विमर्श गढ़ने की उनकी ताकत समझिए, वे झूठ को सच बना सकते हैं ।
प्रदीप सिंह।
हरियाणा के नूंह में 31 जुलाई को जो घटना हुई है और जिस तरह से हिंदू यात्रा पर हमला हुआ वह पूरी घटना न केवल चिंताजनक है, बल्कि एक चेतावनी की तरह भी है कि आने वाले समय में किस तरह की समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। यह एक ट्रेंड बन गया है। अगर यह एक घटना होती तो अपवाद के रूप में मानकर छोड़ी जा सकती थी लेकिन आप देखिए कि सीसीए के विरोध में आंदोलन शुरू होने के बाद दिल्ली का हिंदू विरोधी दंगा और उसके बाद लगातार एक के बाद एक जिस तरह से हिंदुओं के धार्मिक जुलूसों पर हमले हो रहे हैं, पूरे साल कोई भी हिंदू धार्मिक जुलूस ऐसा नहीं निकलता जिस पर हमला न हो, पथराव न हो। ऐसा नहीं है कि जुलूस के दौरान किसी ने कुछ किया और उससे लोग भड़क गए और उत्तेजना में आकर स्वतः स्फूर्त हमला हो गया, बल्कि पूर्व नियोजित हमले किए जा रहे हैं। पहले से पत्थर, खाली बोतलें, हथियार जमा करके, योजना बनाकर हमले किए जा रहे हैं। इसलिए यह कहना कि वे किसी मजहब के धार्मिक स्थल से निकल रहे थे और वहां पर उन्होंने उत्तेजक नारेबाजी की इसलिए नाराज होकर उन लोगों ने ऐसा किया, इस बात में बिल्कुल न आएं, यह सिर्फ प्रोपगेंडा है।
He’s Abhishek.
Peaceful community first sh0t him, then sIit his throat and then smash€d his head with heavy rocks.🩸
Every SLEEPING HINDU is responsible for this barbric murder.Who is Next ??
May be you !#Mewatviolence |#MewatTerrorAttack |#NuhViolence pic.twitter.com/64SlnDzVRj— 𝗚𝗼𝘂𝗿𝗮𝘃 𝗦𝗵𝗲𝗸𝗵𝗮𝘄𝗮𝘁 (@iGouravpratap) August 1, 2023
इस घटना में क्या-क्या हुआ अब तक आपको सब पता चल गया होगा। सबसे नृशंस हत्या हुई अभिषेक की जिसको पहले गोली मारी गई, फिर तलवार से गला रेता गया और फिर पत्थर से सिर कुचला गया। मगर मैं उस घटना पर नहीं जा रहा हूं कि क्या हुआ और कैसे हुआ। दो बातें कह रहा हूं कि अगर फोड़े का समय पर इलाज न हो तो वह नासूर बन जाता है। आप कहेंगे कि इसमें फोड़े और नासूर की बात कहां से आ गई। मैं आज की नहीं 1947 की बात कर रहा हूं। 1947 में पश्चिमी पंजाब यानी आज के पाकिस्तान से भाग कर आए थे ये मेवाती। उनको दिल्ली के जामा मस्जिद के पास बसाया गया था। उस समय डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सरदार पटेल जो उस समय गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री थे, को चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में उन्होंने कहा कि कल रात 500 मेवातियों का एक झुंड आया और करोलबाग की गलियों में प्रदर्शन करने लगा। सेना की टुकड़ी आई तब उसने उनको तितर-बितर किया। उन्होंने चिट्ठी में लिखा कि मैंने सुना है कि इनको पाकिस्तान भेजने की योजना है। जितनी जल्दी हो सके इनको भेजा जाना चाहिए। इनको हिंदू इलाकों से दूर जामा मस्जिद के पास रखना चाहिए क्योंकि हिंदू इलाकों में गैर-मुसलमानों को डर है कि उन पर हमला हो सकता है।
देश विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन गया है मेवात
सरदार पटेल ने उस पत्र का डॉ. राजेंद्र प्रसाद को जवाब दिया कि उन्हें पाकिस्तान भेजने की योजना है, सेना के ट्रकों का इंतजाम हो गया है। सेना के ट्रकों में भरकर इनको भेजा जाएगा लेकिन जामा मस्जिद के पास मे व मुसलमान पहले से ही भरे हुए हैं। उनकी वजह से पूरी दिल्ली में स्वास्थ्य और सफाई को लेकर खतरे का अहसास हुआ है। उनको अगर जामा मस्जिद के पास रखा गया तो यह खतरा और ज्यादा बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि और उन लोगों को यहां लाना खतरे से खाली नहीं है। उस समय