में कह रहा है एनडीए 400 नहीं पहुंचेगा उनमें आपस में ही एकराय नहीं है। कांग्रेस पार्टी के अंदर ही इसे लेकर आपस में मतभेद हैं। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। उसमें राहुल गांधी ने कहा कि पहले उनको लग रहा था कि बीजेपी 170 सीटें पा जाएगी। अब लग रहा है कि 150 सीटों पर सिमट जाएगी। उधर उन्हीं की पार्टी के नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बीजेपी को 220 सीट दे रहे हैं। पहले कांग्रेस पार्टी अपने अंदर तय कर ले कि बीजेपी को कितनी सीटें मिल रही हैं। अब सर्वेक्षणों का दौर खत्म हुआ है विपक्ष की तरफ से आपको सुनने को मिलेगा कि आईबी की रिपोर्ट आई है, बीजेपी का इंटरनल सर्वे यह कह रहा है, आरएसएस का सर्वे यह कह रहा है। जबकि मैं आपको पहले भी बता चुका हूं आरएसएस ने कभी भी कोई चुनावी सर्वेक्षण नहीं कराया। लेकिन हर चुनाव में आरएसएस के सर्वे के हवाले से यह बात कही जाती है। एक फर्जी सर्वे भी एक अखबार के नाम से चलाया गया। अखबार ने कानूनी कार्रवाई की धमकी भी दी। तो इस तरह के नैरेटिव चलाने की कोशिश होती रहेगी।
क्या एनडीए 400 पार कर सकता है या 400 के करीब पहुंच सकता है? क्या होगा वो तो 4 जून को पता चलेगा लेकिन अभी की वास्तविकता क्या है? और जो लोग कह रहे हैं कि 400 नहीं पहुंच सकते वो किन मुद्दों से चूक रहे हैं। किन बातों की ओर उनका ध्यान नहीं है। पहली बात तो यह है कि अभी की स्थिति में एनडीए की 2019 के चुनाव नतीजों के मुताबिक 353 सीट हैं। यानी 400 से सिर्फ 47 सीटें कम हैं। अलग-अलग सर्वे बीजेपी का वोट शेयर 3 से 5% तक बढ़ता हुआ दिखा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर सर्वे दिखा रहे हैं कि सीटें पच्चीस तीस ही बढ़ेंगी। बीजेपी की अभी 303 सीटें हैं। कोई कह रहा है 323 आ जाएंगी। कोई कह रहा 325 आ जाएंगी। तो कोई 335-337 की बात कर रहा है। कुछ सर्वे ऐसे हैं जो 350 के ऊपर भी देने को तैयार हैं।
कौन सी बातें हैं जिनके आधार पर वो लोग दावा कर रहे हैं कि बीजेपी पीछे हो जाएगी। जो लोग बीजेपी को 2019 के चुनाव से कम वोट देने की बात कर रहे हैं उनकी जबान पर आप दो मुद्दे सुनेंगे- महंगाई और बेरोजगारी। अगर आप चुनाव आजाद भारत के चुनावी इतिहास पर, अतीत पर, नजर डालें तो 1952 में जो पहला चुनाव हुआ और अब जो 2024 का चुनाव होने जा रहा है- हर चुनाव में महंगाई और बेरोजगारी लोगों की नजर में प्रमुख मुद्दा रहे हैं। यह सबसे बड़े दो मुद्दे रहे लेकिन इस मुद्दे पर वोट कभी नहीं पड़ता। वोट इसलिए नहीं पड़ता कि जो सरकार होती है उसके खिलाफ दूसरे मुद्दों पर वोट पड़ता है। इस मुद्दे को लेकर लोगों के मन में थोड़ी सी निराशा भी है। उनको लगता है कि कोई इस मुद्दे को हल नहीं कर पाएगा। लेकिन नरेंद्र मोदी को लेकर एक उम्मीद भी है। जैसे नरेंद्र मोदी ने पिछले 10 साल में बहुत बड़े-बड़े काम कर दिए हैं जिनकी किसी को कोई उम्मीद नहीं थी, तो लोगों को एक हल्की सी उम्मीद है कि अगर महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर कोई सफलता हासिल कर सकता है तो वह नरेंद्र मोदी ही है। तो लोगों के नरेंद्र मोदी में विश्वास के कारण विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार महंगाई और बेरोजगारी चलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। वो प्रभावी होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए बीजेपी की सीटें कम होने के जो आकलन इस आधार पर थे कि महंगाई, बेरोजगारी बढ़ रही है, युवा बेरोजगार हैं उनको नौकरी नहीं मिल रही, पेपर लीक हो जा रहे हैं- ये सब बातें, ये सब मुद्दे सही हैं, लेकिन क्या ईवीएम का बटन दबाते समय मतदाता के मन पर यह सवाल होगा? उसके मन में और बहुत सारे सवाल होंगे कि 10 साल में देश की अर्थव्यवस्था कहां से कहां पहुंची है। गरीब आदमी के मन में सवाल होगा कि उसके जीवन में किस तरह का बदलाव आया है, क्या-क्या मिला है सरकार से। जो लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग तैयार हुआ है उसको लगेगा कि हमारा जीवन स्तर कैसे बदला है? किस तरह से हम पहले से ज्यादा खुशहाल और संपन्न हैं, भले ही उनकी आमदनी बहुत ज्यादा ना बढ़ी हो- भले ही रोजगार के बहुत बड़े अवसर उनको ना मिले हों, लेकिन वो तुलना यह करेंगे कि 10 साल पहले जिस स्थिति में थे, आज उससे बेहतर स्थिति में है या नहीं।
दूसरा- उनको उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी ही हमको और बेहतर स्थिति में ले जाएंगे। जिस तरह से संकल्प पत्र में अपने बीजेपी ने कहा कि मुफ्त राशन की योजना 5 साल जारी रहेगी। उसके अलावा कहा कि हम प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों के लिए 4 करोड़ घर बना चुके हैं और अगले 5 साल में 3 करोड़ और बनाएंगे। यह उनके लिए एक उम्मीद की किरण है जिनको अभी तक प्रधानमंत्री आवास योजना में घर नहीं मिला है। उनके मन में एक उम्मीद जगी है कि जैसे हमारे 4 करोड़ साथियों को मिला है हमको भी मिलेगा। अगर आप इस उम्मीद के फैक्टर को नजरअंदाज कर देंगे और केवल महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो आपको बीजेपी की सीटें घटती हुई नजर आएंगी।
लेकिन कोई भी ओपिनियन पोल ऐसा नहीं है जो बीजेपी की सीट कम कर रहा हो या वोट शेयर कम कर रहा हो। अंतर है संख्या में। गणित का अंतर है। बीजेपी का वोट शेयर कितने परसेंट बढ़ रहा है? जो न्यूनतम वृद्धि दिखाई जा रही है वह लगभग 3.5% है और अधिकतम वृद्धि छह सात परसेंट तक जाती है। इसका औसत निकालें तो बीजेपी का लगभग 5% वोट बढ़ने जा रहा है- ऐसा चुनावी सर्वेक्षण कह रहे हैं। कांग्रेस पार्टी का वोट या तो स्थिर दिख रहा है या घटता हुआ दिख रहा है। एक ओर कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर घट रहा है लेकिन कांग्रेस पार्टी की सीटें बढ़ती हुई दिखाई जा रही हैं। यह चमत्कार कैसे होगा, पता नहीं।
जो 2019 के स्विंग स्टेट थे, अब कहां है कांग्रेस
कांग्रेस को पिछले चुनाव में पूरे देश से लोकसभा की 52 सीटें मिली थीं। उनमें 32 सीटें तीन राज्यों केरल तमिलनाडु और पंजाब से मिली थीं। बाकी पूरे देश से सिर्फ 20 सीटें आई थीं। ये तीन राज्य 2019 में कांग्रेस के लिए स्विंग स्टेट थे। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी घटती हुई नजर आ रही। कितना घटेगी, इस पर बहस हो सकती है लेकिन घटेगी, घट रही है, इसका संकेत साफ नजर आ रहा है। 2019 में कांग्रेस केरल में 20 में से 15 और पंजाब में 13 में से आठ सीटें जीती थी। तमिलनाडु में उसके कोटे में जो 9 सीटें आई थीं वो सभी 9 सीटें कांग्रेस जीती थी। इस बार भी उसको नौ सीटें मिली हैं।
