कहते हैं कि उनके भोजन में किसी अपने ने ही धोखे से जहरीला पदार्थ मिला दिया था. उनकी मौत 51 साल की उम्र में हुई. उन्हें 23 वर्ष की उम्र में मेवाड़ का सिंहासन मिल गया था, जिसे उन्होंने बखूबी संभाला. उनकी बहादुरी के कई किस्से इतिहास में दर्ज हैं. मेवाड़ की जब भी चर्चा होगी तो महाराणा राज सिंह की भी चर्चा जरूर होगी।
औरंगजेब को दी थी चुनौती
औरंगजेब का शासन क्रूरता की हद तक पहुंच गया था. वह मंदिरों को तोड़ने के अभियान में जुटा हुआ था. मंदिर तोड़ना और मस्जिद का निर्माण कराना उसका मकसद बन गया था. इसी क्रम में मथुरा में भी मंदिरों को तोड़ने का सिलसिला चला. केशवदेव और श्रीनाथ जी मंदिर भी इसी क्रम में थे. सूचना मिलते ही हिन्दू चिंतित हो उठे. तब के पुजारी दामोदर दास भगवान का विग्रह लेकर निकल पड़े. वह नहीं चाहते थे कि मुगल सैनिक भगवान को छू सकें. बैलगाड़ी में भगवान का विग्रह लेकर पुजारी और उनके कुछ अन्य साथी इधर-उधर शरण मांगते घूम रहे थे।
कराया मंदिर का निर्माण
औरंगजेब ने एक आदेश पारित किया कि जो इन ब्राह्मणों को शरण देगा, स्वाभाविक रूप से मुगलों का दुश्मन माना जाएगा. उसके आतंक से किसी ने इन ब्राह्मणों को शरण देने की हिम्मत नहीं जुटाई. ये ब्राह्मण महाराणा राज सिंह तक पहुंचे. उनसे शरण की मांग की और महाराणा ने न केवल शरण दी बल्कि यहां तक कह दिया कि एक लाख राजपूत सैनिकों की हत्या के बाद ही मुगल श्रीनाथ जी के विग्रह को छू सकेंगे. वे औरंगजेब के आदेश से बेपरवाह भी थे. मंदिर टूट जाने और भगवान की मूर्ति न मिलने से खफा औरंगजेब को जब यह जानकारी मिली तो वह आगबबूला हो उठा. उधर संरक्षण देने के साथ ही महाराणा राज सिंह ने ब्राह्मणों से मंदिर के लिए जगह चुनने की अपील की. उदयपुर के पास श्रीनाथ जी को मंदिर में स्थापित कर दिया गया. तारीख थी 20 फरवरी 1672. तब से आज तक श्रीनाथ जी का मंदिर नाथ द्वारा के नाम से भक्तों की आस्था का केंद्र है।
किशनगढ़ की राजकुमारी से ऐसे ही शादी
किशनगढ़ के राजा मान सिंह की बेटी राजकुमारी चारुमति की खूबसूरती के चर्चे थे. यह खबर औरंगजेब को मिली तो उसने राजा मान सिंह से उनकी बेटी का हाथ मांग लिया. राजा मान सिंह ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. उन्हें लगा कि अगर नहीं मानेगे तो औरंगजेब किशनगढ़ पर हमला बोल देगा.ऐसे में उन्हें सबसे आसान यही लगा कि बेटी का विवाह कर दिया जाए. उधर पिता की ओर से सूचना मिलते ही राजकुमारी विचलित हो उठी. उन्होंने महाराणा राज सिंह को यह जानकारी देने के साथ ही विवाह का प्रस्ताव भेज दिया. महाराणा राज सिंह तैयार हो गए. उधर औरंगजेब शादी को चल चुका था. उससे पहले महाराणा राज सिंह किशनगढ़ पहुंचे और विवाह कर लिया. इस सूचना के बाद औरंगजेब हमलावर हुआ और मेवाड़ राज्य को काफी नुकसान पहुंचाया लेकिन महाराणा उसके सामने झुके नहीं. वे बराबर लड़ते रहे।
औरंगजेब के इस फरमान का किया विरोध
औरंगजेब ने जजिया कर लगाने का फरमान सुनाया तो महाराणा राज सिंह ने उसका तगड़ा विरोध किया क्योंकि इस कर से हर अमीर-गरीब प्रभावित हो रहा था. उन्होंने मंदिरों को तोड़ने के अभियान का भी विरोध किया था. यह कर हिंदुओं पर ही लगाया गया था और महाराणा हिंदुओं की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए जाने जाते थे.
