रिजर्व बैंक को इस बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए।

प्रहलाद सबनानी।
भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार 8वीं बार रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत पर ही जारी रखा है। हालांकि, हाल ही में, जून 2024 के प्रथम सप्ताह में सम्पन्न हुई मोनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक में दो सदस्यों ने रेपो दर को 25 आधार अंको से घटाकर 6.25 प्रतिशत पर नीचे लाने की सिफारिश की थी। अभी तक मोनेटरी पॉलिसी कमेटी द्वारा लिए गए 48 निर्णयों में से 32 निर्णय सर्वसम्मत आधार पर लिए गए हैं और केवल 16 निर्णयों की स्थिति में ही कुछ सदस्यों द्वारा अपनी अलग राय रखी गई है। और, इस बार भी दो सदस्यों की राय अन्य सदस्यों की राय से कुछ भिन्न रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में मुद्रा स्फीति के सम्बंध में भी अपनी राय प्रकट की है और इसके अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 में मुद्रा स्फीति की दर 4.5 प्रतिशत पर बनी रहेगी और इस वित्तीय वर्ष की प्रथम तिमाही में मुद्रा स्फीति की दर 4.9 प्रतिशत, द्वितीय तिमाही में 3.8 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 4.6 प्रतिशत एवं चतुर्थ तिमाही में 4.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर में खाद्य पदार्थ सामग्री का विशेष योगदान रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। हालांकि, बाजार में खाद्य पदार्थ सामग्री की कीमतें यदि बढ़ती हैं तो इसे ब्याज दर बढ़ाकर अथवा घटाकर प्रभावित नहीं किया जा सकता है क्योंकि खाद्य पदार्थों की कीमतें बाजार में मांग एवं आपूर्ति के आधार पर ही निर्धारित होती हैं। जैसे, सब्जी एवं फलों की आपूर्ति यदि बाजार में कम है और मांग अधिक है तो इन वस्तुओं की कीमतें बाजार में आसमान छूती नजर आती हैं और इन वस्तुओं की बाजार में यदि आपूर्ति बढ़ जाए तो इनकी कीमतें भी कम होने लगती है। अतः ब्याज दरों में वृद्धि अथवा कमी का इन वस्तुओं की कीमतों पर प्रभाव नगण्य सा ही रहता है। कुल मिलाकर, खाद्य पदार्थों की बाजार में आपूर्ति बढ़ाकर ही इन वस्तुओं की मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। और फिर, भारत में मुद्रा स्फीति की दर भी 4.5 प्रतिशत के आसपास ही बनी रही है जो मोनेटरी पॉलिसी में वर्णित 2.5 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत के बीच की सीमा के अंदर ही है। बैंक आफ कनाडा, स्विस बैंक एवं स्वीडिश रिस्कबैंक ने भी पूर्व में ही अपने अपने देशों की ब्याज दरों में कमी करने की सिफारिश की है। अतः क्या अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी रेपो दर में कमी करने के बारे में विचार नहीं किया जाना चाहिए।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी संभवत: अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा फेड दर में कमी को घोषणा के बाद की जाय, क्योंकि यदि भारत रेपो दर में कमी की घोषणा करता है एवं फेडरल रिजर्व फेड दर में कमी नहीं करता है तो इससे अमेरिकी डॉलर के रूप में पूंजी का भारत से पलायन हो सकता है। परंतु, हाल ही के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने आंतरिक मजबूती के चलते ही अपने आर्थिक विकास को गति देने में सफल रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था, अन्य देशों के आर्थिक क्षेत्र में हो रहे विभिन्न परिवर्तनों के बावजूद वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने आर्थिक विकास की दर को 8 प्रतिशत से अधिक रखने में सफल रही है। यदि भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में कमी करता है तो इससे भारत में उद्योग, कृषि एवं सेवा क्षेत्र को वित्त/पूंजी की उपलब्धता कम ब्याज दरों पर होने लगेगी, इससे इन क्षेत्रों में कार्य कर रही इकाईयों की उत्पादन लागत कम होगी एवं इनकी लाभप्रदता में सुधार होगा। जिससे अंततः इन इकाईयों के विस्तार में आसानी होगी। देश में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंने लगेंगे। और फिर, अभी तो भारत के पास 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार भी उपलब्ध है, यदि ब्याज दर कम करने से कुछ विदेशी पूंजी पलायन भारत से अन्य देशों के ओर होता भी है तो (हालांकि इसकी सम्भावना बहुत ही कम है क्योंकि भारत में विदेशी निवेश एवं विदेशी मुद्रा का आंतरिक प्रेषण भी भारी मात्रा में होता दिखाई दे रहा है) यह विदेशी मुद्रा भंडार भारत के आड़े वक्त में काम आएगा।

