सतीश सिंह ।
रिजर्व बैंक के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई नियंत्रण में रहेगी, इसलिए इसे लेकर बहुत परेशान होने की जरुरत नहीं है।
नई मौद्रिक नीति समिति ने 9 अक्टूबर को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में एकमत से नीतिगत दरों को यथावत रखने का निर्णय लिया। इस वजह से अभी भी रेपो दर 4 प्रतिशत पर, रिवर्स रेपो दर 3.35 प्रतिशत पर, नकद तरलता अनुपात (सीआरआर) दर 3 प्रतिशत पर और मार्जिनल स्टेंडिंग फेसिलिटी (एमएसएफ) व बैंक दर 4.25 प्रतिशत पर बरक़रार है। इससे पहले केंद्रीय बैंक ने अगस्त महीने में नीतिगत दरों को अप्रवर्तित रखा था, जबकि मई महीने में रेपो दर में 40 बेसिस प्वाइंट और मार्च में 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई थी। वर्ष 2020 में अब तक रिजर्व बैंक रेपो दर में 115 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर चुका है।
रेपो दर और रिवर्स रेपो दर
रेपो दर वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक; बैंकों को कर्ज देता है। बैंक, जमा और रेपो दर में कटौती से उपलब्ध नकदी का इस्तेमाल ऋण देने में करते हैं। रेपो दर में कटौती से बैंक के पास सस्ती दर पर पूँजी उपलब्ध हो जाती है, जिसके कारण बैंक जरुरतमंदों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने में समर्थ हो पाते हैं। रिवर्स रेपो दर, रेपो दर का ठीक उलटा होता है। यह वह दर है, जिस पर बैंक, रिजर्व बैंक में अधिशेष राशि जमा करते हैं, जिसके एवज में केंद्रीय बैंक उन्हें ब्याज देता है। आमतौर पर, रिवर्स रेपो दर के जरिये रिजर्व बैंक बाजार में मौजूद लिक्विडिटी या तरलता या नकदी को नियंत्रित करता है।
मौद्रिक समिति द्वारा नीतिगत दरों को यथावत रखने से ऋण दरों में या ऋण की किस्तों में कमी नहीं आयेगी। हालाँकि, रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गये इस कदम से बैंक जमा दरों में भी कटौती नहीं करेंगे, जिससे बुजुर्ग जमाकर्ताओं -जो अमूमन ब्याज की राशि से अपना जीवनयापन करते हैं- को राहत मिलेगी। ऋण और जमा ब्याज दरों में संतुलन बनाये रखने के लिये जब ऋण ब्याज दरों में कटौती की जाती है तो जमा ब्याज दरों में भी कटौती की जाती है। इससे बैंक की देनदारी और लेनदारी के बीच संतुलन बनी रहती है, जिससे उन्हें लाभ होता है। हालाँकि,रिजर्व बैंक ने यह भी साफ़ किया है कि नीतिगत दरों के यथावत रहने के बावजूद बैंक ऋण ब्याज दरों में अपने सामर्थ्य के अनुसार कटौती करने के लिये स्वतंत्र हैं और वह भी जरुरत पड़ने पर नीतिगत दरों में आगामी मौद्रिक समीक्षा से पहले कटौती कर सकता है।
चौथी तिमाही से आर्थिक हालात में सुधार
केंद्रीय बैंक के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई नियंत्रण में रहेगी, इसलिए, इसे लेकर बहुत परेशान होने की जरुरत नहीं है। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में महंगाई दर के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है, लेकिन दूसरी छमाही में यह 4.3 प्रतिशत के स्तर पर रहेगी का अनुमान है।
केंद्रीय बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने वित्त वर्ष 2021-22 से विकास की गति के सामान्य होने की बात कही है। श्री दास के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुधार दिख रहा है और यह अगर मौजूदा रफ़्तार से भी आगे बढ़ता है तो अगले वित्त वर्ष में आर्थिक स्थिति के सामान्य होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
मौद्रिक समिति के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर ऋणात्मक 9.5 प्रतिशत रह सकता है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी के नकारात्मक रहने के बाद सितंबर और दिसंबर तिमाहियों में भी जीडीपी के नकारात्मक रहने का अनुमान है। दूसरी तिमाही में यह 9.8 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 5.6 प्रतिशत नकारात्मक रह सकती है। हालाँकि, चौथी तिमाही से आर्थिक हालात में सुधार आने का अनुमान है और यह अंतिम तिमाही में सकारात्मक होकर 0.5 प्रतिशत रह सकती है।
केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2021-22 में विकास दर के 10.1 प्रतिशत रहने की बात कही है, जिसका कारण बेस प्रभाव है। इस प्रभाव के कारण वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून 2021 में विकास दर 20.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच सकती है। हालाँकि, वास्तविकता में विकास दर इससे कम रहेगी। महंगाई दर भी वित्त वर्ष 2020-22 में 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो चालू वित्त वर्ष के 4.5 प्रतिशत रहने के अनुमान से कम है।
राजकोषीय घाटे का स्तर
रिजर्व बैंक के अनुसार राज्य और केंद्र के संयुक्त राजकोषीय घाटे का स्तर चालू वित्त वर्ष में 12 प्रतिशत (जीडीपी के सापेक्ष) और अगले वित्त वर्ष में 9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालाँकि, केंद्र का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2021-22 में 5.5 प्रतिशत रह सकता है, जिसके चालू वित्त वर्ष में 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। निर्यात वृद्धि दर का अनुमान चालू वित्त वर्ष में नकारात्मक 14.7 प्रतिशत है, जो वित्त वर्ष 2021-22 में सकारात्मक होकर 10.2 प्रतिशत रह सकता है।
केंद्रीय बैंक ने दूसरे उपायों के जरिये भी आमजन और कारोबारियों को राहत देने की पहल मौद्रिक समीक्षा में की है। आगामी सप्ताह में केंद्रीय बैंक ओपन मार्केट ऑपरेशन के जरिये बाजार में 20,000 करोड़ रु. डालेगा। रिजर्व बैंक की योजना 31 मार्च 2021 तक टीएलटीआरओ के माध्यम से भी बाजार में 1 लाख करोड़ रु. प्रवाहित करने की है।
छोटे एवं मझौले कारोबारियों को सुविधा
एक इकाई द्वारा खुदरा ऋण लेने की सीमा को भी 5 करोड़ से बढाकर 7.5 करोड़ कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि अभी तक 5 करोड़ रु. तक के खुदरा ऋण पर रिस्क वेट 75 प्रतिशत होता था। अब यह रिस्क वेट 7.5 करोड़ रु. तक के खुदरा ऋण की राशि पर प्रभावी होगा। इससे अधिक की ऋण राशि पर रिस्क वेट की गणना 100 प्रतिशत की दर से होगी।
यह सुविधा छोटे एवं मझौले कारोबारियों को नये ऋण लेने पर मिलेगी। मियादी ऋण सीमा के बढ़ने से बैंकों को 5000 करोड़ रु. की पूँजी की बचत होने का अनुमान है, जो इससे पहले जोखिम के मद में प्रावधान करने के कारण खर्च हो रहे थे। इसी तरह सीसी लोन के नवीनीकरण को नया ऋण मानने से भी बैंकों को 1250 से 2500 करोड़ रु. की बचत हो सकता है, क्योंकि ऋण की राशि बढ़ने से बैंकों को जोखिम के मद में कम प्रावधान करने पड़ेगें।
रिजर्व बैंक ने और भी कई ऐसे उपाय किये हैं, जिससे आमजन और कारोबारी दोनों ऋण लेने के लिये प्रोत्साहित होंगे। उदाहरण के तौर पर दिसंबर 2020 से आरटीजीएस के जरिये पैसों के अंतरण की सुविधा ग्राहकों को चौबीस घंटे मिलेगी। गृह ऋण के नियमों में भी केंद्रीय बैंक ने कुछ बदलाव किया है, ताकि बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) ज्यादा ऋण वितरित कर सकें। रिजर्व बैंक ने बैंकों को रिस्क वेटेज की सीमा को लोन टू वैल्यू (एलटीवी) से जोड़ने के लिये कहा है। अभी तक गृह ऋण के रिस्क वेटेज को ऋण की राशि और एलटीवी से तय किया जाता है, जिसके कारण गृह ऋण की राशि जितनी अधिक होती है, उतना ही ज्यादा रिस्क वेटेज होता है और बैंक को गृह ऋण के मद में ज्यादा प्रावधान करना पड़ता है। ताजा बदलाव से बैंक को गृह ऋण के ब्याज को कम करने में भी आसानी होगी। यह प्रावधान नये गृह ऋणों पर प्रभावी होगा, जो 31 मार्च 2022 तक लागू रहेगा। बांड बाजार और कोर्पोरेट क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिये भी मौद्रिक समीक्षा में कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सहूलियत होगी।
चालू वित्त की पहली तिमाही में विकास दर में 23.9 प्रतिशत की कमी आने के बाद हाल में आये आर्थिक आंकड़ों से अर्थव्यवस्था में सुधार आने के संकेत मिल रहे है, जिसका कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार और त्योहारी मौसम में आर्थिक गतिविधियों में इजाफा होना है। श्री दास के अनुसार वित्त वर्ष 2021 में अनाज उत्पादन बढ़ा है; निर्माण कार्यों में भी तेजी आ रही है; प्रवासी मजदूर भी काम पर लौट रहे हैं; वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं; कई देशों में मैन्युफैक्चरिंग और खुदरा बिक्री में सुधार देखने को मिल रहा है; खपत और निर्यात में भी सुधार के संकेत मिल रहे हैं आदि।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं)