उल्लेखनीय है कि झारखंड का राजकीय पुष्प भी पलाश ही है। पलाश कवियों और साहित्यकारों ने पलाश पुष्प को अलग-अलग दृष्टि से देखा है। कविवर हरिवंश राय बच्चन ने पलाश के फूलों को क्रांति का प्रतीक बताया है। कबीर दास पलाश को मानव जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाने वाला बताया है।
होली के रंगों में होता है पलाश के फूलों का उपयोग
पलाश और सेमल के फूलों का उपयोग होली के दौरान रंग और गुलाल बनाने में किया जाता रहा है। तोरपा के 75 वर्षीय बैजनाथ ठाकुर बताते हैं कि भले ही आज के बच्चे केमिकलयुक्त रंगों से होली खेलते हों लेकिन पहले लोग पलाश और सेमल के फूलों से रंग और गुलाल बनाते थे। रंग बनाने के लिए फूलों को किसी बड़े बर्तन में रातभर आग पर पकाया जाता है।
गुलाल बनाने के लिए फूलों को धूप में सुखाया जाता है और पीसकर गुलाल तैयार किया जाता है। एक किलो फूल से लगभग आठ सौ ग्राम गुलाल तैयार हो जाता है। रनिया प्रखंड के प्रखंड प्रमुख रहे वयोवृद्ध जय गोविंद मिश्रा कहते हैं कि हमें हर हाल में प्रकृति के साथ चलना होगा। पलाश और सेमल के फूलों से बने रंग शरीर के लिए काफी लाभदायक हैं। इसलिए हमें रसायन युक्त रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
तोरपा के वैद्य नंदू महतो कहते हैं कि पलाश औषधीय गुणों की खान हैं। इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों में किया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को चाहिए कि वह पलाश के फूलों की खरीदारी कर उससे प्राकृतिक रंग और गुलाल का निर्माण कराए। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
पलामू और हजारीबाग में प्रशासन करता है फूलों की खरीदारी
खूंटी जिले में प्रचूर मात्रा में पलाश के पेड़ पाये जाते हैं लेकिन इसके उपयोग पर प्रशासन अब तक ध्यान नहीं दे सका है। जेएसएलपीएस के परियोजना प्रबंधक शैलेश रंजन बताते हैं कि पलाश के फूलों के व्यावसायिक उपयोग के बारे में जिला प्रशासन विचार कर रहा है। पलामू और हजारीबाग जिले में प्रशासन रंग और गुलाल बनाने के लिए पलाश के फूलों की खरीदारी करता है। प्रशासन द्वारा बीस रुपये प्रति किलो की दर से पलाश के फूलों की खरीदारी कर रहा है। इससे स्थानीय लोगों को कुछ समय के लिए रोजगार मिल जाता है। (एएमएपी)