मलिक असगर हाशमी

कश्मीर के गुलबर्ग का हिस्सा रहे पाकिस्तान के बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए 72 वर्षों बाद मुखर वकालत शुरू हो गई है। यह वकालत वहां की सरकार के खिलाफ लोहा लेने वाले अलगाववादी संगठन ‘बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी’ नहीं, बल्कि पाकिस्तान के 11 विपक्षी दलों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट पीडएम कर रही है। इसके नेता सार्वजनिक मंचों से बलूचिस्तान की आजादी के लिए अंतिम सांसों तक लड़ाई की बातें कर रहे हैं। वे कहते हैं ‘ब्लैक पर्ल’ की बदतर हालत तभी  सुधरेगी, जब यह पाकिस्तान से अलग होगा।


 

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से बलूचिस्तान को ‘काली मोती’, वहां के तेल, गैस, सोना जैसे प्राकृतिक संपदाओं के भंडारों के कारण कहा जाता है। पाकिस्तान का यह चैथा प्रांत है। इसके हिस्से पाकिस्तान के कुल क्षेत्र फल का 44 प्रतिशत आता है। पाकिस्तान की कुल जनसंख्या का तकरीबन दस प्रतिशत हिस्सा यहां आबाद है। इतिहास के मुताबिक, 27 मार्च 1948 को ‘आपरेशन गुलमर्ग’ के तहत भारत के कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तानियों ने हथिया लिया था। तब की जवाहरलाल सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रह गई थी।

पाकिस्तान सेना का दमन-चक्र

हालांकि बलूचिस्तान के लोग कभी भी पाकिस्तान के साथ रहने के पक्ष में नहीं रहे। वहां स्वतंत्रता की लड़ाई लगातार लड़ी जा रही है। उनकी अगुवाई बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी करती है। बलोचों की आवाज़ दबाने के लिए पाकिस्तान सेना ने यहां दमन-चक्र चला रखा है। आजादी की आवाज़ उठाने वालों को सेना गायब कर देती है। एक आंकड़े के अनुसार पिछले एक वर्ष में विरोधी आवाजों को दबाने के लिए हजार से अधिक युवाओं को सेना ने रहस्यमय तरीके से गायब कर दिया। बलूचिस्तान में 11 स्थानीय नेताओं को गायब करने के विरोध में पिछले एक पखवाड़े से आंदोलन चल रहा है। पिछले सप्ताह वहां से प्रदर्शनकारियों, पुलिस एवं सेना के बीच छड़प की भी खबरें आई थीं। गत महीने इमरान खान सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए बने 11 विपक्षी दलों के गठबंधन पीडीएम का प्रतिनिधित्व करने वाले जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के अध्यक्ष मौलाना फ़ज़लुर्रहमान कहते हैं, ‘‘बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है। हम चाहेंगे कि मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए सक्रिय अंतरराष्ट्रीय संगठन बलूचिस्तान का दौरा करें।’’

Pakistan's opposition alliance all set to hold anti-government rally in Quetta - The Economic Times

बड़ी रैलियों का सिलसिला

पीडीएम इमरान खान को सत्ताच्युत करने के लिए पिछले सप्ताह से बड़ी रैलियों का सिलसिला शुरू किए हुए है। मंच से इमरान की सरपरस्ती एवं उन्हें सत्ता तक पहुंचाने के लिए बदनाम पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा की भी बखिया उधेड़ी जाती है। कराची में पीडीएम की रैली के बाद सेना एवं सिंध प्रांत पुलिस के बीच टकराव की नौबत आ गई थी। वहां गृहयुद्ध जैसे हालात बने हुए हैं। ‘द इंटरनेशनल हेराल्ड’ ने सेना-पुलिस टकराव में 10 पुलिस एवं पांच सेना के जवानों के मारे जाने की खबर दी थी। हालांकि पाकिस्तान की मेन स्ट्रीम मीडिया इस खबर को खा गई।

आजादी की आवाज़ बुलंद

बहरहाल, पीडीएम (The Pakistan Democratic Movement) की रैली की इसी कड़ी में रविवार को बलूचिस्तान के क्वेटा शहर में एक विशाल जलसा आयोजित किया गया। इसमें मौलाना फ़ज़लुर्रहमान के अलावा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी और पूर्व प्रधानमंत्री मियाँ नवाज शरीफ की पुत्री एवं उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन की महासचिव मरयम नवाज भी शामिल हुईं। इस मंच से जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान के वरिष्ठ नेता मौलाना शाह ओवैसी नूरानी ने बलूचिस्तान की आजादी की आवाज़ बुलंद की। यही नहीं पीडीएम की तरफ से वहां मौजूद लोगों को विश्वास दिलाया कि उनकी यह लड़ाई बलूचिस्तान की आजादी तक जारी रहेगी।

सत्तारुढ़ दलों में बौखलाहट

पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्री मुराद सईद

उनके इस बयान से सत्तारुढ़ दलों के नेता एवं उनके हिमायतियों में भयंकर बौखलाहट है। कोई पीडीएम नेताओं को देशद्रोही बता रहा तो कोई भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की बोली करार दे रहा। राजनीतिक विश्लेषक अमजद सईद तो यहां तक कहते हैं कि ऐसे नेताओं की जुबना खींच लेनी चाहिए।’’ पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्री मुराद सईद ने आरोप लगाया कि पीडीएम भारत-इजरायल का एजेंडा चला रहे हैं। दूसरी तरफ क्वेटा के मंच पर मौजूद पीडीएम के सभी नेताओं ने मौलाना नूरानी के बयान का समर्थन किया। किसी ने भी उनके विरोध में एक शब्द नहीं कहा। मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने तो बलूचिस्तान की बदहाली की समीक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों को यहां का दौरा करने का  निमंत्रण दे डाला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लालकिला के प्राचीर से बलूचिस्तान की आजादी और उस पर भारत के अधिकार की बात कह चुके हैं।


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