पद्म पुरस्कार 2024

राजीव रंजन।

आज से एक दशक पहले का वह समय याद कीजिये, जब समाज सेवा, चिकित्सा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, व्यापार, उद्योग, कला, साहित्य, शिक्षा, खेलकूद और सिविल सेवा आदि के क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवाओं के लिए दिये जाने वाले पद्म सम्मानों का दायरा काफी सीमित था। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 2014 के पहले ये सम्मान एक तरह से ‘विशिष्ट’ लोगों तक सीमित थे। पहले प्रधानमंत्री और कुछ प्रभावशाली मंत्रियों के हाथ में अधिकार होता था कि ये सम्मान किन लोगों को दिए जाएं? लेकिन मोदी सरकार ने बीते दस वर्ष में ‘वीआइपी कल्चर’ की इस परंपरा को खत्म करते हुए राष्ट्र के उत्थान में अपनी विशिष्ट भागीदारी दर्ज कराने वाले देश के अति सामान्य स्तर के नागरिकों को पद्म सम्मान से विभूषित कर उनका गौरव बढ़ाया है। वर्ष 2024 के लिए 5 पद्मविभूषण, 17 पद्मभूषण और 110 पद्मश्री सहित 132 पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई है। इनमें 30 महिलाएं हैं। पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में विदेशी/ एनआरआई (अप्रवासी भारतीय)/ पीआईओ (भारतीय मूल के लोग)/ ओसीआई (प्रवासी भारतीय नागरिकता) श्रेणी के 8 व्यक्ति तथा 9 मरणोपरांत पुरस्कार विजेता भी शामिल हैं।इस वर्ष भी पद्म सम्मान से सम्मानित होने वालों में बड़ी संख्या में आम नागरिक शामिल हैं, जो किसी भी तरह के प्रचार-प्रसार से दूर, राष्ट्रहित में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ अनजान नायक-नायिकाओं की ‘रील’ नहीं वरन् ‘रीयल स्टोरी’ आपके सामने प्रस्तुत है, जो समाजसेवा और पर्यावरण रक्षा के साथ भारत के धर्म, संस्कृति, परम्परा और धरोहर को संरक्षित कर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के पुनीत लक्ष्य में पूरी ईमानदारी से जुटे हुए हैं।

सिनेमा के जरिए पाई ख्याति

श्रीमती वैजयंतीमाला बाली (पद्मविभूषण)

वैजयंती माला पहली ऐसी दक्षिण भारतीय अभिनेत्री थीं,जिन्होंने हिंदी सिनेमा में सफलता के झंडे गाड़े। वह एक उत्कृष्ट शास्त्रीय नृत्यांगना हैं और उन्होंने हिन्दी फिल्मों में नृत्य को एक ऊंचा स्थान दिलाया। दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार के साथ उनकी जोड़ी काफ़ी लोकप्रिय रही थी। वैजयंती माला ने पांच साल की उम्र में पहला स्टेज शो किया था। वैजयंती माला ने गुरु वझूवूर रमिआह पिल्लै से भरतनाट्यम सीखा था। 13 साल की उम्र से ही उन्होंने स्टेज शो के माध्यम से भारतनाट्यम का प्रदर्शन कर शुरू कर दिया था। फिल्मों में काम करने के बाद वैजयंती माला ने राजनीति में भी सफलता हासिल की। वह अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं। वह पहली बार 1984 में लोकसभा सदस्य बनीं और बाद में राज्यसभा सदस्य भी बनीं।

स्वच्छता का जरिया बना सुलभ

डॉ. बिंदेश्वर पाठक (मरणोपरांत) (पद्मविभूषण)

प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और स्वच्छता को प्रोत्साहित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई। अपने अथक समर्पण से उन्होंने अनगिनत लोगों के जीवन का उत्थान किया। 15 अगस्त, 2023 को उनका निधन हो गया। डॉ. बिंदेश्वर पाठक के मानवतावादी कार्यों ने भारत में हजारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन को बदल दिया है। सुलभ इंटरनेशनल के अलावा, उन्होंने दूसरे सामाजिक कार्यों में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। 1992 में, पाठक को पोप जॉन पॉल द्वितीय ने पर्यावरण के लिए अंतरराष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार- ‘कैंटिकल ऑफ ऑल क्रिएचर्स’ से सम्मानित किया था।

पद्मा को मिला पद्म सम्मान

डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम (पद्मविभूषण)

