प्रमोद जोशी ।
सन 2020 में भारत की विदेश नीति में एक बड़ा मोड़ आया है। यह मोड़ चीन के खिलाफ कठोर नीति अपनाने और साथ ही अमेरिका की ओर झुकाव रखने से जुड़ा है। इसका संकेत पहले से मिल रहा था, पर इस साल लद्दाख में भारत और चीन के टकराव और फिर उसके बाद तोक्यो में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद चतुष्कोणीय सुरक्षा योजना को मजबूती मिली। फिर भारत में अमेरिका के साथ ‘टू प्लस टू’ वार्ता और नवंबर के महीने में मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के भी शामिल हो जाने के बाद यह बात और स्पष्ट हो गई कि भारत अब काफी हद तक पश्चिमी खेमे में चला गया है।
भारतीय विदेश-नीति सामान्यतः किसी एक गुट के साथ चलने की नहीं रही है। नब्बे के दशक में शीत-युद्ध की समाप्ति के बाद भारत पर दबाव भी नहीं रह गया था। पर सच यह भी है कि उसके पहले भारत की ‘असंलग्नता’ पूरी नहीं थी, अधूरी थी। भारत का रूस की तरफ झुकाव छिपाया नहीं जा सकता था। बेशक उसके पीछे तमाम कारण थे, पर भारत पूरी तरह गुट निरपेक्षता का पालन नहीं कर रहा था। फर्क यह है कि तब हमारा झुकाव रूस की तरफ था और अब अमेरिका की तरफ हो रहा है।
अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिम ने दुनिया को बहु-ध्रुवीय बनाने की कोशिशों को खारिज करने के लिए एक ‘खेल’ शुरू किया है। उसने रूस और चीन को अलग-थलग करके बाकी देशों को अपनी एक ध्रुवीय व्यवस्था में शामिल करने की कोशिशें शुरू की हैं। हम अपनी तरफ से सबको जोड़ने के एजेंडा पर काम करते रहेंगे।
भारत को मोहरा बनाया जा रहा
अब जब हमारा झुकाव अमेरिका की तरफ बढ़ रहा है, बल्कि चीन के खिलाफ हम खुलकर सामने आ रहे हैं, तब रूस के साथ हमारे रिश्तों को लेकर सवाल हैं। इसमें दो राय नहीं कि रूस हमारा करीबी मित्र है। खासतौर से रक्षा तकनीक में हम रूस पर काफी हद तक आश्रित हैं। पर रूसी नीति में आ रहे बदलाव पर भी हमें नजर रखनी चाहिए। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने क्वाड के संदर्भ में कहा है कि पश्चिम की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ आक्रामक रणनीति में भारत को मोहरा बनाया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा है कि पश्चिमी देश भारत और रूस के गहरे रिश्तों की भी अनदेखी कर रहे हैं।
रूसी विदेश मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मामलों की रूसी कौंसिल की एक बैठक में गत मंगलवार 8 नवंबर को कहा कि अमेरिका का लक्ष्य है सैनिक तकनीकी सहयोग के मामले में भारत पर दबाव डालना। इस बैठक का विवरण बुधवार को जारी किया गया।
यह पहला मौका नहीं है, जब रूस ने भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की सहभागिता से विकसित हो रहे क्वाड की आलोचना की है, पर इसबार की भाषा और स्वर बदले हुए हैं। हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने उनकी इस बात का जवाब नहीं दिया है, पर इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत मानता है कि यह प्रतिक्रिया चीन के साथ रूस की निकटता को व्यक्त कर रही है।
दुनिया एकध्रुवीय बनाने की कोशिशें
लावरोव ने कहा कि पश्चिम की कोशिश है कि दुनिया एक ध्रुवीय बनी रहे। पर रूस और चीन जैसे ‘ध्रुव’ उसके अधीन आने से रहे। अलबत्ता भारत इस समय पश्चिम की निरंतर आक्रामक रणनीति का विषय है। वे तथाकथित ‘क्वाड’ के माध्यम से उसका इस्तेमाल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी चीन-विरोधी नीतियों के लिए करना चाहते हैं। साथ ही वे भारत के साथ हमारी निकटता की अनदेखी करना चाहते हैं। अमेरिका का लक्ष्य है, भारत पर सैनिक और तकनीकी सहयोग के लिए जबर्दस्त दबाव डालना।
लावरोव ने कहा, अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिम ने दुनिया को बहु-ध्रुवीय बनाने की कोशिशों को खारिज करने के लिए एक ‘खेल’ शुरू किया है। उसने रूस और चीन को अलग-थलग करके बाकी देशों को अपनी एक ध्रुवीय व्यवस्था में शामिल करने की कोशिशें शुरू की हैं। हम अपनी तरफ से सबको जोड़ने के एजेंडा पर काम करते रहेंगे।
लावरोव का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाहर जी-20 अकेली व्यवस्था है, जहाँ हितों के संतुलन को बनाकर रखा जा सकता है। इसमें तथाकथित जी-7, ब्रिक्स देशों और उन देशों का प्रतिनिधित्व है, जो जी-7 के बजाय ब्रिक्स की विचारधारा का समर्थन करते हैं (उनका आशय सऊदी अरब, मैक्सिको, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया और मिस्र से है)। जी-20 वह जगह है जहाँ औपचारिक अंतरराष्ट्रीय लीगल संरचना को बनाए रखने के संतुलित तरीके अपनाए जा सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम ने हमारे औपचारिक संपर्कों को जाम कर दिया है (चूंकि यह बात सबकी जानकारी में है., इसलिए विस्तार से मैं यह नहीं समझाऊँगा कि क्यों)। यह दुनिया को एक-ध्रुवीय बनाने की लाइन है। वे मानते हैं कि अहंकारी रूस को उन्होंने अलग-थलग करके उसे सजा दे दी है।
नियम-आधारित दुनिया’ की बात क्यों
इस साल जनवरी में लावरोव ने अमेरिका की इस बात के लिए आलोचना की थी कि वह खुद को ‘नियम-आधारित दुनिया’ का हामी साबित कर रहा है, पर खुद अंतरराष्ट्रीय कानूनों को खुद तोड़ रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अवधारणा केवल चीन को रोकने के लिए है।
लावरोव ने इस साल भारत में हुए रायसीना संवाद-2020 के अपने भाषण में कहा था, हमारे पश्चिमी मित्र अंतरराष्ट्रीय कानून के बजाय ‘नियम-आधारित दुनिया’ की बात क्यों कर रहे हैं? उसमें उन्होंने कहा, जब लोग कहते हैं कि हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना चाहते हैं, तब सवाल पैदा होता है कि क्या आपने उन सबको इसमें शामिल किया है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पड़ते हैं? आप इसे हिंद-प्रशांत क्यों कहते हैं? जवाब आपको मालूम है। जवाब है, चीन को रोकना। भारत के हमारे दोस्त इस बात को समझते हैं।
उस संवाद में एस जयशंकर ने लावरोव के फौरन बाद अपनी बात रखी और अपनी असहमति जाहिर की और ‘नियम-आधारित दुनिया’ को परिभाषित किया। जयशंकर ने कहा, ‘नियम-आधारित दुनिया’ का मतलब है अंतरराष्ट्रीय कानून से भी ज्यादा, कम नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)