केरल में स्थिति 2019 की तुलना में भिन्न है। वहां कांग्रेस की सीटें कम होने वाली हैं यह साफ दिखाई दे रहा है। इन तीनों राज्यों में एक खास बात दिखाई दे रही है। तीनों राज्यों में 2019 में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के मुकाबले में कहीं नहीं थी। लेकिन 2024 के चुनाव में, अगर केरल को छोड़ दें तो, भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पार्टी के सीधे मुकाबले में है। तमिलनाडु में डीएमके फ्रंट रनर है, सबसे आगे है। नंबर एक की पार्टी होगी इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन उसके बाद जो मुकाबला है वह अन्नाद्रमुक, कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। कांग्रेस और अन्नाद्रमुक दोनों की तुलना में बीजेपी ज्यादा मजबूत दिखाई दे रही है। सारे सर्वे कह रहे हैं बीजेपी का वोट शेयर डबल डिजिट में जाएगा, लेकिन सीटें कोई एक भी देने को तैयार नहीं है तो कोई पांच सीट तक देने को तैयार है। बीजेपी की कितनी सीटें आती हैं यह तो चुनाव नतीजा आने पर पता चलेगा, लेकिन मेरा मानना है कि तमिलनाडु में नंबर दो की पार्टी के रूप में बीजेपी अन्ना द्रमुक को रिप्लेस करने जा रही है। इसका असली असर आपको 2026 के विधानसभा चुनाव में दिखाई देगा। अभी बात सिर्फ लोकसभा चुनाव की कर रहे हैं। बीजेपी को तमिलनाडु -जो कांग्रेस का स्विंग स्टेट था- से इस बार सीटें भी मिलेंगी। वोट शेयर तो बढ़ ही रहा है।
यही स्थिति केरल में है। बीजेपी का वोट शेयर बढ़ रहा है। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि उसको दो से तीन सीटें मिल सकती हैं। एक क्षण के लिए मान लीजिए कि उसको कोई भी सीट नहीं मिलती- हालांकि माना जा रहा है कि त्रिवेंद्रम की सीट शशि थरूर हार रहे हैं और राजीव चंद्रशेखर जीत रहे हैं- तो भी बीजेपी का वोट शेयर बढ़ रहा है। जाहिर है बीजेपी का वोट शेयर बढ़ेगा तो वो कांग्रेस से ही वोट लेने जा रहे हैं। कांग्रेस के हिंदू और क्रिश्चियन वोट में ही बीजेपी सेंध लगाएगी। मुस्लिम वोट में तो सेंध लगाने से रही।
तीसरा राज्य पंजाब। वहां आज की जो नई भाजपा है, वह पुरानी कांग्रेस है। कांग्रेस के जितने जनाधार वाले नेता थे उनमें से ज्यादातर भाजपा में आ चुके हैं। भाजपा का नया चेहरा पुरानी कांग्रेस के चेहरे से मेल खाता है। वहां भारतीय जनता पार्टी की सीधी लड़ाई कांग्रेस पार्टी से होने वाली है। इसको आम आदमी पार्टी त्रिकोणीय बना रही है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और उनके जेल जाने का पंजाब के चुनाव पर कितना असर पड़ेगा इसका अंदाजा लगाना अभी मुश्किल है। इतना तय है कि आम आदमी पार्टी को नुकसान होने वाला है। वैसे भी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से आम आदमी पार्टी को पंजाब में बहुत ज्यादा समर्थन नहीं मिलता। 2014 में पहली बार वह चुनाव लड़ी थी और 13 में से चार सीटें जीती थी। 2019 में सिर्फ एक सीट पर उसे विजय हासिल हुई थी। पंजाब में कांग्रेस घट रही है बीजेपी बढ़ रही है। फिर सवाल है कांग्रेस कितना घटेगी, बीजेपी कितना बढ़ेगी। बीजेपी का वोट शेयर बढ़ेगा यह तय है। सीटें कितनी आएंगी इसके बारे में मैं कोई अनुमान नहीं लगा सकता। यहां ट्रायंगुलर कांटेस्ट में कांग्रेस की सीटें घटने जा रही हैं। कांग्रेस पार्टी के ये तीन स्विंग स्टेट रहे हैं- जहां वह पार्टी घट रही है।