मेवातियों के तीन कैंप थे और जो परिस्थिति थी उनसे देश के गृह मंत्री और भावी राष्ट्रपति कितने चिंतित थे। सेना का ट्रक तैयार खड़ा रहा लेकिन महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने मेवातियों को उस ट्रक में जाने नहीं दिया जिसका नतीजा हम आज भुगत रहे हैं। उस समय नेहरू चाहते थे इनको दिल्ली में बसाया जाए लेकिन सरदार पटेल ने कहा कि उनको किसी भी हालत में यहां नहीं होना चाहिए। मेवात और नूंह का इलाका आज भारत विरोधी गतिविधियों का बहुत बड़ा केंद्र बन गया है। मेवात में मेव मुसलमानों के आने से पहले हिंदू रहते थे जिन्हें धीरे-धीरे मुसलमान बना दिया गया।
पीड़ितों को दोषी ठहराए जाने का नैरेटिव
इस पूरे हमले में इन्होंने साइबर सेल के हेड क्वार्टर पर हमला करने की कोशिश की। इससे स्थिति की गंभीरता को समझिए। पहली बात तो यह कि उस फोड़े का 1947 में इलाज नहीं किया गया, आज वह नासूर बन गया है। उसका कोई इलाज हमारे पास नहीं है, इसलिए चिंता की बात ज्यादा है और चेतावनी तो है ही। दूसरी बात जो बहुत दिनों से मैं कह रहा हूं, वह है नैरेटिव यानी विमर्श कैसे तैयार किया जाता है, और ऐसा गढ़ा जाता है जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना न हो। इसके उदाहरण आपको लगातार मिलेंगे। मैं कई मुद्दों पर इस बारे में चर्चा कर चुका हूं। नूंह और मेवात के मुद्दे के कारण इस पर फिर से चर्चा कर रहा हूं। अब देखिए कि क्या विमर्श खड़ा किया जा रहा है। विमर्श खड़ा किया जा रहा है कि दरअसल मुसलमान ही पीड़ित हैं। इस पूरे हमले में 6 लोगों की मौत हुई है जिनमें से 5 हिंदू हैं, इसके बावजूद कहा जा रहा है कि हिंदुओं ने मुसलमानों पर हमला किया। इस घटना में एक नायब इमाम मारा गया तो यह चलाया जा रहा है कि मस्जिद पर हमला हुआ, एक मुसलमान को मार दिया गया, हिंदुओं ने हमला किया। इस नैरेटिव में मुसलमानों को पीड़ित और हिंदुओं को आतातायी बना दिया गया। 24 से 48 घंटे में नैरेटिव खड़ा हो गया। जो हिंदू पीड़ित हैं उनको समझ में नहीं आ रहा है कि कहां जाएं, क्या करें क्योंकि उसी को दोषी बताया जा रहा है।
महीनों से हो रही थी हमले की तैयारी
देश में मीडिया का एक बड़ा तबका जो लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है और यह झूठी खबरें भी फैलाने की कोशिश हो रही है कि बहुत से मुसलमानों ने हिंदुओं के बचाया। अगर 3-4 हजार लोगों ने मंदिर में शरण नहीं ली होती तो शायद पता नहीं इनमें से कितने बचते। मंदिर पर आसपास की दो पहाड़ियों से हमला हो रहा था, पत्थर और खाली बोतलें फेंकी जा रही थी, फायरिंग हो रही थी और कहा जा रहा है कि हमला हिंदुओं ने किया। इससे आप अंदाजा लगाइए कि नैरेटिव बनाने वाले कितने शक्तिशाली हैं। वह झूठ को सच और सच को झूठ बना सकते हैं और आप कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यह बार-बार होता है और हर बार हम मात खाते हैं। नैरेटिव बनाने वालों का इकोसिस्टम इतना मजबूत है, आपस की समझदारी और तालमेल इतना ज्यादा है कि वह झूठ को सच बनाने की ताकत रखते हैं और बना रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इस हमले की तैयारी कई महीने पहले से हो रही थी। अचानक कोई घटना होती है तो अपनी मोटरसाइकिल की नंबर प्लेट काली करके कोई नहीं चलता है। सैकड़ों वाहन जला दिए गए, हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति को नष्ट कर दिया गया और पीड़ित कौन हैं मुसलमान हैं, हमला मुसलमानों पर हुआ।
समस्या को टाला और पाला-पोसा तो यही नतीजा होगा
असुरक्षित और डरा हुआ मुसलमान इतना डरा हुआ है कि उस डर के कारण हिंदुओं को मंदिर में जान बचाने के लिए शरण लेनी पड़ी। वहां से केंद्र सरकार से गुहार लगानी पड़ी कि पैराट्रूपर्स भेजिए, हेलीकॉप्टर से फोर्स को उतारिए नहीं तो हमारी जान नहीं बचेगी। इसके बावजूद नैरेटिव क्या बन रहा है। मैं दोनों बातें आपको याद दिला रहा हूं कि अगर समस्या को टाला, अगर समस्या को पाला और पोसा तो उसका नतीजा यही होगा। दूसरी बात, आपके खिलाफ नैरेटिव न बने इसके लिए आपको एक तंत्र तैयार करना पड़ेगा जो कम से कम सच को तो सच साबित कर सके। यहां तो झूठ को सच साबित कर दिया जा रहा है और सच कोने में दुबक कर खड़ा है। यह बड़ी खतरनाक स्थिति है। 2024 के चुनाव तक और उसके बाद यह स्थिति और खराब होने वाली है। इस स्थिति में कोई सुधार नहीं होने वाला है। यह नैरेटिव दुनियाभर में चलाने की कोशिश होगी और जो बार-बार कहा जाता है कि भारत में मुसलमान असुरक्षित है। मैं कहता हूं कि असुरक्षित मुसलमान, डरा हुआ मुसलमान सर तन से जुदा का नारा देता है और सर कलम कर देता है, वह दंगा करवाता है, वह पीएफआई जैसा संगठन बनाता और चलाता है लेकिन वह डरा हुआ है।
खट्टर सरकार नाकारा साबित हुई
दुनिया में जितने भी हिंदू विरोधी लोग हैं इसको और हवा देते हैं। इसके लिए तो वह तैयार बैठे हैं कि जैसे ही ऐसी कोई घटना हो सबसे पहले हिंदुओं को दोषी ठहराओ। अपने देश में ऐसा करने वालों की जमात एक जरा भी कम नहीं हुई है। वे बड़ी चालाकी से, बड़ी मुस्तैदी से, बड़ी ताकत से इस तरह का नैरेटिव बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं और सफल हो रहे हैं। इस तरह का नैरेटिव बना रहे हैं कि जो मार खाया, जो मारा गया, जिसकी संपत्ति का नुकसान हुआ उसको डिफेंसिव बनाया जा रहा है कि वह जवाब दे कि ऐसा क्यों हुआ। इन सबमें हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है, बिल्कुल नाकारा सरकार है। हर साल निकलने वाली इस यात्रा को राज्य सरकार सुरक्षा नहीं दे सकती, सुरक्षा के इंतजाम नहीं कर सकती। हम-आप जो वहां से दूर हैं उन्हें पता है कि वहां किस तरह का आक्रमण हो सकता है, सिर्फ हरियाणा सरकार और हरियाणा पुलिस को नहीं पता था। इससे बड़ी लापरवाही और क्या होगी कि यात्रा से पहले वहां के एसपी को छुट्टी पर भेज दिया जाता है। पुलिस-प्रशासन का अहम रोल होता है। उनका 90 फीसदी काम अनुमानों पर ही आधारित है कि जो घटना होने वाली है उसके बारे में आप कितना सही अनुमान लगा पाते हैं और अनुमान के आधार पर कितनी तैयारी कर पाते हैं। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार इसमें पूरी तरह से फेल हुई है। इस नैरेटिव के खेल को समझ गए हैं तो इसके जाल को तोड़ने की कोशिश कीजिए। बिना उसके इसी तरह से होता रहेगा कि मार भी खाएंगे और दोषी भी ठहराए जाएंगे।
बंगाल में दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जाता है वह नैरेटिव नहीं बनता, मणिपुर से एक वीडियो आता है और वह पूरे देश और विदेश में नैरेटिव बन जाता है। पश्चिम बंगाल में 2021 से, खासतौर से चुनाव नतीजे आने के बाद से जितने बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है वह नेशनल नैरेटिव नहीं बना। क्यों नहीं बना यह सोचने की बात है। राजस्थान में जिस तरह से महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है, रोज जिस तरह की घटनाओं के समाचार आ रहे हैं वह नेशनल नैरेटिव नहीं बनता लेकिन हाथरस की एक घटना हो तो वह बन जाता है। इस फर्क को समझिए, इस तंत्र को समझिए, इस तंत्र की ताकत को समझिए वरना इसी तरह से मार खाकर दोषी ठहराए जाते रहेंगे। जरूरत है इस नैरेटिव को बदलने की, जो सच है उसको हिम्मत और दृढ़ता के साथ सामने लाने की, बिना उसके कुछ नहीं होने वाला है।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं।