प्रदीप सिंह।
कहावत है ऊंट की चोरी निहुरे निहुरे नहीं होती। जो लोग निहुरे शब्द का अर्थ ना जानते हो उनके लिए स्पष्ट कर दूं निहुरे मतलब झुककर। ऊंट की चोरी करते समय आप अगर झुक जाएंगे तो ऊंट को नहीं छिपा पाएंगे। ऊंट की चोरी झुककर नहीं हो सकती है। कांग्रेस पार्टी यही कोशिश कर रही है। कांग्रेस पार्टी का मैनिफेस्टो, कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी का जो सार्वजनिक बयान है- उस पर अब सैम पित्रोदा का बयान आया है। वह राहुल गांधी के सलाहकार हैं, कांग्रेस के सलाहकार हैं, इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रेसिडेंट है। वह राजीव गांधी के भी सलाहकार रहे हैं और गांधी परिवार से उनका बड़ा करीबी रिश्ता है। जब वह कोई बात बोलते हैं तो वह ऐसे ही नहीं बोलते। हालांकि नुकसान के डर से कांग्रेस पार्टी ने उनके बयान से अपने को अलग कर लिया है। उनके बयान पर कहा कि उनका निजी मत है, लेकिन एक तरह से उसका एंडोर्समेंट भी किया है कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है।
सैम पित्रोदा ने कहा अमेरिका में एक इन्हेरिटेंस टैक्स है यानी विरासत पर कर लगता है। मान लीजिए आपने अपने जीवन में अपनी मेहनत से, उद्यम से एक करोड़ रुपए, 50 करोड़ या 10 करोड़ रुपए जमा किए। अगर आपने एक करोड़ रुपए की संपत्ति अर्जित की है तो आपकी मृत्यु के बाद आप इसमें से सिर्फ 45 लाख अपने बच्चों या अपने परिवार को दे सकते हैं। बाकी 55 लाख पर सरकार कब्जा कर लेगी और उसका बंटवारा करेगी।
यह वही बात है जिसे कांग्रेस के मेनिफेस्टो में कहा गया है। जिसके बारे में राहुल गांधी ने कहा कि क्रांतिकारी कदम उठाएंगे। फाइनेंशियल सर्वे, इंस्टीट्यूशनल सर्वे करेंगे। इतने दिन से इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है अभी तक राहुल गाँधी और कांग्रेस पार्टी ने यह स्पष्ट नहीं किया किया है कि इस सर्वे का उद्देश्य क्या होगा। इस सर्वे से जो डाटा, आंकड़े आएंगे उसके बाद करेंगे? क्या असल में कांग्रेस पार्टी करना तो वही चाहती है जो सैम पित्रोदा बोल रहे हैं लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही है क्योंकि पलटवार किया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की नीति आपके जीवन में भी और आपके जीवन के बाद भी आपकी संपत्ति लूटने की है। उन्होंने कहा है कांग्रेस पार्टी की नजर आपकी संपत्ति, आपके घर पर है। उन्होंने उसको और आगे बढ़ाया और कहा महिलाओं के मंगल सूत्र पर है, घर का जो सोना है जो स्त्री धन है उस पर कांग्रेस पार्टी की नजर है।
अब आप बीजेपी, कांग्रेस दोनों पार्टियों का फर्क देखिए। दोनों पार्टियों के नेताओं के कम्युनिकेशन का फर्क देखिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कुछ बोल रहे हैं वह सीधे जनता के दिल में उतरने वाली बात है। सीधे कम्युनिकेट होती है। आपको समझने के लिए किसी आर्थिक विशेषज्ञ, किसी पॉलिटिकल एनालिस्ट या पॉलिटिकल एक्सपर्ट की जरूरत नहीं होती है। वह आपको सीधे साफ-साफ समझ में आती है कि दरअसल कांग्रेस की नीति क्या है, वह करना क्या चाहती है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी शब्दों के जाल में लोगों को भरमाने की कोशिश कर रही है। स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कह रही है। वो जो करना चाहती है उसको करने या उसको बताने की भी कांग्रेस पार्टी की हिम्मत नहीं है। कांग्रेस पार्टी की यह सोच साम्यवादी, कम्युनिस्ट सोच है कि संपत्ति का समान बंटवारा होना चाहिए। आज तक दुनिया के इतिहास में किसी लोकतांत्रिक देश में यह नहीं हुआ।