सिर्फ एक राज्य अपवाद है जहां कांग्रेस की सीटें बढ़ती हुई दिख रही हैं। वह है तेलंगाना। तेलंगाना का लोकसभा चुनाव बाइपोलर हो गया है। कांग्रेस पार्टी और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई है। चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस तीसरे नंबर पर चली गई। विधानसभा चुनाव होगा तो फिर वह कंटेंशन में आ जाएगी, लेकिन लोकसभा चुनाव की दृष्टि से सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच में हो गई है। वहां बीजेपी की सीटें बढ़ना तय है। साथ ही यह भी संभव है कि कांग्रेस की सीटें भी बढ़ जाएं। वहां कांग्रेस की सरकार बड़े बहुमत से जीत कर आई है। पिछले चुनाव की तुलना में तेलंगाना एकमात्र राज्य है जहां कांग्रेस की स्थिति बेहतर है।
कुछ लोगों और कई चुनावी सर्वेक्षण का अनुमान है कि कर्नाटक में भी कांग्रेस की कुछ सीटें बढ़ सकती हैं। बताया जा रहा है कि पिछली बार की तुलना में उसकी दो से पांच सीटें बढ़ सकती हैं। लेकिन मुझे लगता नहीं। बीजेपी और जेडीएस का एलायंस सामाजिक रूप से चलने वाला है। पिछले चुनाव में जेडीएस और कांग्रेस का एलायंस हुआ था, वो चला नहीं। उसका बड़ा कारण यह था जेडीएस और कांग्रेस हमेशा एक दूसरे की धुरविरोधी रही हैं। बीजेपी जेडीएस के साथ दो बार गठबंधन की सरकार बना चुकी है। हालांकि यह अलग बात है कि सरकार चली नहीं। उसके कार्यकर्ताओं में एक केमिस्ट्री है जो गठबंधन को मजबूत बनाती है। इसलिए कर्नाटक में बीजेपी 2019 की अपनी पुरानी परफॉर्मेंस जो 28 में 25 प्लस एक की थी उसे दोहराने जा रही है, ऐसा मुझे लगता है।
बीजेपी का बड़ा लक्ष्य… और 5 राज्य
बीजेपी की दृष्टि से देखें। अगर एनडीए को 400 और बीजेपी को 370 पार पहुंचना है तो उसके पांच स्विंग स्टेट हैं। एक- तमिलनाडु का मैंने जिक्र पहले कर दिया। दूसरा राज्य होगा- पश्चिम बंगाल। तमिलनाडु इस बार 2019 का पश्चिम बंगाल बनने जा रहा है। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी कितना तेजी से आगे बढ़ गई है इसका दिल्ली में बैठकर अनुमान लगाना शायद मुश्किल होगा। बंगाल में भारतीय जनता पार्टी जनाधार बढ़ा है, उसके प्रति आकर्षण बढ़ा है। उसी के अनुपात में टीएमसी के विरुद्ध एंटी इनकंबेंसी इतनी स्ट्रांग है कि टीएमसी को उसका बहुत बड़ा नुकसान होने जा रहा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पश्चिम बंगाल में इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नंबर एक की पार्टी बनेगी।
तीसरा राज्य है उड़ीसा। उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी सत्ता के करीब आती हुई दिख रही है क्योंकि वहां लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव साथ-साथ हो रहे हैं। पिछली बार बीजेपी को 21 में से आठ सीटें मिली थीं। इस बार यह तय नजर आ रहा है कि वह डबल डिजिट में होगी। कितने तक जाएगी यह पता नहीं, लेकिन पिछली बार के मुकाबले सीटों की संख्या अच्छी-खासी बढ़ने वाली है- यह तय दिख रहा है।
