आपका अखबार ब्यूरो ।
देश में कोरोना संक्रमण की स्थिति संकटपूर्ण बनी हुई है। लेकिन इस बीच कुछ सकारात्मक संकेत भी सामने आए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा अपडेट के अनुसार देश में कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की दर में उल्लेखनीय सुधार आया है।
दो मई को कोरोना से ठीक होने की दर यानी रिकवरी रेट 78 फ़ीसदी था, जो 3 मई को बढ़कर 82 फ़ीसदी हो गया। स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि ये शुरुआती उपलब्धियां हैं, जिन्हें हम पॉजिटिव साइन के रूप में देख रहे हैं। हमें इन पर लगातार काम करते रहना है।
नए मामले कहीं घटे कहीं बढ़े
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना वायरस संक्रमण के चलते देश की कुल संचयी मृत्यु दर लगभग 1.10 फ़ीसदी है। कुछ राज्यों में रोजाना मिलने वाले कोरोना के नए मामलों में कमी आने के भी संकेत मिले हैं। इन राज्यों में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं। वही आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, चंडीगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और मेघालय आदि राज्यों में कोविड के मामलों में वृद्धि देखने को मिल रही है। मंत्रालय ने इन राज्यों में जरूरी मानक अपनाए जाने और तत्परता से काम किए जाने की बात कही है।
हल्के लक्षणों में सीटी स्कैन कराना ठीक नहीं
कई बार देखने में आया है कि कोरोना के हल्के फुल्के लक्षण होने पर भी लोग सीटी स्कैन कराने के लिए भाग दौड़ करने लगते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि सीटी स्कैन और बायोमार्क्स का दुरुपयोग किया जा रहा है जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। उन्होंने कहा कि अगर आपमें कोरोना संक्रमण के हल्के लक्षण हैं तो ऐसे में सीटी स्कैन कराने का आपको कोई लाभ नहीं होगा, उल्टा नुकसान हो सकता है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि एक सीटी स्कैन लगभग 300 चेस्ट एक्सरे के बराबर होता है। इससे आप जान सकते हैं कि बेवजह सीटी स्कैन कराने का स्वास्थ्य पर कितना दुष्प्रभाव पड़ सकता है।
घर पर इलाज
उन्होंने कहा कि जो कोविड पेशेंट होम आइसोलेशन में हैं उन्हें निरंतर अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए और यहां वहां से आ रही अनर्गल अफवाहों से बचना चाहिए। उनका परामर्श है कि अगर रोगी का ऑक्सीजन सैचुरेशन 93 या उससे कम हो रहा हो, उसकी बेहोशी जैसी स्थिति हो, छाती में दर्द महसूस कर रहे हों- तो उन्हें तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्र कर सकेंगे कोरोना मरीजों की सेवा
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा है कि एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्रों को वरिष्ठ डॉक्टरों की देखरेख में कोरोना के कम गंभीर मामलों की निगरानी और टेलीकंसल्टेशन के काम में लगाया जा सकता है। पीएमओ ने कहा कि मेडिकल इंटर्न को उनकी फैकल्टी की देखरेख में कोरोना प्रबंधन संबंधी कार्यों में तैनात किया जाएगा। और जिन चिकित्सा अधिकारियों ने 100 दिन की कोविड ड्यूटी पूरी की होगी उनको आगामी सामान्य सरकारी भर्तियों में वरीयता दी जाएगी। इसके साथ ही 100 दिन की कोविड ड्यूटी पूरी करने वाले चिकित्सा अधिकारियों को प्रधानमंत्री के विशिष्ट कोविड राष्ट्रीय सेवा सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। पीएमओ के अनुसार बीएससी/जीएनएम पास नर्सों को वरिष्ठ डाक्टरों और नर्सों की देखरेख में फुल टाइम कोविड नर्सिंग ड्यूटी में तैनात किया जा सकता है।
ऑक्सीजन की कमी से 24 की जान गई
देशभर में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े हैं और उसी के साथ ऑक्सीजन की कमी भी कई मरीजों की जान जाने का कारण बनी है। आंध्र प्रदेश के बेंगलुरु से 175 किलोमीटर दूर चमराजनगर के एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण कम से कम 24 कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्यु हो गई। अभी तक मिली खबरों में बताया गया कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी थी और पड़ोस के मैसूर जिले से आने वाली ऑक्सीजन भी समय पर नहीं पहुंची। ऑक्सीजन पहुंचने में देर होने की वजह से यह हादसा हो गया। हालांकि हादसा होने के कुछ देर बाद ही अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति कर दी गई।
यूपी में दो दिन बढ़ा लॉकडाउन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए लॉकडाउन को दो दिन और बढ़ा दिया है। शुक्रवार 30 अप्रैल को रात 8 बजे से मंगलवार 4 मई को सुबह 7 बजे तक लागू लॉकडाउन को दो दिन और बढ़ा कर बृहस्पतिवार 6 मई को सुबह 7 बजे तक कर दिया गया है।
टेस्टिंग बढ़ी संक्रमित घटे
उत्तर प्रदेश में देश में सबसे ज्यादा टेस्टिंग हो रही है। इसके बावजूद कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में रिकॉर्ड कमी आई है। 24 अप्रैल को एक लाख 86 हजार लोगों का कोरोना परीक्षण किया गया था और 38 हजार लोग कोरोना संक्रमित मिले थे। उसके दस दिन बाद दो लाख 97 हजार लोगों का कोरोना टेस्ट किया गया जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इसमें 30 हजार कोरोना संक्रमित मरीज मिले यानी कोविड टेस्टिंग के अनुपात में संक्रमण की दर जो पहले 22 फ़ीसदी थी वह 10 दिन बाद घटकर आधे से भी कम यानी 10 फ़ीसदी पर पहुंच गई।