पद्मा सुब्रह्मण्यम भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं। भारत के साथ विदेशों में भी उनकी काफी ख्याति है। पद्मा सुब्रह्मण्यम कोरियोग्राफर, संगीतकार, गायिका, शिक्षिका होने के साथ ही साथ एक लेखिका भी हैं। वह इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की ट्रस्टी भी हैं। उनके पिता एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे और मां मीनाक्षी संगीतकार और तमिल तथा संस्कृत की गीतकार थीं। पद्मा सुब्रह्मण्यम ने वजुवूर बी. रामैया पिल्लै से नृत्य सीखा था। उन्होंने अपने पिता के डांस स्कूल में 14 वर्ष की उम्र से ही नृत्य सिखाना शुरू कर दिया था। उनके सम्मान में जापान, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों में कई फिल्में और वृत्तचित्र बनाए गए हैं। डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने चोल साम्राज्य में सत्ता हस्तांरण के प्रतीक रहे‘सेंगोल’ के बारे में एक लेख के हवाले से जानकारी दी थी। इसके बाद, नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित करने के बारे में सरकार ने विचार किया और फिर उसे संसद भवन में स्थापित किया गया।

मेहनत और लगन से पाया सर्वोच्च स्थान

एम. फातिमा बीवी (मरणोपरांत) (पद्मभूषण)

एम. फातिमा बीवी सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज थीं। भारत सरकार ने उन्हें मृत्यूपरांत पद्मभूषणसम्मान देने की घोषणा की है। वह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज ही नहीं थीं, बार काउंसिल में गोल्ड मेडल जीतने वाली भी पहली महिला थीं। उन्होंने 1950 में एडवोकेट के तौर पर केरल में करियर की शुरुआत की। 1974 में जिला एवं सत्र न्यायालय में न्यायाधीश बनीं और फिर 1983 में उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनीं। 1989 में वह सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं और इतिहास रचा। वह 29 अप्रैल 1992 तक सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश रहीं। वह तमिलनाडु की राज्यपाल भी रहीं।

सुर सजा भूषण

प्यारेलाल शर्मा (पद्मभूषण)

संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा 84 साल की उम्र में भी सक्रिय हैं। उन्होंने अपने जोड़ीदार स्व. लक्ष्मीकांत शांताराम कुदलकरके साथ दर्जनों फिल्मों में कर्णप्रिय संगीत दिया। वे एक समय में हिन्दी फिल्मों के सबसे लोकप्रिय और व्यस्त संगीतकार थे। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने सात बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। प्यारेलाल देश के सर्वश्रेष्ठ वायलिन वादकों में से एक थे। फिल्म ‘शोर’ के कालजयी गाने ‘एक प्यार का नगमा है’ में उनके वायलिन की धुन आज भी लोगों की आंखों में पानी ला देती है। देश के लगभग सभी बड़े फिल्मकारों ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से अपनी फिल्मों के लिए गाने बनवाए हैं।

साहित्य सेवा को सम्मान

होर्मुसजी एन कामा (पद्मभूषण)

होर्मुसजी एन कामा को इस वर्ष साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण देने की घोषणा की गई है, जो भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है। होर्मूसजी नुसरवानजी कामा मुंबई समाचार के प्रबंध निदेशक हैं और बॉम्बे एसोसिएटेड न्यूजपेपर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक भी हैं। अनुभवी पत्रकार होर्मूसजी कामा ने वर्ष 2018-2019 में ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वह दो बार इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के अध्यक्ष भी रहे। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) और मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे। कामा परिवार लंबे समय से मीडिया व्यवसाय से जुड़ा है और 1933 से मुंबई समाचार का प्रकाशक है।

सेवा है यज्ञ कुंड, समिधा सम हम जलें

डॉ. सीताराम जिंदल (पद्मभूषण)

डॉ. सीताराम जिंदल जिंदल एल्युमीनियम लिमिटेड (जेएएल) के संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं,जो भारत में एल्युमीनियम इक्स्ट्रूशन की सबसे बड़ी कंपनी है।यह अकेले घरेलू बाजार के 25 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति करता हैऔर पिछले कई दशकों से लगातार उद्योग में अग्रणी बना हुआ है। डॉ. सीताराम जिंदल का जन्म 1932 में हरियाणा के नलवा में हुआ था। उन्होंने नेचुरोपैथी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। वह सामाजिक कार्यों को लेकर भी बहुत प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में धर्मार्थ संस्थाओं की स्थापना भी की है।

दिल के रोगों को लेते हर

अश्विन बालचंद मेहता (पद्मभूषण)

