श्री श्री रविशंकर।

रामायण में रावण की चर्चा न करें, तो पूरी कथा ही अधूरी है। रावण अहंकार का प्रतीक है। रावण के दस मुख होने का मतलब है कि अहंकार का केवल एक चेहरा नहीं होता है, बल्कि दस चेहरे होते हैं। (यहां अहंकार के पहलुओं या कारणों के बारे में बताया गया है) ये भी बताया गया है वह व्यक्ति, जो अहंकारी है, स्वयं को दूसरों से अच्छा या स्वयं को दूसरों से अलग मानता है। इससे व्यक्ति असंवेदनशील और कठोर हो जाता है।


असंवेदनशील व्यक्ति समाज के लिए खतरा

जब एक व्यक्ति संवेदनशीलता को खो देता है, तब सम्पूर्ण समाज इसके दुष्प्रभावों से पीडि़त हो जाता है। भगवान राम आत्मज्ञान का प्रतीक हैं, वह आत्मा का प्रतीक हैं। जब एक व्यक्ति में आत्मज्ञान (भगवान राम) का उदय होता है, तब भीतर का रावण (अर्थात अहंकार और सभी नकारात्मकताएं ) पूर्ण रूप से नष्ट हो जाती हैं।

Gurudev Sri Sri Ravi Shankar on Twitter: "Meditation gives deep rest in the shortest time. It helps overcome depression and keeps a check on aggression that comes up due to stress or

राग द्वेष पर विजय

रावण को केवल आत्मज्ञान के द्वारा ही नष्ट किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि केवल आत्मज्ञान के द्वारा ही सभी प्रकार की नकारात्मकताओं और मन के विरूपण पर विजय प्राप्त की जा सकती है। आत्मज्ञान को कैसे प्राप्त करें? कोई व्यक्ति विश्राम के द्वारा अपने भीतर आत्मज्ञान को जगा सकता है। विश्राम गहरा विश्राम और मन को शांत करना है। हमारे भीतर हर समय रामायण घटित हो रही है। विजय दशमी का अर्थ है, वह दिन, जब सभी नकारात्मक प्रवृत्तियां (जिनका प्रतीक रावण है) समाप्त हो जाती हैं। यह दिन, मन में उठे सभी प्रकार के राग और द्वेषों पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है।

नवरात्रि के अंत पर विजयदशमी का उत्सव

dussehra 2019, ram ravan yudh, ramayana, sunderkand, ramcharit manas, hanuman and sita, shriram and ravan | श्रीराम ने 10 बाण रावण के सिरों पर, 20 बाण हाथों पर और 1 बाण नाभि

नवरात्रि के दिनों में देवी माँ की आराधना करने से, हम तीनों गुणों सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण के मध्य तालमेल बैठाते हैं और वातावरण में सत्व को बढ़ाते हैं। जब भी जीवन में सत्व का संचार होता है, तो विजय निश्चित हो जाती है। इसीलिए दसवें दिन हम विजयादशमी- विजय दिवस मनाते हैं। यह दिव्य चेतना की पराकाष्ठा का दिन होता है। इसका मतलब है, अपने आप को सौभाग्यशाली समझना और जो भी हमें मिला है उसके प्रति कृतज्ञ भाव रखना। यह दिन जागी हुई दिव्य चेतना में परिणित होने का है। पुन: अपने आप को धन्य महसूस करें और जीवन में जो कुछ भी मिला है उसके लिए और भी कृतज्ञता महसूस करें।

(लेखक प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु और द आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक हैं)