भारत में हाल ही के समय में विभिन्न बैंकों के ऋण में वृद्धि दर 15 से 20 प्रतिशत के बीच बनी हुई है जबकि जमाराशि में वृद्धि दर 10-12 प्रतिशत के बीच बनी हुई है। आज भारत के कई बैंकों का वार्धिक ऋण:जमा अनुपात 100 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया है। इससे विभिन्न बैंकों की तरलता पर दबाव बनता हुआ दिखाई दे रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक को विभिन्न बैंकों की तरलता सम्बंधित समस्याओं को हल करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संदर्भ में कई प्रयास करना शुरू भी कर दिए हैं।

सुरक्षा के लिए अपना आधा सोना विदेशों में रखा है रिज़र्व बैंक ने

भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.20 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है। पहिले यह अनुमान 7 प्रतिशत का लगाया गया था परंतु वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 8.20 प्रतिशत की वृद्धि दर को देखते हुए इसमें 20 आधार अंको की वृद्धि की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.3 प्रतिशत, द्वितीय तिमाही में 7.2 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 7.3 प्रतिशत एवं चतुर्थ तिमाही में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस वर्ष मानसून भी सामान्य से कुछ अधिक ही रहने की सम्भावना है एवं भारत में ‘अल नीनो’ के स्थान पर ‘ला नीना’ का असर होने की प्रबल सम्भावना व्यक्त की गई है। अल नीनो के प्रभाव से सामान्यतः मानसून कमजोर हो जाता है एवं ला नीना के प्रभाव से मानसून मजबूत रहने की सम्भावना बढ़ जाती है। भारत में कृषि क्षेत्र अभी भी मानसून की बारिश पर ही टिका हुआ है, अतः मानसून के दौरान ला नीना के प्रभाव को कृषि क्षेत्र के लिए बहुत अच्छा माना जा रहा है। दूसरे, भारत की अर्थव्यवस्था में मंदिर की अर्थव्यवस्था एवं धार्मिक पर्यटन का सकारात्मक प्रभाव वित्तीय वर्ष 2024-25 में भी जारी रहेगा। इस मुख्य कारण के चलते, वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यदि यह प्रभाव भी वर्ष 2024-25 के दौरान इसी स्तर पर बना रहता है तो बहुत सम्भव है कि इस वर्ष के दौरान भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर हासिल की जा सके। तीसरे, इस वर्ष अच्छे मानसून के चलते ग्रामीण इलाकों में विभिन्न उत्पादों की मांग में भी वृद्धि होगी और यह कृषि क्षेत्र के साथ ही उद्योग एवं सेवा क्षेत्र को भी गति देने का काम करेगा, और इससे निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ने की भी प्रबल सम्भावना रहेगी और अंततः विकास दर 7.2 प्रतिशत के स्थान पर 8 प्रतिशत की रह सकती है।

अतः कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अब चूंकि मुद्रा स्फीति की दर भारत में लगभग नियंत्रण में है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति को और अधिक तेज करने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी करने पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक हैं)