प्रधानमंत्री मोदी के नाम स्वामी चैतन्य कीर्ति का खुला पत्र।
इन दिनों भारत अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, और पूरा विश्व भारत की ओर उन्मुख है. विश्व के मनस पटल पर जो भारत की भूमिका है वह किसी और देश की नहीं है. और इस भूमिका के पीछे हज़ारों वर्षों का इतिहास है. यह इतिहास इसके शासकों का नहीं है, जितना यह इसके ऋषियों और सम्बुद्धों का है, जिन्होंने भारत को भारत बनाया है और हज़ारों वर्षों से यहाँ सत्य के खोजी आते रहे हैं. इन खोजियों के लिए यह देश सदा के लिए वसुधैव कुटुम्बकम बन गया.
बहुत लम्बे समय तक गुलाम रहने के बावजूद, लुटेरों द्वारा लुटे जाने के बावजूद, लम्बी गरीबी में जीने के बावजूद इस देश के आंतरिक समृद्धि बरकरार रही, क्योंकि यह समृद्धि इसे अपने ऋषियों और प्रज्ञापुरुषों से निरंतर मिलती रही -जिनकी एक लम्बी श्रृंखला है -शिव, कृष्ण, अष्टावक्र, शांडिल्य, बुद्ध, महावीर, शंकर, नागार्जुन, गोरख, कबीर, नानक, रैदास, मीरा, दादू, पलटू, श्रीरमण, रामकृष्ण परमहंस, जे. कृष्णमूर्ति, और ओशो। इन प्रज्ञापुरुषों ने भारत को भारत बनाया है–और भारत का अर्थ होता है वह देश जो प्रकाश की अंतर्यात्रा में सदा संलग्न है – ‘भा’ अर्थात प्रकाश और ‘रत’ यानि संलग्न). यहाँ ऋषियों ने तमसो मा ज्योतिर्गमय -अंधकार से प्रकाश की ओर अंतर्यात्रा की प्रार्थनाएं की हैं।

अमृत पथ
अपने प्रवचनों में ओशो ने भारत को एक अमृत पथ कहा है -जो सनातन से सनातन तक फैला है. उनकी इस विषय पर एक पुस्तक “इंडिया माय लव” भी प्रकाशित हुई थी -जब भारत अपनी आज़ादी के पचास वर्ष मना रहा था। ओशो की एक और पुस्तक “मेरा स्वर्णिम भारत” भी उल्लेखनीय है।
हमारे युग में रहस्यदर्शी सम्बुद्ध ओशो ने पुनः भारतवासियों को उनकी इस आंतरिक समृद्धि का स्मरण दिलाया -और पूरे विश्व को इसका परिचय दिया। 100 से अधिक देशों के लोग पुणे में ओशो के आश्रम में आते रहे। एक समय था जब विश्व भर से जितने पर्यटक ताजमहल देखने आते थे करीब करीब उतने पर्यटक पुणे में भी आते थे. और भारत में खूब विदेशी मुद्रा आती थी. ओशो का कम्यून भारत का एक नया आधुनिक वसुधैव कुटुम्बकम बन गया था।

वर्ष 1990 में ओशो देहमुक्त हुए और वर्ष 2000 तक ओशो का यह कुटुम्बकम विकासमान बना रहा। लेकिन उन्हीं दिनों चार पाश्चात्य और एक भारतीय शिष्यों ने मिलकर विदेश में, ज़ूरिख स्विट्ज़रलैंड में, ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना करके ओशो की समूची बौद्धिक सम्पदा को वहां ट्रांसफर करके कॉपीराइट और ट्रेडमार्क के द्वारा अपना एकाधिकार स्थापित किया। ओशो की विश्व की सत्तर भाषाओं में 650 पुस्तकें, उनके ऑडिओ वीडियो प्रवचनों की रॉयल्टी, osho.com की समूची कमाई वहां अटक गयी, भारत स्थित उनके आश्रम को उससे वंचित कर दिया गया।