बीजेपी के लिए चौथा स्विंग स्टेट बनेगा तेलंगाना। तेलंगाना में हालांकि पिछले चुनाव में बीजेपी ने चार लोकसभा सीटें जीती थीं लेकिन इस बार उसकी जीत की संभावना डबल डिजिट में दिखाई दे रही है। उसका बड़ा कारण है। बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस के साथ है। जिस भी राज्य में बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस के साथ है, वहां बीजेपी का अपर हैंड है। तेलंगाना में भी यही स्थिति है। विधानसभा चुनाव में जरूर बीजेपी की स्थिति खराब हो गई थी। कहना चाहिए जैसी उम्मीद थी बीजेपी की वैसी परफॉर्मेंस नहीं आई। उसमें बहुत सारी गलतियां हैं। वो मुद्दा अलग है। इस चुनाव में बीआरएस 2018 में विधानसभा चुनाव की तुलना में बहुत कमजोर हो गई है। चूंकि यह लोकसभा का चुनाव है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव है, इसलिए भाजपा को एडेड एडवांटेज है।
मेरे हिसाब से पंजाब बीजेपी के लिए पांचवां स्विंग स्टेट होने जा रहा है। यहाँ भारतीय जनता पार्टी आम धारणा से बहुत बेहतर करने जा रही है। अकाली दल से समझौते का टूटना इस चुनाव में उसके लिए वरदान साबित हुआ है। सफलता कितनी मिलेगी, इसे एक मिनट के लिए छोड़ नहीं दें- लेकिन भविष्य के लिए पंजाब में भारतीय जनता पार्टी के विकास का नया रास्ता खुल गया है। अकाली दल से अलग होने के बाद और जिस तरह से बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल में चतुष्कोण मुकाबला होने जा रहा है वह भारतीय जनता पार्टी को एडवांटेज है। और सिख समाज के लिए, पंजाब के लिए प्रधानमंत्री ने पिछले 10 साल में जो कुछ किया है उस सबका भी असर होने वाला है। प्रधानमंत्री की अपील का 2014 और 2019 में उतना असर नहीं दिखा तो उसका सबसे बड़ा फैक्टर था अकाली दल का साथ होना। अकाली दल का अलग होना भारतीय जनता पार्टी के लिए वरदान की तरह साबित हुआ है और इसका निश्चित लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा।
ये पांचों राज्य ऐसे हैं, जिनमें अगर पश्चिम बंगाल का अपवाद छोड़ दें तो, किसी स्टेट में बीजेपी ने बहुत अच्छा परफॉर्म नहीं किया था। पश्चिम बंगाल में भी जो 2019 की अच्छी परफॉर्मेंस थी, बीजेपी उसको बहुत अच्छा करने जा रही है। बीजेपी के इन पांच स्विंग स्टेट के अगर इन फैक्टर्स को आप जोड़े तो दिखेगा कि 47 सीटें बढ़ाना एनडीए के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। खास तौर से महाराष्ट्र में जिस तरह से एनसीपी का एक धड़ा अजीत पवार के नेतृत्व में आया है, उसको देखते हुए महाराष्ट्र में भी बीजेपी की स्थिति पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर होने वाली है। मेरा अनुमान है कि अगर इन सब फैक्टर्स को, मुद्दों को ध्यान में रखें तो एनडीए का 400 तक पहुंचना असंभव नहीं है। हो जाएगा। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन हो सकता है, यह जरूर कह रहा हूं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)