डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
निवेश के मामले में सबसे आकर्षक उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। ऐसे में जब चीन 96 लाख वर्ग किलोमीटर में पसरा है जबकि भारत का एरिया 33 लाख वर्ग किलोमीटर से भी कम है। स्वभाविक है कि क्षेत्रफल की दोगुनी से ज्यादा अधिकता होने के कारण से चीन के पास प्राकृतिक संसाधन भारत से अधिक हैं, इसलिए हम देखते भी हैं तमाम प्रकार के कच्चे माल के लिए दुनिया के कई देश चीन पर निर्भर रहते आए हैं। फिर भारत और चीन की स्वतंत्रता में भी बहुत अधिक अंतर नहीं । 1945 में जापान के सरेंडर के बाद चीन को पूरी तरह स्वतंत्र देश का दर्जा मिल गया था। किंतु 1945 में स्वतंत्रता के बाद माओ त्से तुंग की लीडरशिप में कम्युनिस्ट्स और नेशनलिस्ट्स के बीच एक बार फिर जंग छिड़ गई थी, जिसके बाद अगले चार साल तक यहां सिविल वॉर की स्थिति बनी रही।
वर्ष 1949 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चीन लोक गणराज्य की स्थापना हुई। तब चीन पुराने कोमिंगतांग सरकार के कुशासन से मुक्त हुआ। तब से लेकर आज तक दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या होने के बाद भी आर्थिक मोर्चे पर यह देश दुनिया के विकसित देशों को टक्कर देता आया है। वहीं, भारत चीन से दो वर्ष पूर्व स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था। लेकिन भारत के पास कोई स्पष्ट आर्थिक रीति-नीति नजर नहीं आई थी । शुरू में भारत इसी में उलझा रहा कि वह रूस और चीन से पोषित साम्यवादी-समाजवादी सिद्धांतों पर चलेगा अथवा अमेरिका-इंग्लैण्ड के पूंजीवादी सिंद्धांत पर या फिर अपने परंपरागत प्राचीन सिद्धांतों को नए संदर्भों के साथ अपने लिए स्वीकार करेगा। स्वभाविक है इस ऊहापोह में कई वर्ष निकल जाने थे, सो हुआ भी । इस बीच भारत में कई सरकारें आईं और गईं। हालांकि विकास में सभी का अपना कुछ न कुछ योगदान है, किंतु जो कार्य मोदी कार्यकाल के दौरान पिछले नौ सालों में हुआ है, वह हर मायने के काबिले-तारीफ है।
कहना होगा कि हर मोर्चें पर इस सरकार का परफॉर्मेंस एक्सीलेंट है। एक ओर जब दुनिया के तमाम देशों की आर्थिक मोर्चे पर नकारात्मक रिपोर्ट आ रही हो, तब भी भारत की रिपोर्ट उसके समर्थन में आए, तो यह निश्चित ही नेतृत्व की सफलता है। ग्लोबल इवेस्टमेंट मैनेजमेंट फर्म इंवेस्को की हालिया रिपोर्ट कह रही है कि अपने बिजनेस, राजनीतिक स्थिरता, डेमोग्राफी, रेग्यूलेटरी फैसलों के साथ ही सॉवरेन निवेशकों के लिए दोस्ताना माहौल बनाने में सफल रहने से भारत की छवि विश्व भर में बेहद अच्छी हुई है और उसे बेहद पॉजिटिव नजरिए से देखा जा रहा है।
इनवेस्को ग्लोबल सॉवरेन असेट मैनेजमेंट की रिपोर्ट बता रही है कि साल 2023 में भारत पूरी दुनिया के निवेशकों की पहली पसंद बनकर उभरा है। चीन अब उससे काफी पीछे चला गया है। यह रिपोर्ट दुनिया भर के 142 चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर्स, 85 पोर्टफोलियो स्ट्रेटजिस्ट और 57 केंद्रीय बैंकों के ऑफिसर्स, एसेट क्लॉस के हेड के अलावा इसमें कई वरिष्ठ पोर्टफोलियो स्ट्रैटजिस्ट के द्वारा दिए गए तथ्यों के आधार पर तैयार की गई है और सभी का यही एक समान मानना है कि इनवेस्टर्स के लिए सबसे तेज बढ़ती डेमोग्राफी और फ्रेंडली इनवॉयरमेंट की वजह से इनवेस्टर्स यहां सबसे अधिक आ रहे हैं।
दुनिया के निवेशकों का भारत के प्रति बढ़ते भरोसे का आलम यह है कि वर्ष 2022 में 66 फीसदी निवेशकों ने भरोसा जताया तो अब 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 76 प्रतिशत पर जा पहुंचा है। जोकि उभरते बाजारों में सबसे अधिक है। जबकि चीन में पिछले साल 71 फीसदी निवेशक आए थे, इस साल यह आंकड़ा गिरकर 51 प्रतिशत पर जाकर रुक गया । इंडोनेशिया ने भी इस साल तेज छलांग लगाई है और उसके पास 44 फीसदी निवेशक गए, जबकि बीते साल यह आंकड़ा 27 फीसदी तक ही रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वो सबकुछ है जो सॉवरेन निवेशकों को चाहिए।
वस्तुत: यह रिपोर्ट आज इसलिए भी अहम है क्योंकि इंवेस्को 85 सॉवरेन फंड्स और 57 सेंट्रल बैंकों का करीब 21 ट्रिलियन डॉलर के करीब एसेट अपने पास रखनेवाली कंपनी है। निश्चित ही यह बड़ी सफलता है, क्योंकि आज भारत उन देशों में शामिल हो गया है जो घरेलू और इंटरनेशनल डिमांड के चलते पोर्टफोलियो कॉरपोरेट इवेस्टमेंट के लिहाज से सबसे ज्यादा फायदे में हैं। इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार के प्रयास हर मायने में सराहनीय कहे जाएंगे।(एएमएपी)
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं)