व्योमेश चन्द्र जुगरान।
शरदोत्सव यदि पहाड़ों में पर्यटकों की विदाई का पर्व है तो ग्रीष्मोत्सव के जरिये उनकी अगवानी क्यों न हो! इसी विचार को मूर्त रूप देते हुए गढ़वाल मंडल के मुख्यालय पौड़ी में 2003 में ग्रीष्मोत्सव का चलन प्रारंभ किया गया। आज न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश भर में पौड़ी ग्रीष्मोत्सव की पहचान बनी है और खूबसूरत रंगों के साथ इसने पौड़ी, मसूरी और नैनीताल में शरदोत्सव की परिपाटी को नया आयाम दिया है।
चाहे सांस्कृतिक रंगमंच हो या खेल का मैदान, ग्रीष्मोत्सव में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं अपना हुनर बिखेरती हैं। आयोजन का सबसे प्रमुख ईवेंट अखिल भारतीय फुटबॉल प्रतियोगिता है जिसमें देशभर से विभिन्न टीमें पहुंचती हैं और लोगों को स्थानीय कंडोलिया मैदान में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडि़यों का अनूठा कौशल देखने को मिलता है। फुटबॉल प्रतियोगिता के मुख्य संयोजक और भारतीय खेल प्राधिकरण के पूर्व वरिष्ठ फुटबॉल कोच दयाल सिंह रावत ने बताया कि इस बार बाहर से आई प्रमुख टीमों में एसएसबी सिलीगुड़ी, आईएफसी दार्जिलिंग, गढ़वाल हीरोज दिल्ली, इनकम टैक्स दिल्ली और एयरफोर्स दिल्ली शामिल हैं। स्थानीय टीम पौड़ी यूनाइटेड को मिलाकर कुल 11 टीमों ने टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। टीमों में इंडियन सुपर लीग में खेलने वाले अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर भी शामिल हैं और दर्शकों को उनका कौशल देखने को मिला है।
फुटबॉल हमेशा से पौड़ी की शान रहा है।दूसरे शब्दों में कहें तो पौड़ी और फुटबॉल एक-दूसरे के पर्याय रहे हैं। यहां के कंडोलिया मैदान ने दशकों से खिलाड़ियों की एक पौध को सींचा है। इनमें कुछ भारतीय खेल प्राधिकरण के न सिर्फ नामचीन कोच रहे हैं, बल्कि सुब्रतो कप जैसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के लिए खिलाड़ियों के चयन में भी शामिल रहे हैं। दयाल सिंह रावत इन्हीं में एक हैं। उनके अलावा चंद्रप्रकाश बहुगुणा, जगमोहन सिंह नेगी और वीरेंद्र नेगी जैसे नाम हैं जिन्होंने अपनी खेल प्रतिभा से नई पीढ़ी के फुटबॉलरों को संवारा है।
ग्रीष्मोत्सव का भार उठाती आई स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष यशपाल बेनाम ने ग्रीष्मोत्सव की थीम के बारे बताया कि विभिन्न आयोजनों के जरिये हम खेल और संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। हमारी थीम आंचलिकता है और हम स्थानीय के साथ-साथ समूचे गढ़वाल व कुमाऊं तथा दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों के प्रवासी कलाकारों को आमंत्रित कर ग्रीष्मोत्सव में तरह-तरह के रंग भर रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्थानीय नगर पालिका सप्ताह भर चलने वाले इस सारे आयोजन को अपने आर्थिक संसाधनों से करती है। यदि इसमें प्रदेश सरकार भी हाथ बंटाए तो ग्रीष्मोत्सव में चार चांद लगाए जा सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)