भारत के मामलों में दख़लअंदाज़ी करने वाला और बात-बात पर भारत के मुसलमानों को दोयम दर्जे का बताने वाला पाकिस्तान, अपने यहां धार्मिक चरमपंथियों का शिकार है। यहां अल्पसंख्यकों का जीना दूभर हो गया है।  अक़िल्यती तबक़े के लोगों को, ना तो जीते जी सुकून है और ना ही मरने के बाद। जिससे लगता है कि, पाकिस्तान की शहबाज़ शरीफ़ सरकार ने इन चरमपंथियों के आगे घुटने टेक दिए है।

कट्टर सुन्नियों को है अहमदिया मुसलमानों से गहरी नफरत

पाकिस्तान में कट्टर सुन्नियों को वहां के अल्पसंख्यक अहमदियाओं से कितनी नफरत है उसका एक और उदाहरण कराची में देखने में आया है। यहां सुन्नियों की भीड़ ने कल एक अहमदी समुदाय की एक प्राचीन मस्जिद पर हमला बोलकर उसकी मीनारों को तोड़ डाला। कराची की उक्त घटना के सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में मस्जिद के सामने लोगों की भीड़ दिखाई दे रही है। कुछ मस्जिद की दीवारें फलांघते हुए उसकी छत पर चढ़कर मस्जिद की मीनारें तोड़ते देखते जा सकते हैं। अखबारों में आईं रिपोर्ट में उपद्रवियों को तहरीके लब्बैक पाकिस्तान से जुड़ा बताया जा रहा है।

क़ब्रों पर लिखा ‘अहमदी डॉग’

इससे पहले पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में धार्मिक चरमपंथियों ने अहमदियों की कई कब्रों को कथित तौर पर अपवित्र कर दिया था । ‘जमात अहमदिया पाकिस्तान’ के अधिकारी आमिर महमूद का कहना है कि लाहौर से करीब 100 किलोमीटर दूर हाफिजाबाद जिले में प्रेम कोट कब्रिस्तान में कब्रों के पत्थरों को क्षतिग्रस्त किया गया था । कब्रों को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों ने उन पर ‘‘अहमदी डॉग’’ भी लिखा, जो परिवारों के लिए बेहद तकलीफदेह है। उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान में रह रहे अहमदी मरने के बाद भी सुकून में नहीं हैं।’’

अहमदिया समुदाय की गर्भवती महिलाओं पर हमला करना का देते हैं मौलवी आदेश

वहीं, बीते साल तहरीके लब्बैक पाकिस्तान से जुड़े एक मौलवी ने खुलेआम अहमदिया समुदाय की गर्भवती महिलाओं पर हमला बोलने का आह्वान किया था। सुन्नी चाहते ही नहीं कि अहमदियाओं की नस्ल आगे बढ़े। उस उन्मादी मौलवी मोहम्मद नईम का वह नफरती वीडियो उस वक्त सोशल मीडिया पर खूब साझा किया गया था।

पाकिस्‍तान में सुन्‍नी नहीं मानते अहमदी को मुसलमान

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक, खासतौर से अहमदी बेहद कमजोर हैं और धार्मिक चरमपंथी, उन्हें अक्सर निशाना बनाते हैं। एक दशक बाद उन्हें अपने आप को मुस्लिम कहने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया था। उन्हें तीर्थयात्रा पर सऊदी अरब जाने से भी रोक दिया गया था। दरअसल, पाकिस्तानी संसद ने 1974 में अहमदिया मुस्लिम जमात को गैर मुस्लिम घोषित किया था और 1984 में जनरल जिया उल हक ने अध्यादेश पारित करके अहमदी समुदायों के उन सभी कामों पर पाबंदी लगा दी जिनसे वे मुसलमान जाहिर होते हों।

इस कानून के अंतर्गत हजारों अहमदियों की हत्या कर दी गई। आज भी पाकिस्तान की जेलों में अहमदिया समुदाय के अनेक सदस्य सजा काट रहे हैं। लाहौर की मस्जिद में 92 मासूम अहमदियों की नमाज पढ़ते हुए गोलियां मार कर 2010 में हत्या कर दी गई थी। उन्हें सरकार और समाज से बड़े पैमाने पर सुन्नियों के बहुमत के साथ भेदभाव का सामना करना पड़ता है ।

पाकिस्तानी संविधान से अहमदी भी हैं  ‘काफिर’ घोषित

पाकिस्तानी संविधान ने इस्लाम के अहमदियों को ‘काफिर’ घोषित किया और उन्हें ‘मुसलमानों के रूप में प्रस्तुत करने’ से भी रोक दिया. अहमदियों के सदस्यों ने आरोप लगाया कि कई मामलों को दबा दिया गया और यहां तक कि जब मामले दर्ज किए जाते हैं, तब भी जांच और शिकायतें कमजोर होती हैं, जिसके बाद अपराधी मुक्त हो जाते हैं।

ईशनिंदा के आरोप में अब तक कई अहमदियों को मौंत के घाट उतारा गया

ऐसी कई रिपोर्टें हैं जिनमें पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था द्वारा अहमदियों के साथ दुर्व्यवहार का हवाला दिया गया है, क्योंकि ईशनिंदा के मुकदमे में इस समुदाय के कई लोग मारे भी गए हैं. सबसे अशुभ रूप से, अहमदिया संप्रदाय पाकिस्तान के हिंसक ईशनिंदा कानूनों के लिए सबसे कमजोर बना हुआ है, उनकी पहचान की वजह से 2017 से कम से कम 13 अहमदी मारे गए और 40 घायल हुए हैं. 23 अगस्त, 2021 की एक पूर्व रिपोर्ट में इतिहासकार और वकील यासर लतीफ हमदानी, बीबीसी उर्दू के पूर्व संपादक ताहिर इमरान मियां और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं राबिया महमूद और अली वारसी के हवाले से आरोप लगाया गया कि  पाकिस्तान पूरी दुनिया पर इस्लामोफोबिया में लिप्त होने का आरोप लगाता है, जबकि वे खुद इसमें लिप्त हैं।

कराची की इस ताजा घटना से पाकिस्तान में बसा अहमदिया समुदाय सकते में है। इलाके के अहमदिया किसी अनहोनी की आशंका से घबराए हुए हैं। उन्हें डर है कि उनके समुदाय के विरुद्ध आगे कोई बड़ी हिंसक कार्रवाई हो सकती है। खौफ इसलिए भी ज्यादा है कि सुन्नी पुलिस उनकी मदद के लिए आगे नहीं आती।(एएमएपी)