प्रेमेंद्र श्रीवास्तव
अजय देवगन की फ़िल्म ‘भुज”- “द प्राइड आफ इंडिया” डिज्नी हाॅटस्टार पर रिलीज़ हुई है। फिल्म में संजय दत्त एक किरदार निभा रहे हैं, ‘रणछोड़दास रबारी’ ‘पगी’ का। रणछोड़दास के सेना को दिये योगदान के बारे में कम लोग ही जानते हैं।
विजय का सबसे बड़ा सूत्रधार
फोटो में जो वृद्ध गडरिया है, वास्तव में ये एक सेना की विजय का सबसे बड़ा सूत्रधार था। 2008 में फील्ड मार्शल मानेक शॉ वेलिंगटन अस्पताल, तमिलनाडु में भर्ती थे। गम्भीर बीमारी व अर्धमूर्छित अवस्था में वे एक नाम अक्सर लेते थे – ‘पगी… पगी’, डाक्टरों ने एक दिन पूछ ही लिया “ये पगी कौन है ?”
सैम साहब ने पगी के बारे में जो बताया वो हैरान कर देने वाला था।
मानेक शॉ का आदेश
बात आज से पचास पहले की है। भारत 1971 का युद्ध जीत चुका था। जनरल मानेक शॉ ढाका में थे। आदेश दिया कि पगी को बुलवाओ। डिनर आज उसके साथ करूँगा। हेलिकॉप्टर भेजा गया। हेलिकॉप्टर पर सवार होते समय पगी की एक थैली नीचे रह गई, जिसे लाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया। अधिकारियों ने नियमानुसार हेलिकॉप्टर में रखने से पहले थैली खोलकर देखी तो दंग रह गए। उसमें दो रोटी, प्याज तथा बेसन का एक पकवान (गाठिया) भर था। डिनर में एक रोटी सैम साहब ने खाई और दूसरी पगी ने।
‘रणछोड़दास पोस्ट’
उत्तर गुजरात के ‘सुईगाँव’ अन्तरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर पोस्ट को ‘रणछोड़दास पोस्ट’ नाम दिया गया। यह पहली बार हुआ जब किसी आम आदमी के नाम पर सेना की कोई पोस्ट और साथ ही उनकी मूर्ति भी लगाई गई।
मार्गदर्शक
पगी का अर्थ है- ‘मार्गदर्शक’ यानी वह व्यक्ति जो रेगिस्तान में रास्ता दिखाए। रणछोड़दास रबारी को जनरल सैम मानिक शॉ इसी नाम से बुलाते थे।
रणछोड़दास गुजरात के बनासकांठा ज़िले के पाकिस्तान की सीमा से सटे गाँव पेथापुर गथड़ों के निवासी थे। वे भेड़, बकरी व ऊँट पालन का काम करते थे। उनके जीवन में बदलाव तब आया जब उन्हें 58 वर्ष की आयु में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक के रूप में रख लिया।
गजब का हुनर
उनमें इतना हुनर था कि ऊँट के पैरों के निशान देखकर ही बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार हैं। इंसानी पैरों के निशान देखकर वज़न से लेकर उम्र तक का अन्दाज़ा सही सही लगा लेते थे। कितनी देर पहले का निशान है तथा कितनी दूर तक गया होगा, सब एकदम सटीक आकलन। जैसे कोई कम्प्यूटर गणना कर रहा हो।
पदचिह्न देखकर बताई पाक सैनिकों की संख्या
1965 के युद्ध के आरम्भ में पाकिस्तानी सेना ने भारत के गुजरात में कच्छ सीमा स्थित विधकोट पर कब्ज़ा कर लिया। इस मुठभेड़ में लगभग 100 भारतीय सैनिक हताहत हो गये थे तथा भारतीय सेना की एक 10 हजार सैनिकों वाली टुकड़ी को पहुंचने में तीन दिन लगने वाले थे। तब पहली बार जरूरत पड़ी थी रणछोडदास पगी की। रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ की बदौलत उन्होंने सेना को तय समय से 12 घण्टे पहले मंजिल तक पहुँचा दिया था। सेना के मार्गदर्शन के लिए उन्हें सैम साहब ने खुद चुना था तथा सेना में एक विशेष पद सृजित किया गया- ‘पगी’। अर्थात- पग यानी पैरों के चिन्हों का जानकार। भारतीय सीमा में छिपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन तथा अनुमानित संख्या केवल उनके पदचिह्नों को देखकर भारतीय सेना को बता दी थी पगी ने। इतना ही काफ़ी था सेना के लिए वह मोर्चा जीतना।
फील्ड मार्शल मानेक शाॅ छिड़कते थे जान
1971 के युद्ध में सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ अग्रिम मोर्चे तक गोला-बारूद पहुँचाना भी पगी के काम का हिस्सा था। पाकिस्तान के पालीनगर शहर पर जो भारतीय तिरंगा फहराया था, उस जीत में पगी की अहम भूमिका थी। सैम साहब ने स्वयं 300 रूपये का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था रणछोड़दास को। पगी को तीन सम्मान भी मिले 65 व 71 के युद्ध में उनके योगदान के लिए- संग्राम पदक, पुलिस पदक व समर सेवा पदक।
गौरव बढ़ानेवाला इतिहास पढ़ाया जाए
27 जून, 2008 को सैम मानिक शॉ का देहांत हो गया तथा 2009 में पगी ने भी सेना से ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ ले ली। तब पगी की उम्र 108 वर्ष थी। जी हाँ, आपने सही पढ़ा… 108 वर्ष की उम्र में ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ व 2013 में 112 वर्ष की आयु में पगी का निधन हो गया। हमें पाठ्य पुस्तकों में देश का गौरव बढ़ानेवाला यह इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। न कि वो सब जो हमें सदियों से पढ़ाया जा रहा है। (सोशल मीडिया से)