107 करोड़ की डील
इतना ही नहीं, विदेश से पुणे स्थित आश्रम में ध्यान करने आने वाले पर्यटकों से भी काफी धन की वसूली वहीं होती रही. धीरे धीरे आश्रम को इस धन से इतना वंचित कर दिया गया और इस कगार पर ले आये कि आश्रम के एक विशेष भूखंड को बजाज ग्रुप के मालिक राजीव नयन को बेचने की योजना बन गयी. 107 करोड़ की डील हो गया। यह कार्य भारत में ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के ट्रस्टियों द्वारा चुपके चुपके हुआ- कोविड के दौरान -कोविड एक बहाना बन गया उनके उद्देश्य की पूर्ति का। इसमें इस संस्था के ज़ूरिख वाले तथा भारत के डम्मी ट्रस्टियों की सांठ गांठ थी। लेकिन इस षड्यंत्र का जब भारत में ओशो के हज़ारों शिष्यों और प्रेमियों को पता चला तो उन्होंने मुंबई में माननीय चैरिटी कमिश्नर को अपनी शिकायत भेजी -दस हज़ार लोगों से अधिक लोगों ने लिखी शिकायत भेजी। ओशो के प्रेमियों ने हाई कोर्ट में भी इसकी गुहार लगाई है।
ओशो के शिष्यों के पीएम से अपील
इस पूरे विषय में मुझे और ओशो के हज़ारों प्रेमियों को लगता है कि यह मामला केवल माननीय चैरिटी कमिश्नर और कोर्ट तक जाने का नहीं है- बल्कि इस मामले का भारत की पार्लियामेंट को संज्ञान लेना चाहिए और ओशो कम्यून के पूरे भूखंड को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करके इसका संरक्षण करना चाहिए। इस स्थान में ओशो की समाधि है -ओशो के अन्य 5 सम्बुद्ध शिष्यों की समाधियां भी हैं। यह ओशो का समाधिस्थल होने के साथ साथ ओशो का ऊर्जाक्षेत्र है। ओशो ने यहाँ भारत के बुद्धपुरुषों पर- भगवदगीता, उपनिषदों, धम्मपद, योग, तंत्र और सैकड़ों संतों पर हज़ारों प्रवचन दिए हैं। यहां हज़ारों लोगों ने आकर ध्यान किया है, ओशो के उत्सवों में शरीक हुए हैं- इस स्थान पर उन सभी की स्मृतियाँ और भावनाएं जुड़ी हैं, उनके आर्थिक योगदान से यह स्थान निर्मित हुआ है. इसे बेच डालने का किसी को हक़ नहीं होना चाहिए. इसके पहले कि यह अनहोनी बात हो जाए, ओशो के हज़ारों शिष्यों की माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से अपील है कि वे इस विषय को पूरा संरक्षण दें ताकि अतीत में हुई भारत की सम्पदा के साथ जो गलतियां हुई हैं वे दुबारा न हों.

कुछ दिनों पहले भारत सरकार की ओर से मैंने वित्तमंत्री का बयान सुना था कि भारत में 50 पर्यटक स्थलों को विकसित किया जाएगा. लेकिन पुणे का श्री रजनीश आश्रम आध्यात्मिक पर्यटक स्थल होने की ऐसी अपूर्व भूमिका पहले निभा चुका है, यहां सौ देशों के लोग आते रहे हैं, यह स्थान पहले से ही विश्वप्रसिद्ध है, इसका समुचित रखरखाव हो तो हज़ारों वर्षों तक लाखों ओशो प्रेमी यहाँ आते रहेंगे। आवश्यकता केवल एक है कि आश्रम के पुराने ट्रस्टी जो एकदम नकारा सिद्ध हुए हैं बदले जाएँ, उनके स्थान पर नए युवा ट्रस्टी कार्य सम्हालें और सरकार उसे पारदर्शी बनाने की व्यवस्था करे.
आशा है हमारे देश की संसद को इस विषय से अवगत कराया जाएगा और माननीय प्रधान मंत्री द्वारा ओशो के पूरे आश्रम को बचाया जाएगा। इस कार्य के लिए विश्व भर के लाखों ओशो प्रेमी सदा सदा के लिए अनुग्रहीत होंगे।
स्वामी चैतन्य कीर्ति, सम्पादक- ओशो वर्ल्ड पत्रिका, नयी दिल्ली
भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची
ओशो।
“पृथ्वी के इस भू-भाग में मनुष्य की चेतना की पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया था। उस सपने की माला में कितने फूल पिरोये हैं- कितने गौतम बुद्ध, कितने महावीर, कितने कबीर, कितने नानक, उस सपने के लिए अपने प्राणों को निछावर कर गये। उस सपने के मैं अपना कैसे कहूं? वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है। इस सपने को हमने एक नाम दे रखा है। हम इस सपने को भारत कहते हैं। भारत कोई भूखंड नहीं है। न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतिहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा है। न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड़ है। भारत है एक अभीप्सा, एक प्यास- सत्य को पा लेने की। उस सत्य को, जो हमारे हृदय की धड़कन-धड़क में बसा है। उस सत्य को, जो हमारी चेतना की तहों में सोया है। वह जो हमारा होकर भी हमें भूल गया है।
उसका पुनः स्मरण उसकी पुनरुद्घोषणा भारत है।
‘अमृतस्य पुत्रः- ऐ अमृत के पुत्रो’, जिनने इस उदघोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं। भारत में पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो सकता। जमीन पर कोई कहीं भी पैदा हो, किसी देश में, किसी सदी में, अतीत में या भविष्य में, अगर उसकी खोज अंतस की खोज है, वह भारत का निवासी है। मेरे लिए भारत और अध्यात्म पर्यायवाची हैं। भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची हैं।”
(फिर पत्तों की पाजेब बजी/ प्रवचन-1)