‘महात्मा गांधी की दृष्टि, राधाकृष्ण का उद्यम, जीवन, विचार व कार्य’ पुस्तक का लोकार्पण।

आपका अख़बार ब्यूरो।
गांधीवादी और गांधी के अनुयायी श्री के. एस. राधाकृष्ण ने आजादी के बाद सर्वोदय और ग्रामस्वराज्य आंदोलनों को गति प्रदान की। उन्होंने गांधीवादी रचनात्मक कार्यकर्ताओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार की। गांधी के रास्ते पर चलने वाले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ताओं का स्मरण स्वयं को समृद्ध करने जैसा है। इस आशय के वक्तव्य नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के समवेत सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण और परिचर्चा में व्यक्त किये गये।

पुस्तक ‘महात्मा गांधी की दृष्टि, राधाकृष्ण का उद्यम, जीवन, विचार व कार्य’ की लेखक गांधीयन फोरम की मुख्य कार्यकारी और श्री राधाकृष्ण की पुत्री डॉ. शोभना नारायण हैं। इसका प्रकाशन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने किया है। प्रारम्भ में इंदिरा गांधी कला केंद्र और इस आयोजन के अध्यक्ष पद्मश्री रामबहादुर राय के साथ हरिजन सेवक संघ के उपाध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीदास, केयर इंडिया के अध्यक्ष श्री मैथ्यू चेरियन, मध्य प्रदेश फाउंडेशन के जनरल सेक्रेटरी डॉ. हरीश भल्ला, कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानन्द जोशी, कला केंद्र में कला कोश विभाग के अध्यक्ष और आयोजन के संचालक प्रोफेसर सुधीर लाल ने पुस्तक का लोकार्पण किया।

अध्यक्ष पद से श्री रामबहादुर राय ने याद किया कि यह राधाकृष्ण के साथ अटल बिहारी वाजपेयी का भी शताब्दी वर्ष है। दोनों ने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में आदर्श प्रस्तुत किए और भारत के नवनिर्माण में योगदान किया। श्री राधाकृष्ण के आसपास चारों ओर आदर्शजीवी लोग थे जिनकी उन्होंने भरपूर मदद भी की। आपातकाल के बाद कुदाल आयोग की कार्यवाही का उल्लेख करते हुए श्री राय ने कहा कि कुदाल आयोग प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्देश पर राधाकृष्ण सहित कई लोगों को सीआइए का एजेंट साबित करने पर तुला था। उस दौरान भी वे चारों ओर से निश्चिंत अपने ध्येय के लिए शांत भाव से लगे हुए थे। ऐसे में यह सीखना चाहिए कि वे किस तरह पूरी सत्ता को चुनौती दे रहे थे।

श्री राय ने राधाकृष्ण को कांग्रेस नेता कामराज की तरह बताया। कहा कि जैसे के. कामराज ने लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाया, उसी तरह राधाकृष्ण ने मोरारजी देसाई को इस पद पर बैठाने में मदद की। तब जगजीवन राम को आपातकाल का प्रस्ताव लाने के कारण खारिज कर दिया गया और चौधरी चरण सिंह को अपने स्वभाव के कारण इस योग्य नहीं समझा गया। श्री राधाकृष्ण बीएचयू से इंडस्ट्रियल केमेस्ट्री में एमएससी थे। चाहते तो किसी बड़े उद्योगपति के साथ रहकर काम कर सकते थे लेकिन उन्होंने सीधे सेवाग्राम का रास्ता पकड़ा।

प्रारम्भ में कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने पुस्तक प्रकाशित होने की पृष्ठभूमि बतायी। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक राधाकृष्ण जी के शताब्दी वर्ष मे आयी है, इसका हमे संतोष हो रहा है। पुस्तक की लेखिका डॉ. शोभना राधाकृष्ण अपने पिता केएस राधाकृष्ण पर पुस्तक के संदर्भ सुनाते हुए कई बार भावुक हो उठीं। गांधी शांति प्रतिष्ठान में रहते हुए वहां संपूर्ण क्रांति के प्रणेता जयप्रकाश नारायण का राधाकृष्ण जी के साथ रहने से लेकर आपातकाल के दौरान हुए कष्टों को याद किया। उसके पहले गांधी के शताब्दी वर्ष में सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान जब भारत आए, उन्होंने सरकारी आतिथ्य की जगह गांधी शांति प्रतिष्ठान में ही रहना स्वीकार किया था। शोभना राधाकृष्ण ने बताया कि श्री राधाकृष्ण आपातकाल के दौरान साल भर तक अंडरग्राउंड रहकर काम करते रहे। फिर गिरफ्तार हुए। बहुत सी किताबों में इस तथ्य का उल्लेख नहीं होने पर उन्होंने अफसोस जताया। मूलतः राधाकृष्ण एक स्वाधीनता सेनानी और उसके बाद देश निर्माताओं में शामिल थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी उन्हें जेल जाना पड़ा था।

डॉ. लक्ष्मीदास ने याद किया कि जब वे नये नये सर्वोदय आंदोलन मे आये थे, अति क्रांतिकारी थे। उन्हें लगता था कि इतने आराम का जीवन बिताने वाला व्यक्ति गांधीवादी कैसे हो सकता था। उन्होंने वह रोचक संस्मरण भी सुनाया, जब राधाकृष्ण को गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव पद से हटाने की योजना बनी। फिर जब इस पर विचार हुआ कि उनकी जगह बैठाया किसे जाय, तब कोई नहीं मिला और राधाकृष्ण के विकल्प की कमी महसूस की गयी। गांधी विचार में इस तरह के लोगों की जरूरत थी, जिन्होंने ग्रामीण भारत के लिए बांध, सिंचाई आदि की कई योजनाओं को विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं के जरिए पूरा कराया।

डॉ. हरीश भल्ला ने 1973 में इंदौर से आकर राधाकृष्ण के साथ जुड़ने को याद किया। बताया कि तब उनके नेतृत्व में गांधीवादी संस्थाओं में खुले ढंग से विचार हुआ करता था। राधाकृष्ण महात्मा गांधी से प्रेरित थे और वे स्वयं कई गांधीवादियों और सर्वोदयी कार्यकर्ताओं के प्रेरक बने। उन्होंने विविध गांधीवादी जर्नल्स के सम्पादन प्रकाशन में सहयोग किया। गांधी के बाद का समाज कैसा हो, इस पर कार्य योजना बनाने में शामिल रहे।

श्री मैथ्यू चेरियन ने गांधी की हत्या के बाद सेवाग्राम की बैठक का जिक्र किया, जिसमे गांधी के बाद के भारत के भविष्य पर विचार हुआ। विनोबा भावे, पंडित नेहरू आदि के साथ जो लोग उस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल हुए, उनमें राधाकृष्ण भी थे। अंत में प्रो. सुधीर लाल ने आशा जताई कि भविष्य में कला केंद्र इस परिचर्चा को आगे बढाएगा।