स्मरण: अमीन सायानी (21 दिसंबर 1932 – 20 फरवरी 2024)

उमेश जोशी । 

अमीन सायानी की बेमिसाल आवाज़ और निराले अंदाज़ के कारण ही रेडियो सीलोन लोकप्रिय हुआ था। मुझे 60 और 70 के दशक के वो दिन बख़ूबी याद हैं, जब लोग रेडियो या ट्रांजिस्टर ख़रीदने जाते थे तो दुकानदार से एक ही सवाल पूछते थे- क्या यह रेडियो सीलोन पकड़ता है? दुकानदार बड़े आत्मविश्वास के साथ ‘हाँ’ कहते हुए सेट पर रेडियो सीलोन स्टेशन बाक़ायदा ट्यून कर तसल्ली करवाता था। ग्राहक यह तसल्ली पाने के बाद ही सेट ख़रीदता था।

दुकानदार अपने ग्राहकों को यह  हिदायत भी देता था कि एंटीना सही तरीक़े से लगाएँगे तभी रेडियो सीलोन साफ़ सुनाई देगा। उन दिनों ट्यूब वाले रेडियो होते थे और उनके लिए घर की छत पर पट्टीदार जाली का एंटीना लगाया जाता था। आज भी कभी रेडियो की बात होती है तो ट्यूब वाले रेडियो की तस्वीर आँखों के सामने आ जाती है। जिस पीढ़ी ने ट्यूब वाला रेडियो देखा है, उनके लिए रेडियो की असली छवि वही है।

ट्रांजिस्टर में एंटीना इन-बिल्ट होता था इसलिए अलग से एंटीना लगाने की जरूरत नहीं होती थी। रेडियो या ट्रांजिस्टर अच्छा है या ख़राब, उसका एक ही पैमाना होता था- रेडियो सीलोन पकड़ता है, या नहीं… पकड़ता है, तो कितना साफ़ पकड़ता है!

जब कोई रेडियो ख़रीद कर घर लाता था तो परिवार और गाँव के लोग एक ही बात पूछते थे-रेडियो सीलोन पकड़ता है? तब बड़ी शान से जवाब दिया जाता था- चला कर देखा है, बहुत साफ़ पकड़ता है। रेडियो सीलोन का यह क्रेज़ सिर्फ़ एक प्रोग्राम ‘बिनाका गीतमाला’ की वजह से था और वो प्रोग्राम आवाज़ के जादूगर अमीन सायानी हर बुधवार पेश करते थे। अमीन सायानी और ‘बिनाका गीतमाला’ एक दूसरे के पूरक माने जाते थे। बाद के कुछ वर्षों में इसका नाम बदल कर ‘सिबाका गीतमाला’ कर दिया गया था। 1952 से 1988 तक रेडियो सीलोन पर अमीन सायानी की जादूई आवाज़ गूंजती रही। इसके बाद यह प्रोग्राम ‘विविध भारती’ पर चला गया था। वहाँ यह कार्यक्रम 1994 तक चला। अमीन सायानी ने ”बिनाका गीतमाला” के साथ 42 साल का लंबा सफ़र तय किया।

‘बिनाका गीतमाला’ शुरू होने पहले ही रेडियो सीलोन स्टेशन ट्यून कर लिया जाता था। जिनके घर रेडियो होता था उस घर के सदस्य एक-दूसरे को याद दिलाते थे कि आज बुधवार है, बिनाका गीतमाला सुनना है, भूल मत जाना। उसके बाद घर में चर्चा शुरू हो जाती थी कि आज कौन-सा गीत पहली पायदान पर होगा।  यह अमीन सायानी की आवाज का कमाल था कि यह कार्यक्रम आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंच गया था।

हमारे घर में रेडियो नहीं था इसलिए एक मास्टर जी के पास बिनाका गीतमाला सुनने जाता था। गाँव में 2-3 लोगों के पास ही रेडियो होता था और उन्हीं के घर गाँव के लोग रेडियो सुनते थे। वे रात पौने नौ बजे का समाचार बुलेटिन सुनने के लिए इकट्ठे होते थे; बिनाका गीतमाला में उनकी दिलचस्पी नहीं थी। यह वो समय था जब रेडियो का भी लाइसेंस लेना पड़ता था। आवाज़ के जादूगर अमीन सायानी को विनम्र श्रद्धांजलि।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)