इसराइल और हमास में युद्ध के चलते मध्य-पूर्व में बने तनावपूर्ण हालात के बीच भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा रविवार को ईरान पहुँचे। यहाँ उन्होंने ईरान के राजनीतिक मामलों के विदेश उप-मंत्री के साथ बैठक में हिस्सा लिया। यह बैठक 18वीं इंडिया-ईरान फ़ॉरन ऑफ़िस कंसल्टेशन (एफ़ओसी) के तहत हुई. वैसे तो यह एक सामान्य बैठक थी, लेकिन इसमें काफ़ी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि इस बैठक में अफ़ग़ानिस्तान और ग़ज़ा में बने हालात पर विमर्श के अलावा द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की गई और कनेक्टिविटी से जुड़ी परियोजनाओं, जैसे कि चाबहार बंदरगाह पर भी बात हुई। चाबहार बंदरगाह पर बात होना इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह भारत, ईरान और रूस, तीनों के बीच हुए एक समझौते के लिए काफ़ी अहम है। यह बंदरगाह उस इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरोडिर (आईएनएसटीसी) के लिए अहम बिंदु है, जिसके तहत इसे मध्य एशिया और रूस तक रेल मार्ग से जोड़ा जाना है।

मगर इस पूरी परियोजना के भविष्य पर उस समय सवाल उठने लगे थे, जब हाल ही में दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन में एक नया ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी थी। इस नए ट्रेड रूट को इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर नाम दिया गया. इसमें भारत संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन, इसराइल और ग्रीस शामिल हैं. इस कॉरिडोर पर सहमति बनाने में अमेरिका की अहम भूमिका थी। ऐसा माना जा रहा था कि इस कॉरिडोर के बनने के बाद ईरान में चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया. लेकिन हमास और इसराइल की जंग से चीज़ें अचानक से बदल गई हैं।

क्यों बढ़ी हैं ईरान की चिंताएं?

पिछले महीने भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन में कई देशों के नेताओं ने भारत से पश्चिमी एशिया से होते हुए यूरोप तक एक नया ट्रेड रूट बनाने की पहल की।

भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने एक ‘भारत-यूरोप-मध्य पूर्व कॉरिडोर’ (आईएमईसी) बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। बहुत से विश्लेषक इस पहल को चीन की ‘बेल्ट एंड रोड परियोजना’ से मुक़ाबले और ईरान को अलग-थलग करने की कोशिश के रूप में भी देख रहे हैं।

जब सीन एबॉट की बॉल बनी बल्लेबाज फिलिप ह्यूज की मौत का कारण

ऐसा भी माना जा रहा था कि भारत की दिलचस्पी ईरान के चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी की बजाय इस नए व्यापारिक रास्ते में ज़्यादा हो सकती है। यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वोन देर लेयेन का कहना है कि ‘आईएमईसी बन जाने से वर्तमान रूट की तुलना में एशिया से यूरोप तक ट्रांसपोर्ट में 40 फ़ीसदी कम समय लगेगा.’

वहीं, ईरान की चिंताएं बढ़ने का कारण यह भी हो सकता है कि भारत के लिए एकसाथ चाबहार, आईएनएसटीसी और आईएमईसी में निवेश करना आसान नहीं होगा। ऊपर से पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत के लिए उसके साथ कारोबार करना पहले ही काफ़ी पेचीदगियों भरा हो गया है।
ऐसे में यह चर्चा होने लगी है कि भारत ईरान वाले रास्ते को चुनेगा या फिर नए रूट को.

इसी बीच, अमवाज मीडिया में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘ईरान शायद भारत की इसी स्थिति को भांपते हुए चीन के साथ ’25 वर्षीय सहयोग कार्यक्रम’ बनाने लिए तैयार हुआ है.’ रिपोर्ट के अनुसार, इस कार्यक्रम के तहत चीन ने चाबहार बंदरगाह के बाक़ी हिस्सों को विकसित करने के लिए सहमति बनाई है, बदले में वह इस बंदरगाह को इस्तेमाल कर सकेगा।