भगवान में उनकी आस्था देखने लायक थी।
जब श्रीनाथ जी की पालकी निकली तो महाराणा ने खुद कंधा दिया. उनके विरोध की जानकारियां जब औरंगजेब तक पहुंचती तब वह आगबबूला हो उठता और एक नया हमला करने का हुकुम सुना देता. वे शरण में आए लोगों को आश्रय देते. सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी. उनकी न्यायप्रियता, प्रजा के प्रति प्यार धीरे-धीरे मशहूर हो चला था. किसी काम से प्रसन्न होने पर वे सोना-चांदी जैसी बहुमूल्य वस्तुएं भी प्रजा पर लुटाने से नहीं चूकते थे।
औरंगजेब के भाई को दी थी शरण
औरंगजेब के आतंक के बावजूद उन्होंने उसके भाई दारा शिकोह को शरण दे दी थी. इस बात की जानकारी मिलने के बाद औरंगजेब और क्रोधित हुआ. वह ऐसा समय था जब दारा शिकोह की मदद में जो सामने आता, उसे औरंगजेब के आतंक का सामना करना पड़ता था. जबकि दारा उसका सगा भाई था लेकिन विचारधारा में एकदम विपरीत. उनकी बनवाई हुई राजसमंद झील और वहाँ लगे प्रशस्ति पत्र आज भी महाराणा राज सिंह के शासन की स्वर्णिम गवाही देते हैं. मंदिर, धर्मशाला, तालाब, कूप जैसी चीजों को बनाने में वे हमेशा आगे रहे. वे सबसे प्यार करते थे लेकिन मुगलों से उनका 36 का रिश्ता था।
महाराणा और अकबर के बेटों में जंग
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जो पिता नहीं कर पाया, वो बेटे ने किया
“मेरे पिता के समय में भी कई बार राणा पर सेनाएं भेजी गई थीं किंतु उसने हार नहीं खाई थी. बादशाह बनते ही मैंने अपने बेटे शहजादे परवेज़ को एक बड़ी फौज, भारी खज़ाने और कई तोपों के साथ भेजा”.जहांगीर ने कई नामचीन सरदारों को परवेज़ के साथ भेजा. बादशाह ने परवेज़ से कहा था, अगर राणा मिलने और मातहत में रहना स्वीकार कर ले तो मुल्क को मत बिगाड़ना. जहांगीर को लगा था, इतनी बड़ी सेना देखकर महाराणा अमर सिंह संधि के लिए तैयार हो जाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. महाराणा ने अपने पिता की तरह छापामार हमले किए. एक लम्बी लड़ाई के दौरान मुग़ल सेना ने मेवाड़ की जमीन को रौंद डाला लेकिन महाराणा को पकड़ने में नाकाम रहे।
महाराणा अमर सिंह
नाकाम कोशिशें
“हर काम का एक वक्त होता है, जब होना होता है, तभी काम होता है. मुझे ख़याल आया कि आगरा में मुझे कोई काम नहीं है और मेरे गए बिना मेवाड़ का काम ठीक से नहीं होगा. मैंने राणा को अपने रुतबे का एहसास कराने के लिए आगरा से अजमेर जाने का फैसला किया।