रमेश शर्मा।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह भारत यात्रा ब्रिटेन से लेकर अमेरिका और पाकिस्तान से लेकर सऊदी अरब तक के मीडिया की सुर्खियों में रही। अमेरिका और चीन ने सबसे टेड़ी नजर से देखा। ऐसी ही तिरछी नजर भारतीय विपक्ष और उसमें भी विशेषकर कांग्रेस की देखी गई। पुतिन की इस यात्रा पर विपक्ष ने कुछ प्रश्न उठाये और मीडिया से साँझा भी किये। लेकिन राष्ट्रपति भवन में पुतिन के सम्मान में दिये गये भोज को विपक्ष ने मुद्दा बनाया और श्री राहुल गाँधी और श्री मल्लिकार्जुन खड़गे को निमंत्रण न देने को लोकतांत्रिक परंपराओं का हनन बताया।

काँग्रेस का कहना है कि राहुलगाँधी लोकसभा में और मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। इसलिये प्रोटोकॉल के नाते इन दोनों की भेंट रूस के राष्ट्रपति के साथ सुनिश्चित की जानी चाहिए थी और भोज का आमंत्रण दिया जाना चाहिए था। हालाँकि सत्ता पक्ष ने भले राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को आमंत्रित नहीं किया लेकिन उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को आमंत्रण भेजा गया था। वे भोज में शामिल भी हुए। लेकिन काँग्रेस इससे संतुष्ट नहीं थी। उसका जोर राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे पर ही बना रहा। काँग्रेस ने लोकतंत्र हनन होने और सरकार पर तानाशाह होने का आरोप दोहराया। हालाँकि राष्ट्रपति भवन की ओर से स्पष्ट किया गया है कि यह राष्ट्रपति का अधिकार है कि वे किसे बुलाते हैं और किसे नहीं। दूसरी ओर सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया कि विदेशी राष्ट्रपति से भेंट का निर्णय भारत सरकार ने नहीं लिया था, यह तो उन देशों का “प्रोटोकॉल” करता है। यह अतिथि की इच्छा पर निर्भर करता है कि वे किससे भेंट करें और किस से नहीं।
राष्ट्रपति भवन और भारत सरकार का स्पष्टीकरण अपनी जगह हैं। लेकिन राजनैतिक गलियारों में राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को न बुलाये जाने के तीन कारण माने जा रहे हैं। इनमें सबसे पहला श्री राहुल गाँधी द्वारा अपनी विदेश यात्राओं में भारत सरकार की आलोचना को माना जा रहा है। इसी वर्ष राहुल गाँधी दो बार अमेरिका गये। उन्होंने अपनी दोनों यात्राओं में लगभग वे सभी आरोप दोहराये जो वे देश के भीतर दोहराते हैं। वे कहते हैं कि लोकतांत्रिक मूल्य समाप्त हो गये, संविधान खतरे में है तथा अर्थव्यवस्था गिर रही है। इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि भोज के दौरान भी राहुल गाँधी ऐसा कुछ बोल सकते थे। इससे वातावरण प्रभावित होता। दूसरा कारण उनकी ऐसे अमेरिकी नेताओं से तथाकथित बढ़ती निकटता मानी जा रही है, जो रूस के विरुद्ध हैं। ऐसा माना जाता है कि राहुल गाँधी के “अंकल” सैम पित्रोदा और जार्ज सोरेस के बीच निकटता है। चूँकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह भारत यात्रा अमेरिका और चीन की रणनीति में सेंध लगाने वाली थी। हो सकता है इसलिए भी भारत सरकार ने सावधानी बरती हो। और तीसरा कारण महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में राहुल गाँधी का अनुपस्थित रहना भी माना जा रहा है। इनमें गणतंत्र दिवस समारोह और सीजेआई शपथ ग्रहण समारोह जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। विदेशी अतिथि के आगमन पर आमंत्रितों का स्थान सुनिश्चित रहता है। उसपर नेम प्लेट लगती है। यदि कोई अनुपस्थित रहता है तो वह चेयर खाली रहती है। राहुल गाँधी अनुपस्थित रहते तो यह गरिमा के अनुकूल नहीं होता।

अब कारण कुछ भी हो, सत्य चाहे जो हो लेकिन भारत सरकार ने पूरी रणनीति से काम लिया। शशि थरूर को आमंत्रित करके प्रमुख प्रतिपक्षी दल का प्रतिनिधित्व भी हो गया और बिना किसी आशंका के समझौते भी हो गये। इस भोज में शशि थरूर ने जो भी चर्चा की वह भारत की विदेश नीति के अनुरूप थी। शशि थरूर वही राजनेता हैं जिन्हें भारत सरकार ने पुलवामा आतंकी घटना और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल में विदेश भेजा था। विदेश जाकर शशि थरूर ने वही सब कहा जो भारत सरकार का पक्ष था। हालाँकि भारत के भीतर राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का कथन बहुत अलग था। लेकिन शशि थरूर ने विदेश जाकर पार्टी लाइन के बजाय सरकार की लाइन के अनुरूप बात कही।
वस्तुतः इन दिनों भारतीय राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच एक नये तनाव का स्वरूप उभर रहा है। हरेक विन्दु पर सरकार की आक्रामक आलोचना करना और मीडिया में प्रमुख स्थान बनाना विपक्ष का पहला प्रयास होता है। विपक्ष छोटे से छोटे बिंदु को भी इतनी आक्रामकता से प्रस्तुत करते हैं कि वह मीडिया में सुर्खी बने। उसी की झलक पुतिन की इस यात्रा में रही। विपक्ष ने पुतिन की यात्रा में हुए समझौतों का विश्लेषण करके कोई बात नहीं की। केवल भोजन के आमंत्रण को मुद्दा बनाकर मीडिया में स्थान बनाया और वे चर्चा में बने रहे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