अश्विन बालाचंद मेहता भारत के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उन्हें इस क्षेत्र में पांच दशकों से भी ज्यादा का अनुभव प्राप्त है। वह भारत में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के अग्रणियों में से एक हैं। वह मुंबई के जसलोक अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग के निदेशक हैं। उन्होंने 1973 में भारत में नवजात शिशुओं में पहला कार्डियक कैथीटेराइजेशन और एंजियोग्राफी किया था। उसी वर्ष उन्होंने देश में बंडल इलेक्ट्रोग्राफी की शुरुआत भी की थी। उन्हें 35,000 से अधिक एंजियोप्लास्टी और 75,000 से अधिक एंजियोग्राफी करने और सुपरविजन करने का अनुभव है।

अध्यात्म के रास्ते की प्राणियों की सेवा

तोगदान रिनपोछे (मरणोपरांत) (पद्मभूषण)

रिनपोछे तिब्बती बौद्ध परंपरा के एक प्रख्यात योगी और विद्वान थे, जो लद्दाख में रहते थे।उन्होंने अपनी अनंत करुणा और प्रबुद्ध गतिविधियोंसे अनेक प्राणियों की मदद की। उन्हें मरणोपरांत अध्यात्म के क्षेत्र में पद्मभूषण दिया गया है। तोगदान रिनपोछे बौद्ध अनुयायियों के बीच काफी प्रसिद्ध रहे हैं। लद्दाख के अलावा अन्य राज्यों और देशों में भी उनके अनुयायी रहे हैं। उनका निधन मई 2023 में लेह में हुआ।

अतुलनीय योगदान, विशिष्ट सम्मान

कुन्दन व्यास (पद्मभूषण)

कुंदन व्यास जी को साहित्य और शिक्षा-पत्रकारिता के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। गुजराती साहित्य में उनकाउत्कृष्ट योगदान है। उन्होंनेअपनी निर्भीक पत्रकारिता ने नई पीढ़ी का मार्गदर्शन किया है।कुन्दन व्यास 9 जून, 1934 को स्थापित जन्मभूमि अखबार के मुख्य संपादक हैं। वह इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के अध्यक्ष पद का दायित्व भी निभा चुके हैं।

संघर्ष, सफलता और अब सम्मान

मिथुन चक्रवर्ती (पद्मभूषण)

गौरांग चक्रवर्ती उर्फ प्रख्यात सिने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने अपनी पहली ही फिल्म ‘मृगया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1977) जीता था। ‘मृगया’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने के बाद भी उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि उनका रूप-रंग पारंपरिक नायकों जैसा नहीं था। इसके चलते उन्हें फिल्म जगत में कई बार अस्वीकरण (रिजेक्शन) का सामना करना पड़ा था। काले रंग के होने के कारण उस समय की कोई भी टॉप एक्ट्रेस उनके संग काम नहीं चाहती थी। ऐसे में जीनत अमान ने मिथुन के साथ फिल्म करने की स्वीकृति देकर उनकी मदद की। दोनों ने एक साथ कई हिट फिल्में दीं। इसके बाद मिथुन चक्रवर्ती ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1982 में बी. सुभाष निर्देशित फिल्म ‘डिस्को डांसर’ ने मिथुन चक्रवर्ती को स्टार बना दिया। एक समय में उन्हें ‘गरीबों का अमिताभ बच्चन’ कहा जाता था। उन्होंने तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते हैं। दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का- 1977 में ‘मृगया’ और 1993 में ‘ताहादेर कथा’ के लिए तथा एक बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का- 1996 में ‘स्वामी विवेकानंद’ के लिए।

महावत की महारथ

पारबती बरुआ (पद्मश्री)

भारत की पहली महिला महावत हैं। असम की 67 वर्षीया पारबती ने परंपरागत रूप से इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया है। वह पूरी प्रतिबद्धता के साथ वैज्ञानिक उपायों के जरिये मनुष्य और हाथी के संघर्ष को कम करने के लिए कार्य कर रही हैं। उन्होंने जंगली हाथियों को पकड़ने और उनसे निपटने में तीन राज्य सरकारों की सहायता की है। उन्हें यह कौशल अपने पिता से विरासत में मिला है। उन्होंने 14 वर्ष की उम्र से यह काम शुरू किया और पिछले चार दशकों में कई बिगड़ैल हाथियों के जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक संपन्न पृष्ठभूमि से आने के बावजूद उन्होंने एक साधारण जीवन चुना।

