डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
किसान आन्दोलन पिछले कई दिनों से जारी है। सरकार से हुई बातचीत बेनतीजा रही है। अब भारतीय किसान यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। ऐसा वे पहले भी कर सकते थे। परंतु उन्होंने तब नहीं किया। क्योंकि वे समझते थे कि दबाव की राजनीति बनाकर वे मोदी सरकार को झुका लेंगे।  वे यह भी समझते थे कि वे जनता को मूर्ख बना सकते हैं।

कानून के क्षेत्र में एक सदियों पुरानी लीगल मैक्सिम अर्थात सिद्धान्त है:
He who comes into equity must come with clean hands.
अर्थात जो भी व्यक्ति अदालत से न्याय चाहता है उसके अपने हाथ अपराध से नहीं रंगे होने चाहिए।
ये बड़े किसान अपने आन्दोलन में दिल्ली जाने वाली सार्वजनिक सड़कों को जाम किए हुए हैं।  इन्हें अदालत से न्याय मांगने का कोई अधिकार नहीं है। इन्हें पहले अपना सड़क-जाम आन्दोलन समाप्त करना होगा, तभी उन्हें सुप्रीम कोर्ट से न्याय की अपेक्षा करनी चाहिए।
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सच तो यह है कि ये बड़े किसान खुद मुंह छुपाने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं। मोदी सरकार ने साफ कह दिया है कि तीनों कृषि कानून वापस नहीं होंगे। इन बड़े किसानों ने भारत बंद करके भी देख लिया कि इन्हें अधिसंख्य जनता का कोई समर्थन प्राप्त नहीं है। किसान आन्दोलन के बावजूद हाल ही में राजस्थान के निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ही जीत हुई है।

जनता की गर्दन पर छुरी रख कर न्याय नहीं मांग सकते

ये निराश किसान नेता अपने ही दुष्चक्र में फंस चुके हैं। अब समस्या यह है कि उससे कैसे बाहर निकलें। उसका एक तरीका यह है कि सुप्रीम कोर्ट चले जाओ अपनी मांगों को मनवाने के लिए। और इन किसान नेताओं को पूरी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इनसे कहेगा कि तुम पहले सार्वजनिक सड़कें जाम करना बंद करो तभी तुम्हारा मुकदमा सुना जाएगा। तुम जनता की गर्दन पर छुरी रख कर सुप्रीम कोर्ट से न्याय नहीं मांग सकते।
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पंजाब के बड़े किसानों को लाखों करोड़ों की टैक्स फ्री आय है
बहुत से पाठकों को शायद यह नहीं मालूम होगा कि पंजाब के कई बड़े नेता चंडीगढ़ में न रह कर गांवों में रहते हैं। क्योंकि वहाँ के गाँव बहुत समृद्ध हैं, खुशहाल हैं। वहाँ के गाँव सड़कों से जुड़े हैं। बिजली की कोई समस्या नहीं है। सड़कें भी अच्छी हैं। गड्ढा मुक्त हैं। कृषि आय पर कोई इनकम टैक्स भी नहीं लगता है। इन बड़े किसानों को कृषि से लाखों करोड़ों की आमदनी है। वह भी इनकम टैक्स फ्री। इन लोगों के डर है कि मोदी सरकार इन बड़े किसानों पर इनकम टैक्स न लगा दे। दूसरी ओर मोदी सरकार छोटे किसानों की आमदनी दुगनी और तिगुनी करने के लिए प्रयासरत है। इन्हीं प्रयासों के कारण तीन नए कृषि कानून बनाए गए हैं, जिनका यह बड़े किसान विरोध कर रहे हैं।
कनाडा और ब्रिटेन में बैठे खलिस्तानी गुट भी इस आंदोलन को हर तरह का समर्थन दे रहे हैं। कनाडा का रक्षा मंत्री ही खलिस्तान समर्थक है। तो अगर वहाँ का प्रधान मंत्री इस आंदोलन का समर्थन करता है, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं।
(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)