डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

ज्ञानवापी मस्जिद पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट क्‍या सार्वजनिक हुई।  ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की खुलकर मंशा और हिन्‍दू विरोधी भड़ास एक बार फिर बाहर आई है। वैसे प्राय: वह बातें संविधान के हवाले से करने का दावा करते हैं, किंतु उनके आचरण से यही साबित होता रहा है कि वे इसी संविधान का जब देखो तब मजाक बनाते हैं। कई अवसरों पर वे बता भी चुके हैं कि उन्‍हें संवैधानिक व्‍यवस्‍थाओं पर भरोसा नहीं है। राममंदिर का निर्णय उच्‍चतम न्‍यायालय से आया, किंतु आज भी वे बार-बार मुसलमानों के साथ अन्‍याय होने का जिक्र कर रहे हैं। वे कोई कसर नहीं छोड़ते मुसलमानों को भड़काने का। इससे भी सिद्ध होता है कि उनका न्‍यायालय और भारतीय संविधान पर कोई भरोसा नहीं। अब कह रहे हैं कि हिंदुत्व की गुलाम है एएसआई।

ओवैसी का कहना है कि ज्ञानवापी पर आई एएसआई की  रिपोर्ट किसी भी पेशेवर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार के सामने टिकेगी नहीं। यह रिपोर्ट अनुमानों पर आधारित है और विज्ञान सम्मत शोध का मजाक है। एएसआई हिंदुत्व की गुलाम है। वस्‍तुत: ओवैसी ने यह कहकर बता दिया है कि वे किसी भी हाल में हिन्‍दू सनातन धर्म के पक्ष में सामने आए सच को स्‍वीकार्य करनेवाले नहीं हैं।  हिन्‍दुत्‍व और हिन्‍दुओं से उन्‍हें इतनी अधिक नफरत है कि हिन्‍दुस्‍तान में रहते हुए वे उसी बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज के मानबिन्‍दुओं का अपमान करते हैं, जिसके कारण से भारत वर्ष पूरे विश्‍व में जाना जाता है।

प्राचीन वैभवशाली,ज्ञान परंपरा और संस्‍कृति को इस्‍लामिक आक्रान्‍ताओं ने नष्‍ट किया

ज्ञानवापी मस्जिद पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आज  अनेक साक्ष्‍यों के साथ बता रहा है कि कैसे एक प्राचीन वैभवशाली ज्ञान परंपरा और संस्‍कृति को इस्‍लामिक आक्रान्‍ताओं ने नष्‍ट कर दिया था और एक जागृत मंदिर को मस्‍जिद में बदल दिया गया । बहुसंख्‍यक हिन्‍दुओं के मान बिन्‍दुओं जिसमें कि वे देवता के स्‍वरूप को एक आदर्श के रूप में लेते हुए, उसकी स्‍थापना, प्राण प्रतिष्‍ठा कर उसकी आराधना करते हैं, उन्‍हें ही इतिहास में तमाम इस्‍लामिक आक्रान्‍ताओं ने खण्‍ड-खण्‍ड किया है। क्‍या ओवैसी ज्ञानवापी के अंदर के प्राप्‍त चिन्‍हों को नकार सकते हैं । वैसे कोई बड़ी बात नहीं वे कहने लगें कि तमाम सुरक्षा व्‍यवस्‍थाओं में सेंध लगाकर हिन्‍दू ही मुर्तियों को अंदर लेकर आ गए थे और उन्‍होंने ने ही अपने पक्ष को मजबूत करने क लिए वहां इन्‍हें स्‍थापित कर दिया!