समाज कल्याण के लिए समर्पित जीवन

जागेश्वर यादव (पद्मश्री)

जागेश्वर यादव छत्तीसगढ़ के जशपुर के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने हाशिये पर पड़े बिरहोर और पहाड़ी कोरवा लोगों (पीवीटीजी यानी ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह’) की बेहतरी और कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने जशपुर में आश्रम की स्थापना की और शिविर लगाकर निरक्षरता उन्मूलन तथा स्वास्थ्य सेवा मानकों को बेहतर करने के लिए काम किया। वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान उन्होंने टीकाकरण शिविर लगवाए। आर्थिक तंगी के बावजूद, सामाजिक बदलाव लाने का उनका जुनून कायम है।

‘हम वो जमात हैं जो खंजर नहीं कलम से चोट करते हैं’

सुरेंद्र किशोर (पद्मश्री)

सुरेंद्र किशोर एक अनुभवी पत्रकार हैं। वह पटना में पांच दशक से अधिक समय से निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं। वे अपनी स्पष्टता,सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाना जाते हैं। उन्होंने 2005 तक दैनिक आज,जनसत्ता और हिंदुस्तान जैसे प्रतिष्ठित समाचारपत्रों के लिए काम किया है। अपनी पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है और आम लोगों के पक्ष को सामने रखा है।

त्रासदी को अवसर में बदल दिव्यांगों की बने आशा

गुरविंदर सिंह (पद्मश्री)

सिरसा (हरियाणा) के सामाजिक कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह अनाथों और दिव्यांगों के लिए आशा की किरण हैं। उन्होंने अपना जीवन बेघर निराश्रितों,अनाथों, दिव्यांगजन औरमहिलाओं की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया है। अपने अटूट समर्पण के साथ,उन्होंने ‘बाल गोपाल धाम’ नामक बाल देखभाल संस्थान की स्थापना करके 300 बच्चों के सपनों को पोषित किया है। उन्होंने 6,000 से अधिक दुर्घटना के शिकार व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा प्रदान की है। ट्रक की चपेट में आने के बाद गुरविंदर सिंह का कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था और वे जीवन भर के लिए व्हीलचेयर पर ही सीमित हो गए, लेकिन उन्होंने हताश होने की बजाय अपनी निजी त्रासदी को दूसरों की सेवा के अवसर में तब्दील कर दिया।

पारम्परिक किस्मों का किया परिक्षण

सत्यनारायण बेलेरी (पद्मश्री)

केरल के कासरगोड के चावल किसान सत्यनारायण बेलेरी 2008 से मुख्य रूप से केरल और कर्नाटक की 650 से ज्यादा पारंपरिक किस्मों का संरक्षण कर रहे हैं। उन्हें सीडिंग सत्य के नाम से भी जाना जाता है। बेलेरी ने पॉलीबैग में धान उगाकर संरक्षण की एक नई तकनीक विकसित की है। इसके अतिरिक्त,वे सुपारी,जायफल,काली मिर्च, की अहम पारंपरिक किस्मों का भी संरक्षण कर रहे हैं। बेलेरी ने अनुसंधान केंद्रों को चावल की 50 किस्में उपलब्ध कराई हैं और किसानों को निःशुल्क चावल के बीज बांटे हैं, इससे अनुसंधान और संरक्षण को बढ़ावा मिला है।

समाज का काम, मिला अद्भुत इनाम

संगथंकिमा (पद्मश्री)

आईजॉल, मिजोरम के संगथंकिमा मिजोरम में सबसे बड़ा अनाथालय चलाते हैं। वह तीन दशकों से बच्चों के कल्याण और नशामुक्ति के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही, एचआईवी-एड्स को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। वह शिक्षा और अन्य सामाजिक मुद्दों को लेकर भी अनवरत काम कर रहे हैं। संगथंकिमाअनाथों,दिव्यांगजन और नशा के आदी लोगों के पुनर्वास काम कर रहे हैं और उन्हें आश्रय उपलब्ध करा रहे हैं। असम के चार जिलों में अपने पुनर्वास केंद्रों के माध्यम से वह उत्तर-पूर्वी समुदायों और बर्मा के लोगों के लिए काम रहे हैं।

हजारों जिंदगियों में लाए उजियारा

हेमचंद मांझी (पद्मश्री)

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के निवासी वैद्य श्री हेमचंद मांझी ने अपना पूरा जीवन जड़ी-बूटियों की खोज में समर्पित कर दिया हऐ। उन्होंने लगभग पांच दशकों में हजारों लोगों का सफल उपचार किया है। वह 15 साल की आयु से यह काम कर रहे हैं। उन्हें ‘वैद्यराज मांझी’ के नाम से भी जाना जाता है। वह अबूझमाड़ के सुदूर जंगलमें पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों के विशेष ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। वह मरीजों से नाममात्र का शुल्क लेते हैं। नक्सलियों द्वारा बार-बार धमकियां मिलने के बावजूद, उन्होंने ईमानदारी और उत्साह के साथ लोगों की सेवा का कार्य जारी रखा है।

जड़ी बूटियों की रानी ने गढ़ी नयी कहानी

यानुंग जमोह लेगो (पद्मश्री)

अरुणाचल प्रदेश कीएक हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। उन्हें ‘जड़ी-बूटियों की आदि रानी’के नाम से जाना जाता है।उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के आदि समुदाय की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को पुनर्जीवित करने का काम किया है। अरुणाचल के पूर्वी सियांग स्थित हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञयानुंग जमोह लेगो ने 10,000 से अधिक लोगों को चिकित्सा देखभाल प्रदान की है। उन्होंने ने एक लाख लोगों को औषधीय जड़ी-बूटियों के बारे में शिक्षित किया है, साथ हीस्वयं सहायता समूहों को भी औषधीय जड़ी-बूटियों के प्रयोग के बारे मेंप्रशिक्षित किया है। उन्होंने प्रतिवर्ष 5,000 से अधिक औषधीय पौधे लगाए और जिले के हर घर में हर्बल किचन गार्डन बनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया है।

दिहाड़ी मजदूर जिसने दूसरों का जीवन संवारा

सरबेश्वर बसुमतारी (पद्मश्री)

असम के आदिवासी किसान सरबेश्वर बसुमतारी एक दिहाड़ी मज़दूर थे, फिर उन्होंने किसानी का काम शुरू किया। वह असम के चिरांग जिले के पनबारी गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने जीवन में कई मुश्किलों और चुनौतियों का सामना किया है। बसुमतारीने मिश्रित एकीकृत कृषि दृष्टिकोण को सफलतापूर्वक अपनाया और नारियल, संतरे, धान, लीची और मक्का जैसी विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती की। समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने अपने ज्ञान को अन्य किसानों तक पहुंचाया, जिससे उनकी दक्षता बढ़ी और बेहतर आजीविका में सहायता मिली।

पीड़ितों को देतीं नया जीवन

प्रेमा धनराज (पद्मश्री)

मात्र आठ साल की उम्र में आग की चपेट में आने से डॉ. प्रेमा 50 प्रतिशत से भी अधिक जल गई थीं। उन्होंने निजी त्रासदी से उबरकर जले हुए पीड़ितों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।बुरी तरह जलने के बाद प्रेमा धनराज ने खुद को रिकवर किया और फिर डॉक्टर बनीं। वह प्लास्टिक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन हैं, जो जले हुए पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास का काम करती हैं। डॉ. प्रेमा धनराज ने ‘अग्नि रक्षा’ नामक एनजीओ की स्थापना की है और 25,000 जले हुए पीड़ितों को मुफ्त सर्जरी सेवा प्रदान की है। उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी पर तीन किताबें भी लिखी हैं।

‘गोदना के गौरव’ ने किया गौरवान्वित

शांति देवी पासवान और शिवन पासवान (पद्मश्री)

बिहार राज्य निवासी पति-पत्नी की यह गोदना चित्रकार जोड़ी सामाजिक दंशों की पीड़ा झेलने के बावजूद, वैश्विक स्तर पर मधुबनी पेंटिंग का प्रमुख चेहरा बन गई। इनके आर्ट वर्क को अमेरिका,जापान,हॉन्गकॉन्ग समेत कई देशों में ख्याति मिली है। दंपती ने इस विरासत को संरक्षित करने के लिए 20 हजार महिलाओं को प्रशिक्षित भी किया है। शांति देवी ने भारत में संपन्न हुए ‘जी 20 शिखर सम्मेलन’जैसे वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद,शिवन पासवान ने पेंटिंग करना और युवाओं को कौशल प्रदान करना जारी रखा। ये ‘गोदना के गौरव’ माने जाते हैं।

लुप्त होती विरासत के रखवाले

जानकीलाल (पद्मश्री)

