संघ प्रमुख मोहन भागवत
नागपुर में आरएसएस की दशहरा रैली को संघ प्रमुख मोहन भागवत संबोधित किया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले प्रतिनिधियों ने हमारे देश की विविधता में एकता का अनुभव किया. समस्याओं को सुलझाने के लिए दुनिया भारत की ओर देख रही है. उन्होंने कहा कि क्या मणिपुर हिंसा में सीमा पार के उग्रवादी शामिल थे ? कुछ असामाजिक तत्व खुद को सांस्कृतिक मार्क्सवादी कहते हैं, लेकिन वे मार्क्स को भूल गए हैं.
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव के अवसर पर नागपुर में ‘शस्त्र पूजा’ की. इसके बाद उन्होंने रैली को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भारत में कुछ लोग हैं, जो नहीं चाहते कि भारत उठ खड़ा हो. मोहन भागवत ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भावनाएं भड़काकर वोट हासिल करने की कोशिशों के प्रति आगाह किया. उन्होंने लोगों से देश की एकता, अखंडता, पहचान और विकास को ध्यान में रखते हुए मतदान करने का आह्वान किया. इस बीच गायक-संगीतकार शंकर महादेवन ने RSS विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम में श्लोक गाते हुए कहा कि तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय, ॐ शांतिः शांतिः शांतिः….यह विश्व की शांति का मंत्र है. हर इंसान की शांति के लिए प्रार्थना…यही हमारा देश है…
एकता जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी
रैली को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने फिजूलखर्ची पर रोक लगाने और देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि समाज की स्थाई एकता अपनेपन से निकलती है, स्वार्थ के सौदों से नहीं… हमारा समाज बहुत बड़ा है. बहुत विविधताओं से भरा है. कालक्रम में कुछ विदेश की आक्रामक परंपराएं भी हमारे देश में प्रवेश कर गईं, फिर भी हमारा समाज इन्हीं तीन बातों के आधार पर एक समाज बनकर रहा. इसलिए हम जब एकता की चर्चा करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह एकता किसी लेन-देन के कारण नहीं बनेगी. जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी।
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मोहन भागवत ने कहा कि समाज विरोधी कुछ लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक (Woke) यानी जगे हुए कहते हैं. परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है. विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है. मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार करते हैं. माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है. ऐसे वातावरण में असत्य, विपर्यस्त तथा अतिरंजित वृत्त के द्वारा भय, भ्रम तथा द्वेष आसानी से फैलता है. आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता में फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है. उन्होंने कहा कि अपनी परम्परा में इस प्रकार किसी राष्ट्र की जनता में अनास्था, दिग्भ्रम व परस्पर द्वेष उत्पन्न करने वाली कार्यप्रणाली को मंत्र विप्लव कहा जाता है।