राहुल के मुद्दों से झाड़ रहे पल्ला,साथ चलने में दिख रहा नुकसान।
प्रदीप सिंह।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक कहावत है-छुच्छा के के पुच्छा यानी जिसका हाथ खाली हो, उसको कौन पूछेगा? यही समाज का नियम है। यही प्रकृति का नियम है। इस नियम को जो नहीं मानते हैं, वे हमेशा ठोकर खाते रहते हैं। कांग्रेस के नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की यही स्थिति है।
कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार लगातार घिरता जा रहा है। हालांकि कांग्रेस पार्टी में कोई विद्रोह नहीं कर रहा। उनके खिलाफ कोई बगावत का झंडा लेकर नहीं खड़ा है,लेकिन सबसे बुरा होता है उम्मीद का मर जाना। राहुल गांधी से कांग्रेस के लोगों की उम्मीद खत्म हो गई है। दूसरी बात जो उन्होंने मान ली है वह इससे भी ज्यादा खतरनाक है कि राहुल गांधी को हम हटा नहीं सकते। यह दोनों बातें कांग्रेस पार्टी के भविष्य की दृष्टि से बहुत ही खतरनाक हैं।

ताजा संदर्भ दो बातों का है। बिहार विधानसभा चुनाव के समय राहुल गांधी ने 16 दिन की वोट अधिकार यात्रा निकाली थी। उनको लगता था कि यह ऐसा मुद्दा है जो पूरे बिहार के चुनाव को बदल देगा और महागठबंधन के पक्ष में तूफान चलेगा,लेकिन हुआ ठीक उल्टा। महागठबंधन हवा में उड़ गया। राहुल गांधी के कैंपेन का कोई असर नहीं हुआ और उनकी पार्टी सिंगल डिजिट में 6 सीटों पर सिमट गई।
कोई समझदार नेता होता तो इस नतीजे के बाद समझ जाता कि यह जनता का यह मुद्दा नहीं है। इसको छोड़ना पड़ेगा,लेकिन राहुल गांधी ने नहीं छोड़ा। संसद में बहस कराई। बहस के दौरान भाजपा ने खासतौर से गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि आपकी तो कई पीढ़ियों से वोट की चोरी हो रही है और इसके बाकायदा कई उदाहरण भी दिए। सबसे ताजा उदाहरण उन्होंने सोनिया गांधी का दिया। कोर्ट में उनके बारे में एक वाद दायर हुआ है कि इस देश का नागरिक बनने से पहले वह इस देश में मतदाता बन गई थीं तो असली वोट चोरी तो यह है। अगर आप देश के नागरिक नहीं हैं तो आपको मतदाता बनने का अधिकार ही नहीं है। तो इस बहस का नतीजा यह हुआ कि गांधी परिवार का पूरा काला चिट्ठा सबके सामने आ गया। इस बहस से कांग्रेस को कोई फायदा होने की बजाय नुकसान ज्यादा हुआ।

