क्या हैं माइक्रो प्लास्टिक
माइक्रो प्लास्टिक 5 मिलीमीटर से छोटे कण होते हैं। मलयेशियाई अध्ययनकर्ताओं ने 5 मिलीमीटर से छोटे 12 से लेकर 1 लाख तक प्लास्टिक कण तक मानव शरीर में रोज पहुंचने का दावा किया है। एक साल में 11,845 से 1,93,200 माइक्रो प्लास्टिक कण शरीर में पहुंचते हैं, इनका वजन 7.7 ग्राम से 287 ग्राम तक होता है। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और फोरियर-ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के जरिए बेहद सूक्ष्म कणों की पहचान के प्रयास हो रहे हैं ताकि शरीर और विभिन्न पदार्थों में उनकी मौजूदगी का आकलन हो सके। फिलहाल सफलता नहीं मिली है।
शरीर में कहां से आ रहा
खाने-पीने की चीजों की प्लास्टिक पैकेजिंग और प्लास्टिक के प्लेट-ग्लास के साथ यह आ रहा है। सबसे ज्यादा पैकेज्ड बॉटल-वाटर लेने वालों को खतरा है, अध्ययन बताते हैं कि बॉटल के पानी में माइक्रो-प्लास्टिक ज्यादा है। प्रदूषण इसकी सबसे बड़ी वजह है। हमारे समुद्र, नदियां, मिट्टी, हवा और बारिश के पानी में प्लास्टिक पहुंच गया है।
मां के दूध में भी माइक्रोप्लास्टिक
मां के दूध तक में माइक्रोप्लास्टिक मिलने की पुष्टि वैज्ञानिकों ने की है। नीदरलैंड के वैज्ञानिकों को मांस के 8 में से 7 नमूनों में माइक्रो प्लास्टिक मिला, तो दूध के 25 में से 18 नमूनों में। समुद्री नमक, मछलियां खाने वालों को प्लास्टिक भी परोसा जा रहा है। अध्ययनों में इससे पाचन तंत्र व आंतों से लेकर कोशिकाओं को खतरा माना गया है। कैंसर व हृदय रोग, किडनी, पेट व लिवर के रोग, मोटापा, मां के गर्भ में मौजूद भ्रूण का विकास भी रुकने के दावे हुए हैं।
क्या है बचाव
माइक्रोप्लास्टिक की अहम वजह सिंगल यूज प्लास्टिक है। करीब 98 देशों में 2022 तक इन पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबंध लगे हैं। यह तभी संभव है, जब प्लास्टिक का उपयोग घटेगा। (एएमएपी)