विभाजन के बाद भी मुसलमानों को आत्मसात किया

हो सकता है कल वे यह भी कहते नजर आएं कि अंदर दीवार में जो चिन्‍ह मिले हैं, वह भी रात के अंधेरे में हिन्‍दुओं ने मस्‍जिद में घुसकर बना दिए हैं! कोई भरोसा नहीं अभी वे और उनके जैसे अन्‍य इस्‍लामिक कट्टरपंथी मुसलमान कितनी सीमा तक नीचे गिरेंगे! किंतु उन्‍हें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश और यहां का लोक सब देख रहा है। शांति से यदि मुसलमान ज्ञानवापी पर अपना दावा वापिस ले लेते तो आज इस तरह से कोर्ट-कचहरी की जरूरत ही नहीं होती । जिन हिन्‍दुओं ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन होने के बाद भी मुसलमानों को आत्‍मसात किया हो, सिर्फ आत्‍मसात ही नहीं अल्‍पसंख्‍यक मानकर उनके लिए विशेष रियायतें विधि में निर्धारित की हों, उन बहुसंख्‍यक हिन्‍दुओं के देश भारत में इस तरह का ओवैसी जैसे मुसलमानों के व्‍यवहार को क्‍या माना जाए, आज यह भी सोचने का गंभीर विषय है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास अनेक एतिहासिक साक्ष्‍य

वस्‍तुत: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास अनेक एतिहासिक साक्ष्‍य हैं जो साफ बता रहे हैं कि कैसे ज्ञानवापी मस्जिद वहां पहले से मौजूद एक पुराने मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई। एएसआई की 839 पन्नों वाली सर्वेक्षण रिपोर्ट से स्पष्ट है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद एक भव्य हिंदू मंदिर को ध्वस्त किए जाने के बाद उसके अवशेषों पर खड़ी की गई थी। सर्वेक्षण के दौरान दो तहखानों में हिंदू देवताओं की मूर्तियों के अवशेष पाए गए हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण में स्तंभों सहित पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल किया गया था। मंदिर को तोड़ने का आदेश और तारीख पत्थर पर फारसी भाषा में अंकित है। ‘महामुक्ति’ लिखा हुआ एक पत्थर भी मिला है।

मस्जिद के पीछे की पश्चिमी दीवार एक मंदिर की दीवार

मस्जिद के पीछे की पश्चिमी दीवार एक मंदिर की दीवार है। उस दीवार पर घण्टा, वल्लरी (लताओं का उकेरा गया चित्र) और स्वास्तिक का चिह्न मिले हैं। दीवार पर पत्थरों पर उकेरा गया ब्रह्म कमल का तोरण द्वार बना हुआ है। ज्ञानवापी परिसर में स्थित तहखाने की छत जिन खम्भों पर टिकी हैं वे सभी नागर शैली के मंदिर के स्तंभ हैं। इन साक्ष्यों से यह प्रतीत होता है कि 17वीं शताब्दी में औरंगजेब द्वारा जब आदि विशेश्वर का मंदिर तोड़ा गया था तो उसके पूर्व उक्त स्थान पर विशाल मंदिर ही था। सच यही है कि बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज को अपमानित करने का कार्य इतिहास में होता रहा है।

ज्ञानवापी की तरफ मुंह कर बैठे नंदी को वर्षों से न्‍याय का इंतजार

अब होना तो यह चाहिए कि न्‍यायालय को जो सबूत, मंदिर प्रमाण के लिए चाहिए थे वे आज मिल गए हैं, ऐसे में अब उसे हिंदुओं के पक्ष में आदेश पारित कर देना चाहिए, ताकि वहाँ हिन्‍दू समाज भगवान महादेव का रुद्राभिषेक, पूजा-पाठ आरंभ कर पाए। जिस तरह से अयोध्‍या में भगवान श्रीराम को 500 वर्षों की कठिन प्रतीक्षा एवं अनेक बलिदानों के बाद रामलला के रूप में प्राणप्रतिष्‍ठि‍त  होने का सुखद अवसर मिला है, वैसा ही अवसर अब काशी में प्राचीन विश्‍वनाथ मंदिर का जीर्णोंद्धार होकर हिन्‍दू समाज को मिलना चाहिए। देखा जाए तो आज भी ज्ञानवापी की तरफ मुंह कर बैठे नंदी को वर्षों से न्‍याय का इंतजार है। भारत में इसे आप दुर्भाग्‍य ही कहेंगे कि सत्‍य को अपनी परीक्षा देनी पड़ रही है और असत्‍य (ओवैसी) जैसे अट्टहास कर रहे हैं। बहुसंख्‍यक मुसलमानों से भी अपील है, वह ओवैसी जैसों की बातों में न आएं। सत्‍य को खुले ह्दय से स्‍वीकार्य करें और ज्ञानवापी स्वेच्छा से हिन्‍दू समाज को सौंप देवें।(एएमएपी)