राजस्थान के भीलवाड़ा के बहरूपिया कलाकार हैं। उन्हें इस लुप्त होती कला शैली में महारत हासिल है। वह छह दशकों से अधिक समय से पूरी दुनिया के दर्शकों को अपनी बहरूपिया मंत्रमुग्ध कर रहे हैं। वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं, जो पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वह पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और पारंपरिक कहानियों के पात्रों का रूप धर कर तीन पीढ़ियों की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में इस स्थानीय कला को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।

कृष्णलीला में परंपरा और तकनीक का इम्प्रोवाइजेशन

गोपीनाथ स्वाइन (पद्मश्री)

ओडिशा के गंजाम के कृष्ण लीला गायक गोपीनाथ स्वाइन ने अपना जीवन इस परंपरा के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित कर दिया है। 105 वर्षीय गोपीनाथ नौ दशक से कृष्ण लीला गायन कर रहे हैं। पारंपरिक तकनीकों के प्रयोग तथा इम्प्रोवाइजेशन से वह कृष्ण लीला में जान फूंक देते हैं और इस तरह वह अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल बना देते हैं। वह कृष्ण लीला कलाकारों के परिवार से आते हैं। उन्होंने पांच साल की छोटी उम्र से अपनी संगीत यात्रा शुरू कर दी थी। उन्होंने अखाड़ों (पारंपरिक ग्रामीण विद्यालयों) की स्थापना की और सैकड़ों शिष्यों को अपना ज्ञान प्रदान किया। वृद्धावस्था के बावजूद, वह पूरे दक्षिणी ओडिशा से प्रतिभाओं को खोजकर इस अनूठी कला का ज्ञान उन्हें दे रहे हैं और इस कला को प्रचारित कर रहे हैं।

कला कौशल से प्रतिमाओं में भर देते जान

सनातन रुद्र पाल (पद्मश्री)

पारंपरिक कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में पांच दशकों से अधिक का अनुभव रखने वाले प्रतिष्ठित मूर्तिकार सनातन रुद्र पाल को ‘सबेकी दुर्गा प्रतिमाएं’ बनाने में महारत हासिल है। उनके द्वारा बनाई गईं मां दुर्गा की प्रतिमाएं पश्चिम बंगाल में वार्षिक दुर्गा पूजा समारोह का अभिन्न हिस्सा बन गई हैं। उनकी मिट्टी की मूर्तियां हर वर्ष 30 से अधिक पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं। वह 1,500 से अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं। अपनी अद्भुत मूर्तियों के लिए उन्हें यूनेस्को द्वारा भी मान्यता मिली है। वह मूर्ति निर्माताओं के परिवार से आते हैं। उन्होंने अपनी एक अनोखी शैली निर्मित की है। उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों में आंखें अत्यंत आकर्षक, दीप्तिमान और प्रभावशाली होती हैं।

प्राचीन कला को संरक्षण

जॉर्डन लेप्चा (पद्मश्री)

सिक्किम के 50 वर्षीय बांस शिल्पकार पिछले 25 वर्षों से लेपचा जनजाति की सांस्कृतिक विरासत को संजो रहे हैं। वह ऐतिहासिक घटनाओं और पारिवारिक मूल्यों की कहानियों को दर्शाती बांस की टोपियां बनाते हैं। वह पिछले 25 वर्षों से पारंपरिक लेप्चा टोपी बुनाई और बांस शिल्प की प्राचीन कला को संरक्षित कर रहे हैं। एक कुशल शिल्पकार और समर्पित प्रशिक्षक जॉर्डन लेप्चा ने सिक्किम के विभिन्न हिस्सों से आए 150 से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण दिया है, जिनमें से कई अब बांस शिल्प के माध्यम से अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं।

‘छऊ’ को दी अंतरराष्ट्रीय पहचान

नेपाल चंद्र सूत्रधार (मरणोपरांत) (पद्मश्री)

अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के छऊ नृत्य के मुखौटे बनाने वाले कलाकार नेपाल चंद्र सूत्रधार ने अपने पिता और दादा से 8 साल की उम्र से छऊ मुखौटा बनाने की कला सीखनी शुरू कर दी थी। वह पांच दशकों तक छऊ मुखौटा के निर्माण और संरक्षण में निरंतर संलग्न थे। उन्होंने 70 छऊ नृत्य समूहों को प्रशिक्षित किया और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुखौटा बनाने की कार्यशालाओं में भाग लिया।

(‘पाञ्चजन्य’ के 11 फरवरी 2024 अंक में आप इसे विस्तार से पढ़ सकते हैं)