चाबहार और आईएनएसटीसी को लेकर सुस्ती

ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी. साल 2016 में इस समझौते को मंज़ूरी मिली और भारत इस समय यहां एक कार्गो टर्मिनल विकसित कर रहा है. यह बंदरगाह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) के लिए काफ़ी अहमियत रखता है. इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है. इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता. जब से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है, तभी से उसका यूरोप के साथ होने वाला कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है. रूस के साथ-साथ ईऱान को भी यह रूट पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से राहत पाने में मदद करता, क्योंकि उन्हें मध्य एशिया से होते हुए कारोबार नहीं करना पड़ता।

लेकिन चाबहार और आईएनएसटीसी को लेकर कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पाई है

अमवाज मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, एक भारतीय अधिकारी का कहना है कि भारत ने कई बार चाबहार और आईएनएसटीसी परियोजना में तेज़ी लाने को कहा, मगर उन्हें इन परियोजनाओं का महत्व तभी समझ आया, जब रूस और यूक्रेन में जंग छिड़ी। हालांकि, इससे पहले ईरान ने भारत पर सुस्ती बरतने का आरोप लगाया था. साल 2020 में ईरान ने भारत को चाबहार रेल प्रोजेक्ट से फंड मिलने में देरी का हवाला देते हुए अलग कर दिया था।

इसके बाद दोनों देशों ने इस मामले में तेवर नरम किए और हाल ही में ईरान ने चाबहार को लेकर भारत को एक दीर्घकालिक अनुबंध का प्रस्ताव दिया था. इसी साल भारत ने भी चाबहार में 8 करोड़ डॉलर का निवेश करने का एलान किया है। इससे ये संकेत मिलते हैं कि भारत चाहता है कि आईएनएसटीसी सफल हो।

आईएमईसी को लेकर अनिश्चितताएं

आईएनएसटीसी में भारत की रुचि बने रहने का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि प्रस्तावित आईएमईसी को लेकर कई तरह की अनिश्चितताएं सामने आई हैं। इसराइल और हमास के बीच जारी युद्ध ने एक बार फिर मध्य पूर्व की अस्थिरता को उभार दिया है। भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक ग्रैसेटी ने पिछले हफ़्ते कहा था कि आईटूयूटू समूह के देशों (इसराइल भारत, यूएई और अमेरिका) में कनेक्टिवी बढ़ाने और जी20 सम्मेलन में तय किए गए इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर को आगे बढ़ाने में इसराइल हमास संघर्ष के कारण ठहराव आ सकता है, हालांकि, आगे चलकर इसमें ज़रूर प्रगति होगी।

प्रस्तावित ट्रेड रूट आईएमईसी की सफलता इस क्षेत्र की शांति पर निर्भर करती है. इसराइल और सऊदी अरब के बीच संबंध स्थापित होने का भी काफ़ी सकारात्मक असर होता, मगर इस दिशा में प्रगति रुक गई है। भारत की आईएनएसटीसी में दिलचस्पी फिर से बढ़ने का एक कारण यह भी हो सकता है कि मौजूदा वित्त वर्ष में रूस के साथ उसके कारोबार में काफ़ी उछाल देखने को मिला है. रूस से भारत का आयात चार गुना बढ़ चुका है और ऐसा सस्ते तेल के कारण हुआ है।

ऊपर से भारत को आईएनएसटीसी और चाबहार में निवेश जारी रखना इसलिए भी व्यावहारिक लग सकता है, क्योंकि ईरान जनवरी से ब्रिक्स प्लस समूह का आधिकारिक सदस्य बनने जा रहा है. इससे भारत और ईरान के बीच वित्तीय लेनदेन सुविधाजनक हो सकता है कि क्योंकि ब्रिक्स का अपना बैंक है।

इसके साथ ही, ब्रिक्स में स्विफ़्ट पेमेंट सिस्टम अपनाने पर भी विचार चल रहा है, जिससे सदस्य देश आपस में लेनदेन कर सकेंगे। इस सम्बंध में भारत के विदेश सचिव और ईरान के विदेश उप मंत्री के बीच क्या बात हुई है, इसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं हुआ है।

लेकिन इतना तय है कि दोनों देश, फ़िलहाल चाबहार प्रॉजेक्ट को चलाए रखने के लिए प्रतिबद्ध नज़र आ रहे हैं. (एएमएपी)