राहुल गांधी ने एक अन्य काम यह किया कि बीते रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में वोट चोरी रैली की। वहां प्रधानमंत्री के खिलाफ नारे लगे- मोदी तेरी कब्र खुदेगी, आज नहीं तो कल खुदेगी। इन नारों पर किसी तरह की माफी कांग्रेस पार्टी के किसी नेता ने नहीं मांगी बल्कि एक तरह से उसकी स्वीकृति थी। तो रामलीला मैदान की यह रैली फ्लॉप हो गई। फ्लॉप केवल इस दृष्टि से नहीं रही कि उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा या उसमें ज्यादा लोग जुटे नहीं। इस रैली में भाजपा के खिलाफ बनाए गए इंडी गठबंधन में शामिल किसी दल का कोई नेता भी नहीं आया। यानी कम से कम इस मुद्दे पर इंडी गठबंधन ने अपना नाता कांग्रेस पार्टी या राहुल गांधी से तोड़ लिया। इसका प्रमाण भी जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने एक बयान से दिया है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि वोट चोरी और एसआईआर का विरोध हमारा मुद्दा नहीं है। यह कांग्रेस का मुद्दा हो सकता है। सभी पार्टियां अपना मुद्दा तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। उमर के बयान का सीधा सा मतलब है कि इन मुद्दों का जमीन पर कोई असर नहीं है।
दूसरी बात शरद पवार की बेटी सुप्रिया सूले ने बोली। संसद में राहुल गांधी ने फिर से ईवीएम का मुद्दा उठाते हुए कहा कि हमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की पूरी संरचना का ब्यौरा दीजिए। हम जांच कराएंगे कि वह कैसे बनी है। उसमें कोई घपला हो सकता है कि नहीं। इस पर इंडी गठबंधन में शामिल दल की नेता सुप्रिया सूले ने कहा कि मैं तो ईवीएम का मुद्दा नहीं उठा सकती। इसी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मैं तीन बार चुनकर लोकसभा में आई हूं। मैं उस पर कैसे सवाल उठा दूं? तो यह राहुल गांधी के मुंह पर उनके साथियों के दो तमाचे हैं। अगर इससे उनकी तंद्रा टूट जाए तो समझिए कि भारतीय राजनीति में एक चमत्कार होगा। हालांकि मुझे नहीं लगता कि टूटेगी क्योंकि जो व्यक्ति हेलुसिनेशन का शिकार हो जाता है,उसकी तंद्रा को तोड़ना बड़ा मुश्किल होता है।

राहुल गांधी की समस्या यही हो गई है कि वे उन मुद्दों को लेकर चलते हैं, जिनका जनता पर कोई असर नहीं है, लेकिन उनको लगता है कि देश में इससे महत्वपूर्ण कोई मुद्दा नहीं है। जिन मामलों पर संसद में बहस हो चुकी। संसद से नकारे जा चुके। सुप्रीम कोर्ट से नकारे जा चुके। बिहार में एसआईआर शुरू हुई तब से यह मुद्दा उन्होंने उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने कोई राहत देने से मना कर दिया। अब जिन राज्यों में एसआईआर हो रही है, उनमें भी कोई दखल देने से मना कर दिया। बिहार चुनाव का नतीजा बताता है कि जनता की अदालत ने भी इस मुद्दे को रिजेक्ट कर दिया। इसलिए अब जो नई परिस्थिति बनी है, उसमें कांग्रेस के जो साथी दल हैं वो अपने को कांग्रेस के इस मुद्दे से अलग कर रहे हैं। कुछ मुखर होकर कर रहे हैं। कुछ चुप रहकर कर रहे हैं। इंडी गठबंधन में शामिल कई क्षेत्रीय दलों को समझ आ गया है कि राहुल गांधी के साथ चलने में कोई फायदा नहीं होने वाला बल्कि हमारा नुकसान है।
आने वाले समय में दो राज्यों तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलों का गठबंधन बना रहेगा, इस पर भी सवाल उठने लगा है। हो सकता है बना रहे लेकिन उसकी संभावना दिन पर दिन घटती जा रही है क्योंकि गठबंधन में अगर आप वैल्यू एडिशन नहीं करते तो वही बात है- छुच्छा के के पुच्छा यानी आप कुछ दे नहीं सकते हैं तो आपको साथ क्यों लें। किसी भी क्षेत्रीय दल को कांग्रेस से गठबंधन में कोई फायदा नहीं दिख रहा है। ये बात लोगों को, पूरे देश को, राजनीतिक दलों को,नेताओं को समझ में आ रही है। सिर्फ कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को समझ में नहीं आ रही है। कितनी ठोकर खाने के बाद समझ में आएगी इसके बारे में कोई भविष्यवाणी बड़े से बड़ा भविष्यवक्ता भी नहीं कर सकता।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



