apka akhbar-ajayvidyutअजय विद्युत।

अहंकार का नाश, धैर्य की विजय, ज्ञान की जीत, सही उद्देश्य की जीत- हर दशहरा हर साल यही संदेश देता है। आज कुछ और बात करते हैं।


 

आजकल मैनेजमेंट कोर्सों में बताया जाता है कि हर समस्या के समाधान के लिए बेहतर प्रबंधन आजमाना चाहिए। भगवान श्रीराम ने यह व्यावहारिक रूप से करके दिखाया था। बाकी गुणों के अलावा उनमें प्रबंधन का विलक्षण कौशल था। वह किसी भी कंपनी के बेहतरीन सीईओ हो सकते थे बल्कि दुनिया के सबसे कुशल सीईओ होते।

हम सब जानते हैं कि रावण द्वारा लंका से निष्कासित विभीषण प्रभु श्रीराम के पास आते हैं तो प्रभु उन्हें सम्मानपूर्वक अपनी शरण में ले लेते हैं। भावविभोर विभीषण कहते हैं, ‘अब तो हे कृपालु, शिवजी के मन को सदैव प्रिय लगने वाली अपनी भक्ति मुझे दीजिए।’ गोस्वामी तुलसीदास वर्णन करते हैं-

Kishkindha After Ramayana ~ Time2Story

एवमस्तु (ऐसा ही हो) कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा।।

फिर श्रीराम कहते हैं कि हालांकि तुम्हारे मन में कोई इच्छा नहीं है पर जगत में मेरा दर्शन अमोघ है। वह निष्फल नहीं जाता। ऐसा कहकर श्रीराम ने उनका राजतिलक कर दिया।

जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मार दरसु अमोघ जग माहीं।।

अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन वृष्टि नभ भई अपारा।।

‘रावण अब भी मान गया तो क्या करेंगे?’

ram-ravan-28-06-2019 - HinduBulletin

स्थिति यह है कि रावण द्वारा निकाले जाने पर विभीषण भगवान राम की शरण में आए हैं और श्रीराम ने उन्हें लंका का राजा घोषित कर दिया है।

सुग्रीव यह देखते हैं, विचार करते हैं और बाद में राम से कहते हैं कि ‘प्रभु मन में एक प्रश्न उठा है। आपने विभीषण को लंका का राजा घोषित करने में कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर दी। अभी तो रावण वहां का राजा है और युद्ध भी शुरू नहीं हुआ है। मान लीजिए कि रावण आपकी शरण में आ जाए तो…!’ बहुत विनम्रता से सुग्रीव कहते हैं, ‘शरणागत को अपनाना आपकी रीति है और विभीषण को दिया वचन भी भंग नहीं कर सकते। तब रावण को क्या देंगे?’

कामयाब सीईओ या प्रमुख रणनीतिकार की सभी विशेषताएं- लक्ष्य, उसे पाने का ढंग यानी मूल्य और रणनीति, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, उपलब्धता, पारदर्शिता, एक ही समय में एक विकल्प आजमाना और तुरंत स्थिति बदले तो दूसरे विकल्प खुले रखना- ये सभी भगवान श्रीराम में थीं। अचानक स्थिति बदलने पर उनका प्लान बी भी तैयार रहता था। दुश्वार से दुश्वार परिस्थिति में भी उनके कई निर्णय एकाएक लिए गए लगते हैं, लेकिन ऐसा था नहीं। जब वे एक विकल्प चुनते थे और दूसरे भी विकल्प खुले रखते थे।

‘भागवत् रहस्य’ ग्रंथ में नवें स्कन्ध में रामचंद्र केशव डोगरे जी ने इसका सुंदर उल्लेख किया है। तब प्रभु राम ने कहा कि ‘ऐसा नहीं कि मैंने सोच-विचार किए बिना ऐसा किया। अगर अब भी रावण मेरी शरण में आता है तो मैं उसे अयोध्या का राज्य दे दूंगा और हम चारों भाई वनवास करेंगे।’

विचारों और कार्य में उच्चतम स्तर की स्पष्टता और दूरदृष्टि का ही नतीजा है कि किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेते समय प्रभु श्रीराम असमंजस में नहीं दीखते।


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