कांग्रेस पार्टी की सोच को समझिए। और, देश जिस दिशा में जा रहा है उसको समझिए। दोनों के अंतर को समझिए। तो आपको बात और स्पष्ट हो जाएगी। 1991 में जब पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री और मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे आर्थिक उदारीकरण की नीति देश ने अपनाई। उसके बाद उदारीकरण का दौर चला जिसको अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने काफी आगे बढ़ाया। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने उसको एक नया स्वरूप दिया और देश में इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास हुआ। पब्लिक और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा मिला। देश की अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व तेजी से तरक्की कर रही है, आगे बढ़ रही है, फ्रेजाइल फाइव से स्ट्रांगेस्ट फाइव में आ गई है। देश की अर्थव्यवस्था 2014 में 10वें नंबर पर थी जो अब पांचवें नंबर पर आ गई है। यह फर्क पड़ा है।
राहुल गांधी 2019, बल्कि उससे पहले से उद्योगपतियों को गाली देते हैं। वह दरअसल वेल्थ क्रिएटर्स के खिलाफ बोल रहे हैं। वेल्थ क्रिएटर्स का काम क्या होता है? वेल्थ क्रिएटर्स जब अपने लिए संपत्ति अर्जित करते हैं तो संपत्ति यूं ही नहीं अर्जित होती। उसके लिए पहले इन्वेस्टमेंट करना पड़ता है। प्रोडक्शन मैन्युफैक्चरिंग या फिर कोई और इकोनॉमिक एक्टिविटी चाहे वो सर्विसेस की हो या दूसरे क्षेत्र की हो- वह करना पड़ता है। उससे जॉब क्रिएशन होता है। लोगों को नौकरी मिलती है। फैक्ट्री लगेगी, सड़क बनेगी, पुल बनेगा, बंदरगाह बनेगा, रेलवे लाइन बनेगी, कारखाने-फैक्ट्रियां लगेंगी, प्रोडक्शन बढ़ेगा, फिर मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी… तो देश के लिए विदेश की मुद्रा का अर्जन होगा। देश की तरक्की होगी, लोगों को काम मिलेगा, देश में लोगों की प्रतिव्यक्ति आय में इजाफा होगा- जो कि हो रहा है। राहुल गांधी की नीति इन सब चीजों को उल्टी दिशा में ले जाने की है। वह एक तरह से डिस इंसेंटिवाइज कर रहे हैं अब वेल्थ क्रिएशन को। आप यह समझ लीजिए कि अगर आपने संपत्ति अर्जित की है तो वह आपके बच्चों के काम नहीं आने वाली है। आपकी संपत्ति को ऐसे लोगों में बांटा जाएगा जो इसके हकदार नहीं है, शायद जिसके लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया।
इस प्रकार राहुल गांधी दो तरह की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। एक- जो वेल्थ क्रिएशन करते हैं, देश की तरक्की में भागीदार बनते हैं, देश के विकास में हिस्सेदार बनते हैं- उनको हतोत्साहित करना। साथ ही ऐसे लोगों- जो कुछ नहीं करते- को प्रोत्साहित करना कि आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। दूसरे की संपत्ति छीनकर सरकार आपको दे देगी। आप मौज कीजिए। आपको कुछ काम करने की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि घुसपैठियों को यह संपत्ति दी जाएगी। जाहिर है कि घुसपैठिए कोई काम नहीं करते, कोई उद्योग नहीं चलाते, कोई व्यापार नहीं करते। वह आते हैं और इस देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर होते हैं। इस देश के विकास के मानदंड पर एक तरह का बोझ हैं। देश के विकास में बाधक हैं। उनको प्रोत्साहित करने की कांग्रेस की नीति है।
कांग्रेस पार्टी कह रही है कि हम ऐसा नहीं करना चाहते। हमने कहां कहा है अपने मेनिफेस्टो में कि हम वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन करने जा रहे हैं। ठीक बात है, लेकिन आप यह तो बताइए कि आप जो सर्वे कराने जा रहे हैं- जो एक्सरे कराने की बात राहुल गांधी जोर-जोर से अपनी सभाओं में कह रहे हैं कि इंस्टीट्यूशनल सर्वे होगा फाइनेंशियल सर्वे होगा- उस सर्वे का करेंगे क्या? उससे जो आंकड़े आएंगे उसके बाद क्या करेंगे? सारा मामला यहीं पर फंसा हुआ है जिसका जवाब राहुल गांधी के पास नहीं है। उसी को आसान शब्दों में प्रधानमंत्री समझा रहे हैं कि आपको जीवन के रहते हुए भी, और आपके जीवन के बाद भी- यह आप पर टैक्स लागना चाहते हैं। आपकी संपत्ति लेना चाहते हैं और ऐसे लोगों में बांटना चाहते हैं जो इस देश पर बोझ हैं। राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी वो गरीबों की बात नहीं कर रहे, वंचितों की बात नहीं कर रहे हैं। वो ऐसे लोगों की बात कर रहे हैं जो इस देश, समाज और अर्थव्यवस्था पर बोझ हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)