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भारत सरकार ने देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए परमाणु ऊर्जा को एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में चिह्नित किया है। इस दिशा में देश ने एक बहुस्तरीय रणनीति अपनाई है, जिसमें स्वदेशी तकनीक के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भी समावेश किया गया है।

ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम
इसके अतिरिक्त, 10 नए रिएक्टरों को मंज़ूरी दी जा चुकी है, जो अभी परियोजना-पूर्व चरण में हैं। इनमें कैगा, चुटका, माही-बांसवाड़ा और GHAVP की इकाइयां शामिल हैं। इन परियोजनाओं के पूरा होने के बाद वर्ष 2031-32 तक भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़कर लगभग 22,480 मेगावाट तक पहुंचने का अनुमान है।
भविष्य की योजनाओं में देश ने फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (FBR) के विकास को प्राथमिकता दी है। ये रिएक्टर भारत के तीन-स्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के अनुरूप हैं, जो सीमित यूरेनियम और प्रचुर थोरियम संसाधनों के इष्टतम उपयोग पर आधारित हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार उद्योगों के कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत लघु रिएक्टर (BSR) और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के निर्माण की दिशा में भी कार्य कर रही है। SMR और उनके ईंधन की आपूर्ति से जुड़ी सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी सुदृढ़ करने की योजना है।
इस क्षेत्र में अनुसंधान को गति देने के लिए सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये की लागत से एक विशेष ‘परमाणु ऊर्जा मिशन’ की शुरुआत की है, जिसका फोकस SMR तकनीक के विकास पर होगा। यह जानकारी केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से दी।