बाग- बगीचों के फूलों पर डेढ़ सौ प्रजातियों की तितलियां बिखेर रहीं अपना रंग।

महाराष्ट्र के पुणे क्षेत्र की आबोहवा ने प्रकृति में विचरण करने वाली डेढ़ सौ से अधिक प्रजातियों की तितलियों को आकर्षित कर रखा है। इनमें कई प्रजातियां ऐसी भी हैं जो घने जंगलों में ही पाई जाती हैं। इन्हें अब यहां के बाग-बगीचों में खिलने वाले फूलों पर आसानी से देखा जा सकता है। पर्यावरण प्रेमियों के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है।पर्यावरणविद प्रोफेसर जयंत देशपांडे ने तो बाकायदा अपने घर की छत पर तितलियों के लिए बड़ा बगीचा तक बना रखा है और इनके जरिए वे शोध भी कर रहे हैं। नगर निगम की जानकारी के अनुसार शहर के विभिन्न भागों में तितलियों की 150 से अधिक प्रजातियां पाई गई हैं, जो यहां खिलने वाले फूलों पर अपना रंग बिखेर रही हैं। इनका फोटोग्राफिक रिकॉर्ड भी संजोया गया है।

प्रोफेसर देशपांडे के अनुसार जंगलों में पाई जाने वाली तितली प्रजाति कॉमन मैप पिछले साल शहर में कई इलाकों में देखने को मिली थी, जिसका फोटोग्राफिक रिकॉर्ड भी मौजूद है। तितलियां बहुत अच्छी संकेतक प्रजाति हैं क्योंकि ये वनस्पति पर निर्भर होती हैं। हर एक तितली प्रजाति विशिष्ट लार्वा होस्ट प्लांट्स पर निर्भर है। सबसे खास बात है कि एक तितली कैटरपिलर भूखा रह लेगा, यहां तक की मर जाएगा, लेकिन अन्य पौधों की प्रजातियों को कभी नहीं खाएगा।

प्रोफेसर देशपांडे ने बताया जब तितली एडल्ट हो जाती है तो वो एक बहुत अच्छी वनस्पति विज्ञानी मानी जाती है। एडल्ट तितली हमेशा लार्वा होस्ट प्लांट्स पर ही अंडे देती है। अगर उसपर भी नहीं तो पौधे के आसपास ही अंडा देती है। वे कहते हैं तितलियों की अच्छी विविधता, आसपास की वनस्पतियों में बहुत अच्छी विविधता का संकेत देती है। (एएमएपी)